हाइलाइट्स
- सामूहिक आत्महत्या से दहला मध्य प्रदेश का टेहर गांव
- पिता, बेटी, बेटा और दादी ने एक साथ सल्फास खाकर दी जान
- घटना के वक्त पत्नी थी मायके में, घर में नहीं मिला कोई सुसाइड नोट
- 16 साल का बेटा और 70 साल की दादी की मौके पर मौत
- पुलिस कर रही हर एंगल से जांच, गांव में गहरा शोक
सामूहिक आत्महत्या से कांपा टेहर गांव: चार लोगों की एक साथ मौत
मध्य प्रदेश के सागर जिले के टेहर गांव में शनिवार सुबह एक ऐसी दिल दहला देने वाली घटना घटी, जिसने पूरे जिले को हिलाकर रख दिया है। यहां एक ही परिवार के चार सदस्यों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली। मरने वालों में 45 वर्षीय पिता, 18 वर्षीय बेटी, 16 वर्षीय बेटा और 70 वर्षीय दादी शामिल हैं। सभी ने सल्फास की गोलियां खाकर जान दी। यह सामूहिक आत्महत्या इतनी भयावह थी कि देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए।
परिवार में थी सामान्य स्थिति, फिर क्यों उठाया यह खौफनाक कदम?
घरेलू तनाव या डिप्रेशन बन रहा कारण?
गांववालों के मुताबिक, मनोहर लोधी का परिवार एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार था। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और खेती-किसानी में मनोहर सक्रिय रहते थे। लेकिन यह सामूहिक आत्महत्या क्यों हुई, इसका अब तक कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है।
पुलिस का प्राथमिक अनुमान है कि घरेलू तनाव या डिप्रेशन इस कदम के पीछे हो सकता है। मनोहर की पत्नी कुछ दिन पहले ही अपने मायके गई थीं। पुलिस हर पहलू पर जांच कर रही है।
दर्दनाक दृश्य: मां और बेटे की मौके पर मौत, बेटी और पिता ने रास्ते में तोड़ा दम
डॉक्टरों ने भी जताई सल्फास की पुष्टि
खुरई सिविल अस्पताल की डॉक्टर वर्षा केशरवानी के अनुसार, चारों ने सल्फास की गोलियां खाई थीं। 70 वर्षीय फूलरानी लोधी और 16 वर्षीय अंकित की मौके पर ही मौत हो गई थी। गंभीर हालत में बेटी शिवानी और पिता मनोहर को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन रास्ते में दोनों ने दम तोड़ दिया।
इस सामूहिक आत्महत्या की पुष्टि करते हुए डॉक्टरों ने कहा कि समय रहते इलाज नहीं मिल पाने से जान नहीं बचाई जा सकी।
जांच में जुटी पुलिस, नहीं मिला कोई सुसाइड नोट
मृतकों के मोबाइल और दस्तावेज भी खंगाले जा रहे
खुरई अर्बन थाने के प्रभारी योगेंद्र सिंह डांगी ने बताया कि घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। यह सामूहिक आत्महत्या किसी गहरे पारिवारिक तनाव का नतीजा हो सकती है, लेकिन जांच के बाद ही स्थिति साफ होगी।
पुलिस ने मृतकों के रिश्तेदारों से पूछताछ शुरू कर दी है। गांव के लोगों से भी जानकारी ली जा रही है ताकि यह समझा जा सके कि चारों ने इतना खतरनाक कदम क्यों उठाया।
पड़ोसियों की प्रतिक्रिया: ‘मनोहर सादा जीवन जीने वाले व्यक्ति थे’
गांव में मातम, हर चेहरा खामोश
टेहर गांव में हर कोई स्तब्ध है। पड़ोसी और रिश्तेदारों का कहना है कि मनोहर एक सीधे-सादे व्यक्ति थे। बच्चों को पढ़ाने में लगे रहते थे। बेटी शिवानी 12वीं में पढ़ती थी और बेटा अंकित 10वीं का छात्र था। दादी फूलरानी घर की सबसे वरिष्ठ सदस्य थीं।
एक ही साथ चार चिताओं की आग ने पूरे गांव को गमगीन कर दिया। सामूहिक आत्महत्या जैसे शब्द गांव में पहली बार गूंजे और सबकी आंखों में आंसू छोड़ गए।
रिश्तेदार की गवाही: “रात 3 बजे अचानक हुई उल्टियां, तब तक देर हो चुकी थी”
नंदराम सिंह लोधी की आपबीती
मनोहर के छोटे भाई नंदराम सिंह लोधी ने बताया, “रात करीब 3 बजे कुछ अजीब आवाजें आईं। देखा तो मनोहर को उल्टियां हो रही थीं। दौड़ते हुए गए और पड़ोसियों को बुलाया। एंबुलेंस को कॉल किया। लेकिन मां और भतीजा पहले ही दम तोड़ चुके थे।”
उनकी यह बात सामूहिक आत्महत्या के उस पल को और दर्दनाक बना देती है।
क्या यह अकेलापन और मानसिक पीड़ा का नतीजा?
विशेषज्ञों की राय: मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी
मनोविज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि सामूहिक आत्महत्या अकसर मानसिक पीड़ा और सामाजिक अलगाव का परिणाम होती है। यदि समय रहते परिवार को परामर्श, सहारा या किसी से बातचीत का मौका मिलता, तो शायद ये चार जिंदगी बचाई जा सकती थीं।
सामूहिक आत्महत्या के ऐसे मामलों में समुदाय की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। हर किसी को सजग रहना चाहिए कि कहीं कोई अपने अंदर दर्द तो नहीं छुपा रहा।
जीवन अनमोल है: मदद लें, बात करें, चुप न रहें
नोट: अगर आपके या आपके किसी जानने वाले के मन में सामूहिक आत्महत्या या आत्महत्या जैसा विचार आ रहा है, तो तुरंत विशेषज्ञों से संपर्क करें। भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 या टेली-मानस हेल्पलाइन 1800914416 पर कॉल करें। आपकी पहचान गोपनीय रखी जाएगी और आपको विशेषज्ञ सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
टेहर गांव की यह त्रासदी न सिर्फ एक परिवार के खत्म होने की कहानी है, बल्कि हमारे समाज को एक गहरा संदेश देती है— सुनिए, समझिए और साथ दीजिए। जब तक हम मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी।
सामूहिक आत्महत्या एक सामाजिक आपदा है, जिसे केवल संवेदनशीलता, संवाद और सहायता से ही रोका जा सकता है।