हाइलाइट्स
- mental slavery in India को लेकर सरकारी नीतियों पर सवाल खड़े हुए हैं।
- स्कूलों की छुट्टियों के नाम पर बच्चों से धार्मिक यात्राएं कराई जा रही हैं।
- SC, ST, OBC समुदाय के बच्चों की शिक्षा सबसे अधिक प्रभावित हो रही है।
- शिक्षा के नाम पर योजनाएं कागज़ों में, ज़मीनी हकीकत में सिर्फ पूजा और परंपराएं।
- देश के उच्च वर्ग के बच्चे पढ़ाई में आगे, गरीब बच्चों को धार्मिक कर्मकांड में उलझाया जा रहा है।
क्या भारत को मानसिक गुलामी की ओर ले जाया जा रहा है?
सरकारी स्कूल बंद और कावड़ यात्रा: एक खतरनाक सांस्कृतिक प्रयोग?
भारत में शिक्षा को लेकर दशकों से बहस होती रही है, लेकिन हालिया घटनाएं इस ओर इशारा कर रही हैं कि सरकारें अब बच्चों को mental slavery in India की ओर धकेल रही हैं। हाल ही में कई राज्यों में देखा गया कि सरकारी स्कूलों को “कावड़ यात्रा” के समर्थन में बंद कर दिया गया। बच्चे पढ़ाई के बजाय भगवा झंडा थामे, “बोल बम” के नारों के साथ सड़कों पर कंधे पर गंगाजल लेकर चल रहे हैं।
किसके बच्चे हैं ये? कौन उठा रहा है शिक्षा का बोझ?
आंकड़ों और ग्राउंड रिपोर्ट्स से स्पष्ट है कि इन धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने वाले अधिकतर बच्चे SC, ST और OBC वर्ग से हैं। उनके पास न संसाधन हैं, न विकल्प। स्कूल की छुट्टियों का मतलब उनके लिए या तो खेतों में मजदूरी है या फिर धार्मिक आयोजनों में शामिल होना।
दूसरी ओर, उच्च वर्ग के बच्चे – सामान्यत: General Category से – महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं, कोचिंग में जा रहे हैं, विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है – क्या यह mental slavery in India का नया रूप नहीं है?
शिक्षा या भक्ति? सरकार की दोहरी नीति
स्कूल की छुट्टी का असली मतलब क्या है?
सरकार की तरफ़ से बयान आता है कि कावड़ यात्रा “संस्कृति” का हिस्सा है और बच्चों को इससे “धार्मिक ज्ञान” मिलेगा। पर क्या यह ज्ञान विज्ञान, गणित या भाषा की पढ़ाई का विकल्प हो सकता है? यदि सरकारी स्कूल बंद किए जा सकते हैं धार्मिक कारणों से, तो क्या यह संविधान के अनुच्छेद 21A (निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) का उल्लंघन नहीं है?
धर्म आधारित भेदभाव और असमानता
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में स्कूलों को धार्मिक आधार पर बंद करना ना केवल शिक्षा के अधिकार का हनन है, बल्कि यह mental slavery in India की ओर एक बड़ा कदम है। धार्मिक आयोजनों के नाम पर बच्चों को पढ़ाई से दूर रखना न केवल असंवैधानिक है बल्कि सामाजिक न्याय की अवधारणा के भी विपरीत है।
आंकड़े जो डराते हैं
- 2022 में, 38% सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी दर्ज की गई।
- NCERT के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों के 70% बच्चों की गणित और अंग्रेजी की समझ औसत से नीचे है।
- SC/ST वर्ग के छात्रों की स्कूल ड्रॉपआउट दर सामान्य वर्ग से 2 गुना ज्यादा है।
- अधिकतर स्कूलों में शिक्षकों की गैरमौजूदगी और संसाधनों की कमी का सीधा असर इन वंचित वर्गों पर पड़ता है।
इन हालातों में जब स्कूल धार्मिक कारणों से बंद किए जाते हैं, तो यह एक सोची-समझी रणनीति लगती है जिससे गरीब और पिछड़े वर्गों को शिक्षा से वंचित रखा जाए – यानी mental slavery in India को बढ़ावा दिया जाए।
मानसिक गुलामी: एक सुनियोजित षड्यंत्र?
शिक्षा से कटे समाज की मानसिक स्थिति
जो समाज शिक्षा से कट जाता है, वह तर्क, विवेक और आत्मसम्मान से भी कट जाता है। जब बचपन से ही बच्चों को यह सिखाया जाए कि “धार्मिक परंपरा ही सब कुछ है”, तो वे कभी सवाल करना नहीं सीखते। यही मानसिकता उन्हें mental slavery in India की जंजीरों में जकड़ देती है।
भक्ति बनाम बौद्धिकता
भक्ति का स्थान समाज में महत्वपूर्ण है, लेकिन जब यह बौद्धिकता पर हावी हो जाती है, तब यह व्यक्ति को केवल आज्ञाकारी बनाती है, जागरूक नहीं। सरकार यदि सच में “सबका साथ, सबका विकास” चाहती है, तो उसे सभी बच्चों को समान और वैज्ञानिक शिक्षा देनी होगी।
सरकारी स्कूल बंद करके,सरकार बच्चोको कावड़ ढोने को विवश कर रही हैं
अनपढ रहेगा इंडिया,
तभी तो मानसिक गुलाम बनेगा इंडियाये सभी SC,ST,OBC के बच्चे है.इसमे कोई उच्च जाती के नही मिलेंगे.वो पढाई कर उच्च पदोपर,विदेशो मे जायेंगे
सब फ्री देंगे लेकिन शिक्षा नही देंगे#मोदी_जी_स्कूल_बचाओ pic.twitter.com/od8EhSQ70p
— Pinkyyy🪷⛩️☸️ (@PinkyBodh371059) July 14, 2025
समाधान क्या हो सकते हैं?
नीति और व्यवस्था में बदलाव ज़रूरी
- धार्मिक आयोजनों के लिए स्कूल बंद करना बंद हो।
- बच्चों को धार्मिक आयोजनों में अनिवार्य रूप से भाग लेने की बाध्यता न हो।
- वंचित वर्गों के लिए विशेष शिक्षा योजना बनाई जाए, जो उन्हें प्रतिस्पर्धी बनाए।
- हर जिले में शिक्षा आयोग की निगरानी हो कि छुट्टियां किस आधार पर दी जा रही हैं।
- बच्चों में तर्कशील सोच को बढ़ावा दिया जाए, जिससे वे स्वतंत्र निर्णय लेने वाले नागरिक बन सकें।
भारत यदि सच में ‘विकसित राष्ट्र’ बनना चाहता है, तो उसे शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। धार्मिक आयोजनों और त्योहारों का सम्मान करते हुए भी यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी बच्चे की शिक्षा बाधित न हो। यदि हम गरीब और वंचित तबकों के बच्चों को केवल परंपरा, भक्ति और कर्मकांडों में उलझाए रखते हैं और उच्च वर्ग के बच्चों को वैश्विक शिक्षा देते हैं, तो हम एक mental slavery in India को जन्म दे रहे हैं – जो दिखती नहीं, लेकिन आने वाली पीढ़ियों को भीतर से खोखला कर देती है।