हाइलाइट्स
- लिव इन रिलेशन को लेकर कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने एक बार फिर दिया विवादित बयान
- बोले – “कलियुग में वैश्या को वैश्या नहीं कह सकते, वो खुद को सती सावित्री सुनना चाहती है”
- समाज में सत्य बोलने पर क्यों होता है विरोध? अनिरुद्धाचार्य ने कहा, “कलियुग में सत्य बोलना पाप बन गया है”
- लिव इन रिलेशन पर सवाल – क्या मां-बाप चाहते हैं ऐसी बहू जो लिव इन में रहकर आए?
- महिलाओं की तुलना सीता और सूर्पणखा से कर उठाया बड़ा विवाद, फिर से छिड़ी बहस
भूमिका: जब ‘सत्य’ भी अपराध हो जाए
भारत में धर्म, परंपरा और सामाजिक मूल्य सदियों से बहस के केंद्र रहे हैं। लेकिन आज जब सोशल मीडिया की ताकत बढ़ गई है, तो हर धार्मिक वक्तव्य पर विवाद होना आम बात बन गया है। कुछ ऐसा ही हाल ही में कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के एक बयान के बाद हुआ, जिसमें उन्होंने लिव इन रिलेशन को लेकर कटाक्ष किया और समाज के पाखंड पर करारा हमला बोला। उनके इस बयान ने न सिर्फ सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी बल्कि समाज की सोच और स्वीकार्यता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या था कथावाचक अनिरुद्धाचार्य का बयान?
“लिव इन में रहना सत्य है या पाप?”
एक धार्मिक कथा के दौरान कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने सीधे शब्दों में कहा:
“कलियुग में आप वैश्या को वैश्या नहीं कह सकते। हैं तो वैश्या, पर सुनना चाहती है सती-सावित्री। अर्धनग्न घूमेगी और चाहेगी कि लोग उसे देवी कहें।”
यह बयान सुनते ही सभा में सन्नाटा छा गया और सोशल मीडिया पर विवाद का तूफान आ गया। अनिरुद्धाचार्य ने लिव इन रिलेशन को लेकर कहा कि आज यदि कोई व्यक्ति इस प्रथा का विरोध करता है, तो उसे ‘पिछड़ा’ और ‘महिला विरोधी’ कह दिया जाता है, जबकि वो सिर्फ सत्य बोल रहा होता है।
कलियुग में सत्य बोलना पाप क्यों?
सत्य बनाम लोकप्रियता
अनिरुद्धाचार्य ने कहा कि कलियुग की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां सत्य बोलने वाले को ही दोषी ठहराया जाता है। यदि आप कह दें कि “लिव इन रिलेशन गलत है”, तो लोगों को आपसे समस्या हो जाएगी। उन्होंने व्यंग्य में कहा:
“यदि हम लिव इन को सही कहें, तो हम ‘प्रगतिशील’ बन जाते हैं, लेकिन जैसे ही हम इसका विरोध करें, हम ‘पुराने ख्यालों वाले’ कहे जाते हैं।”
‘लिव इन रिलेशन’ बनाम पारंपरिक विवाह
प्रश्न जो उन्होंने समाज से पूछा
“आप कैसी बहू चाहते हैं? जो लिव इन में रहकर आए या जो ससुराल के संस्कार में ढली हो?”
अनिरुद्धाचार्य के इस बयान ने सामाजिक विमर्श को एक नए मोड़ पर ला दिया। उन्होंने पूछा कि क्या कोई मां अपने बेटे के लिए ऐसी बहू चाहेगी जो पहले लिव इन रिलेशन में रह चुकी हो?
यह बयान न केवल सामाजिक परंपराओं पर सवाल करता है, बल्कि आधुनिकता के नाम पर फैले दोहरे मापदंडों की भी पोल खोलता है।
नारी की पूजा या चरित्र की परख?
किस नारी की होती है पूजा?
अनिरुद्धाचार्य ने स्पष्ट किया कि भारतीय संस्कृति में नारी को देवी कहा गया है, लेकिन सभी को नहीं। उन्होंने कहा:
“हमारी संस्कृति सीता, राधा, पार्वती जैसी नारियों की पूजा करती है, जो आचरण से पवित्र हैं। क्या सूर्पणखा जैसी महिलाओं की भी पूजा होती है?”
उन्होंने यह भी पूछा कि यदि समाज कहता है कि सब बराबर हैं, तो फिर पतिव्रता स्त्री और लिव इन में रहने वाली स्त्री को एक ही तराजू में कैसे तौला जा सकता है?
विवाद क्यों गहराता जा रहा है?
सोशल मीडिया बनाम धार्मिक मंच
बीते दिनों अनिरुद्धाचार्य के अलावा प्रेमानंद महाराज और अन्य कथावाचकों के भी बयान वायरल हुए हैं जिनमें समाज, लड़कियों के पहनावे, लिव इन, मोबाइल संस्कृति आदि पर तीखी टिप्पणियां की गई हैं।
इससे एक बात स्पष्ट होती है कि धार्मिक मंच अब केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि वे सामाजिक विमर्श के मुख्य केंद्र बन गए हैं — चाहे वह कितना भी विवादास्पद क्यों न हो।
विपक्ष की प्रतिक्रिया: क्या यह महिला विरोध है?
फेमिनिस्ट समूहों, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स और कई आधुनिक सोच रखने वालों ने इस बयान को महिला विरोधी बताया है। उनका कहना है कि इस प्रकार की बातें युवाओं को गलत दिशा में ले जाती हैं और महिलाओं को चरित्र के आधार पर आंकना अनुचित है।
लेकिन कुछ वर्गों ने अनिरुद्धाचार्य के विचारों का समर्थन भी किया है, जो मानते हैं कि लिव इन रिलेशन भारतीय मूल्यों के विरुद्ध है और इससे सामाजिक ताने-बाने में दरार आती है।
विश्लेषण: विवाद या विचार?
लिव इन रिलेशन के पक्ष और विपक्ष
भारत में लिव इन रिलेशन पर सुप्रीम कोर्ट की मान्यता तो है, लेकिन सामाजिक स्वीकार्यता अभी भी सीमित है।
पक्ष में तर्क:
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता
- विवाह के पहले संगतता का मूल्यांकन
- कानूनी सुरक्षा
विपक्ष में तर्क:
- पारंपरिक मूल्यों का ह्रास
- परिवारिक व्यवस्था पर प्रभाव
- बच्चों की परवरिश पर असर
अनिरुद्धाचार्य के बयान इसी द्वंद्व के बीच आते हैं — जहां एक ओर आधुनिक समाज स्वतंत्रता की बात करता है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक विचारधारा शुद्धता और नैतिकता पर बल देती है।
सच बोलने की सजा क्यों?
कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने लिव इन रिलेशन को एक सामाजिक विकृति कहा और सत्य बोलने के साहस का परिचय दिया। उनका मानना है कि आज का समाज सत्य से भागता है और झूठ को अपना आदर्श मान चुका है।
बेशक, उनके बयान विवादित हैं, लेकिन वह एक ऐसी बहस को जन्म दे रहे हैं जो आज के युवाओं, परिवारों और समाज को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है। सवाल यह नहीं है कि वे सही हैं या गलत — सवाल यह है कि क्या हम ‘सत्य’ सुनने और उस पर विचार करने को तैयार हैं?