हाइलाइट्स
- मौलाना की शव स्थिति से जुड़ा यह मामला कौशांबी में बन गया है चर्चा का विषय
- 20 साल बाद बेटे को आया सपना, कहा– “मेरी कब्र को सही करवाओ”
- कब्र की खुदाई के दौरान मौलाना की डेड बॉडी देखकर सब रह गए दंग
- बरेलवी मौलाना की अनुमति से कब्र खोदकर शव को फिर से दफनाया गया
- पूरे इलाके में आस्था और रहस्य का बना माहौल, लोग कर रहे दुआएं और फातेहा
20 साल बाद भी नहीं सड़ी डेड बॉडी: कौशांबी में ‘मौलाना की शव स्थिति’ बना रहस्य
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के दारानगर इलाके में एक ऐसा रहस्य सामने आया है, जिसने न सिर्फ स्थानीय लोगों को, बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय को हैरत में डाल दिया है। यह मामला एक ऐसे मौलाना से जुड़ा है, जिनकी मौत को 20 साल बीत चुके थे, लेकिन मौलाना की शव स्थिति वैसी की वैसी बनी रही जैसे कल ही दफन किया गया हो। इस मामले की शुरुआत हुई एक सपने से, जिसने बेटे को झकझोर कर रख दिया।
पिता मौलाना अंसार आए सपने में, बेटे से कहा– “मेरी कब्र को सही करो”
सिराथू तहसील के दारानगर निवासी अख्तर सुब्हानी ने बताया कि उनके पिता, मौलाना अंसार अहमद का साल 2003 में निधन हो गया था। उन्हें कस्बे के कब्रिस्तान में पूरे इस्लामिक रीति से दफनाया गया था। बीते कुछ दिनों पहले अख्तर को एक सपना आया, जिसमें उनके पिता ने उनसे कहा कि उनकी कब्र खराब हो गई है, उसे दुरुस्त करवाओ।
अख्तर जब सुबह नींद से जागे तो उन्होंने यह बात अपने परिवार वालों से साझा की। जब परिवार कब्रिस्तान गया, तो पाया कि मौलाना की कब्र धंस चुकी है और बुरी तरह जर्जर हो चुकी है।
बरेलवी मौलाना से ली इजाज़त, कब्र की हुई खुदाई
कब्र को दोबारा ठीक कराने के लिए अख्तर ने बरेलवी समुदाय के मौलाना से संपर्क किया। शरई नियमों के अनुसार, मौलाना की अनुमति जरूरी थी, क्योंकि मौलाना की शव स्थिति को बिना उचित अनुमति के छेड़ना इस्लाम में सही नहीं माना जाता।
मौलाना ने परिस्थितियों को देखते हुए कब्र की मरम्मत के लिए अनुमति दे दी। इसके बाद परिजनों और स्थानीय ग्रामीणों की मौजूदगी में कब्र की खुदाई शुरू की गई।
20 साल बाद भी जस की तस मिली डेड बॉडी, लोगों की आंखें खुली रह गईं
जब खुदाई की गई तो जो नज़ारा सामने आया, उसने वहां मौजूद सभी लोगों को स्तब्ध कर दिया। मौलाना अंसार सुब्हानी की डेड बॉडी पूरी तरह सुरक्षित अवस्था में थी। न सिर्फ कपड़े सही सलामत थे, बल्कि जनाजा भी उसी अवस्था में था जैसे 2003 में रखा गया था।
इस चमत्कारिक मौलाना की शव स्थिति को देखकर लोग दुआ पढ़ने लगे, कुछ ने तो फौरन वीडियो बनाना शुरू कर दिया। मामला कुछ ही घंटों में पूरे जिले में फैल गया, और दूर-दूर से लोग कब्रिस्तान पहुंचने लगे।
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार क्या यह करिश्मा है?
इस्लाम में माना जाता है कि जो इंसान नेक और सच्चा होता है, उसका जिस्म मिट्टी में जल्दी फना नहीं होता। ऐसे लोग “वली” या “अवलिया” कहलाते हैं। कुछ मौलाना और धर्मगुरुओं का मानना है कि मौलाना की शव स्थिति इस बात का प्रमाण है कि वह एक नेक और परहेज़गार इंसान थे।
वहीं कुछ धर्मशास्त्री कहते हैं कि यह प्राकृतिक चमत्कार हो सकता है, जैसे मिट्टी की गुणवत्ता, तापमान और आक्सीजन की कमी के कारण शव संरक्षित रह जाता है।
क्या है वैज्ञानिक पक्ष?
हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शव के 20 साल तक सुरक्षित रहने की संभावना बेहद कम होती है। आमतौर पर शरीर को दफनाने के बाद कुछ हफ्तों में ही उसका क्षय शुरू हो जाता है। परंतु यदि मिट्टी में नमी कम हो, ऑक्सीजन की मात्रा कम हो और वातावरण में सूक्ष्मजीव न हों, तो मौलाना की शव स्थिति लंबे समय तक वैसी की वैसी रह सकती है।
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह एक दुर्लभ केस है, परंतु पूरी तरह असंभव नहीं।
भीड़ जुटने लगी कब्रिस्तान में, लोग कर रहे हैं दुआ और फातेहा
जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया में फैली, दारानगर के कब्रिस्तान में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। कुछ लोग मौलाना अंसार की कब्र पर दुआ करने लगे, तो कुछ ने इसे ‘करिश्मा’ करार दिया।
ग्रामीणों का मानना है कि मौलाना अंसार सुब्हानी वाकई एक बहुत बड़े नेक इंसान थे। उनकी शिक्षाएं आज भी गांव के कई घरों में याद की जाती हैं। इस घटना के बाद गांव के कुछ युवाओं ने वादा किया है कि वे मौलाना की शिक्षाओं पर चलने की कोशिश करेंगे।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ मामला
मौलाना की शव स्थिति वाला यह मामला अब सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। कई लोगों ने इसे अल्लाह का करिश्मा बताया, वहीं कुछ लोग इसे वैज्ञानिक रूप से समझने की मांग कर रहे हैं।
फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर #MoulanaKaJism और #KausambiMystery जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
आस्था बनाम विज्ञान
मौलाना की शव स्थिति को लेकर दो मत बन चुके हैं—एक आस्था का और दूसरा विज्ञान का। परंतु इतना तय है कि यह घटना न सिर्फ कौशांबी जिले में, बल्कि पूरे भारत में चर्चा का विषय बन चुकी है।
इसने यह प्रश्न जरूर खड़ा कर दिया है कि क्या इंसान की आत्मा की सच्चाई, उसका कर्म और उसका जीवन उसके मरने के बाद भी उसकी पहचान छोड़ जाते हैं?