हाइलाइट्स
- कल्पना सोरेन ने ढेकी से चावल कूटकर अपने ससुर शिबू सोरेन के श्राद्धकर्म की रस्म निभाई।
- झारखंड की राजनीति में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम दिखा।
- विधायक और मुख्यमंत्री की पत्नी होकर भी कल्पना सोरेन ने ग्रामीण संस्कृति से जोड़ा रखा।
- वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया पर कल्पना की सादगी की चर्चा तेज़ हो गई।
- कामयाबी के बीच परंपरा निभाने का संदेश पूरे राज्य में सराहा गया।
कल्पना सोरेन का यह रूप क्यों है खास?
झारखंड की राजनीति में अक्सर सत्ता और सादगी के बीच की खाई को लेकर सवाल उठते रहते हैं। लेकिन इस बार चर्चा का केंद्र बनीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन। अपने ससुर और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन के श्राद्धकर्म के दौरान उन्होंने परंपरागत ढेकी से चावल कूटकर ऐसी तस्वीर पेश की, जिसने पूरे राज्य ही नहीं, बल्कि देशभर में लोगों का ध्यान खींच लिया।
जहां नेता परिवार अक्सर आधुनिकता की चमक-दमक में खो जाते हैं, वहीं कल्पना सोरेन ने दिखाया कि जड़ें चाहे कितनी भी गहरी हों, उन्हें छोड़ना आसान नहीं।
ढेकी और आदिवासी परंपरा
ढेकी का महत्व
ढेकी, ग्रामीण जीवन और आदिवासी समाज की सबसे पुरानी परंपराओं में से एक है। यह लकड़ी का उपकरण होता है, जिसका इस्तेमाल अनाज कूटने में किया जाता है। झारखंड, ओडिशा और बिहार में यह संस्कृति आज भी कुछ जगह जीवित है।
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— Kavish Aziz (@azizkavish) August 18, 2025
कल्पना सोरेन और परंपरा का जुड़ाव
जब कल्पना सोरेन ने श्राद्धकर्म के मौके पर ढेकी से चावल कूटे, तो यह सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं रही, बल्कि यह परंपरा को सहेजने का एक प्रतीकात्मक कदम बन गया। उन्होंने यह संदेश दिया कि आधुनिकता के बीच भी परंपराएं हमारी पहचान की जड़ हैं।
सोशल मीडिया पर चर्चा
वीडियो सामने आते ही सोशल मीडिया पर कल्पना सोरेन की सादगी और परंपरा निभाने की शैली की जमकर तारीफ हुई। कई लोगों ने कहा कि “नेता परिवार की महिलाएं आमतौर पर इस तरह की परंपरा से दूरी बना लेती हैं, लेकिन कल्पना ने यह साबित कर दिया कि जड़ों से जुड़े रहना ही असली पहचान है।”
कमेंट्स में लोग लिख रहे हैं—
- “यही है झारखंड की असली संस्कृति।”
- “कल्पना सोरेन हमें याद दिलाती हैं कि सत्ता और सादगी साथ चल सकती है।”
- “नेता परिवारों को भी उनसे सीख लेनी चाहिए।”
कल्पना सोरेन की राजनीतिक पहचान
कल्पना सोरेन सिर्फ मुख्यमंत्री की पत्नी नहीं, बल्कि खुद भी एक प्रभावशाली नेता और विधायक हैं। राजनीति में उनकी सक्रियता ने उन्हें झारखंड की महिला नेताओं की पहली पंक्ति में खड़ा कर दिया है।
महिलाओं की भागीदारी
उनकी राजनीतिक यात्रा ने झारखंड की महिलाओं को प्रेरणा दी है कि वे राजनीति में अपनी जगह बनाने से पीछे न हटें। यही वजह है कि आज कल्पना का नाम न सिर्फ राजनीतिक मंचों पर, बल्कि समाज और संस्कृति के विमर्श में भी लिया जाता है।
कामयाबी और परंपरा का संतुलन
आज के दौर में जब लोग सफलता मिलने के बाद अपनी परंपराओं से दूरी बना लेते हैं, कल्पना सोरेन ने दिखाया कि कामयाबी के साथ परंपरा निभाना ही असली संतुलन है।
उदाहरण दूसरों के लिए
उनका यह कदम बाकी नेताओं के लिए भी एक मिसाल है कि सत्ता की ऊँचाइयों पर पहुंचने के बाद भी ज़मीन से जुड़े रहना कितना ज़रूरी है।
आदिवासी समाज और राजनीति में संदेश
शिबू सोरेन को आदिवासी राजनीति का ‘गुरुजी’ कहा जाता है। उनके निधन के बाद पूरे राज्य में शोक की लहर है। ऐसे समय में कल्पना सोरेन का ढेकी से चावल कूटना सिर्फ पारिवारिक कर्तव्य नहीं था, बल्कि यह आदिवासी समाज को यह विश्वास दिलाने का भी तरीका था कि परंपराएं आज भी जिंदा हैं और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचेंगी।
पत्रकारिता के नज़रिए से
राजनीति में ऐसे दृश्य दुर्लभ हैं, जब सत्ता के शीर्ष पर बैठे परिवार की महिलाएं घर और परंपरा से जुड़े कार्यों में सक्रियता दिखाती हैं। कल्पना सोरेन की यह छवि एक अलग ही राजनीतिक संदेश देती है—
- जनता के बीच अपनापन
- परंपरा और आधुनिकता का संतुलन
- महिला नेतृत्व का मजबूत उदाहरण
ढेकी से चावल कूटती कल्पना सोरेन की यह तस्वीर आने वाले समय में झारखंड की राजनीति और समाज दोनों में याद रखी जाएगी। यह सिर्फ एक पारिवारिक रस्म नहीं थी, बल्कि यह एक संदेश था—सफलता पाने के बाद भी परंपरा और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।