हाइलाइट्स
- जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंद महाराज को संस्कृत बोलने और श्लोकों का अर्थ समझाने की खुली चुनौती दी।
- टीवी इंटरव्यू में रामभद्राचार्य ने कहा—“चमत्कार वही है, जो शास्त्रीय चर्चा में सिद्ध हो।”
- प्रेमानंद महाराज की पिछले 19 सालों से दोनों किडनियां खराब, फिर भी करते हैं वृंदावन परिक्रमा।
- विराट कोहली से लेकर कई फिल्मी सितारे प्रेमानंद महाराज से आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।
- रामभद्राचार्य ने कहा—धर्म का ज्ञान अब मूर्ख लोग भी बांट रहे हैं, पहले केवल विद्वान ही करते थे।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य और संत प्रेमानंद महाराज के बीच छिड़ा यह विवाद धार्मिक जगत में नई हलचल पैदा कर रहा है। संस्कृत और शास्त्रीय विद्वता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध रामभद्राचार्य ने टीवी इंटरव्यू में प्रेमानंद महाराज पर सवाल उठाते हुए उन्हें खुली चुनौती दे डाली। उनका कहना है कि अगर प्रेमानंद महाराज सचमुच चमत्कारी हैं तो वह एक अक्षर संस्कृत बोलकर दिखाएं या फिर उनके कहे संस्कृत श्लोकों का हिंदी अर्थ समझा दें।
रामभद्राचार्य का प्रेमानंद महाराज पर बड़ा बयान
संस्कृत ज्ञान पर चुनौती
टीवी इंटरव्यू के दौरान जब रामभद्राचार्य से प्रेमानंद महाराज के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा—“मेरे लिए वे बालक समान हैं। अगर उनमें चमत्कार है तो मैं उन्हें खुली चुनौती देता हूं कि मेरे सामने एक अक्षर संस्कृत बोलकर दिखाएं। या फिर मेरे कहे संस्कृत श्लोकों का अर्थ स्पष्ट करें।”
रामभद्राचार्य ने कहा कि उन्हें प्रेमानंद महाराज से कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है, लेकिन वह उन्हें न विद्वान मानते हैं और न ही चमत्कारी। उनके अनुसार, असली चमत्कार वही है जो शास्त्रों की गहराई को समझे और श्लोकों का अर्थ सही तरह से बता सके।
प्रेमानंद महाराज की लोकप्रियता और संघर्ष
सोशल मीडिया पर छाए
संत प्रेमानंद महाराज अपनी भक्ति, प्रवचनों और सादगी के कारण सोशल मीडिया पर हमेशा चर्चा में रहते हैं। बड़े-बड़े सेलिब्रिटी, क्रिकेटर विराट कोहली से लेकर बॉलीवुड सितारे तक, उनसे आशीर्वाद लेने आते रहते हैं।
19 साल से किडनी रोग से जूझते हुए भी सेवा
जानकारी के अनुसार, संत प्रेमानंद महाराज की दोनों किडनियां पिछले 19 वर्षों से खराब हैं। इसके बावजूद वह प्रतिदिन वृंदावन की परिक्रमा करते हैं। कई भक्तों ने उन्हें अपनी किडनी दान करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने किसी का भी प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। यह संघर्ष उनकी भक्ति और दृढ़ संकल्प का उदाहरण है।
रामभद्राचार्य की आलोचना और धर्म पर टिप्पणी
विद्वानों की जगह अब मूर्ख?
इंटरव्यू में रामभद्राचार्य ने धर्म और कथा-वाचन की वर्तमान स्थिति पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा—“पहले केवल विद्वान लोग ही कथा कहते थे, लेकिन आजकल मूर्ख लोग भी धर्म का ज्ञान बांट रहे हैं।”
उनका यह बयान धार्मिक आयोजनों और कथावाचकों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
लोकप्रियता बनाम विद्वता
रामभद्राचार्य का मानना है कि प्रेमानंद महाराज की लोकप्रियता ‘क्षणभंगुर’ है। उन्होंने कहा कि उन्हें प्रेमानंद महाराज का भजन पसंद है, लेकिन उनकी इस प्रसिद्धि को चमत्कार मानना स्वीकार्य नहीं।
धार्मिक जगत में प्रतिक्रियाएं
संत समाज में बहस
रामभद्राचार्य के इस बयान के बाद संत समाज में खलबली मच गई है। कुछ लोग उनके समर्थन में आए हैं और मानते हैं कि संस्कृत ज्ञान ही असली धार्मिक विद्वता का प्रमाण है। वहीं, प्रेमानंद महाराज के भक्त और समर्थक इसे अनावश्यक विवाद बता रहे हैं।
भक्तों की आस्था
भले ही रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज को चुनौती दी हो, लेकिन उनके भक्तों की आस्था पर कोई असर नहीं पड़ा। उनका कहना है कि संत का असली मूल्यांकन उनके भक्तिपूर्ण जीवन और समाज के लिए किए गए कार्यों से होना चाहिए, न कि केवल विद्वता से।
रामभद्राचार्य और प्रेमानंद महाराज के बीच यह विवाद केवल दो संतों का मतभेद नहीं है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि असली चमत्कार क्या है—संस्कृत और शास्त्रों का गहरा ज्ञान, या फिर कठिन परिस्थितियों में भी भक्ति और आस्था से भरा जीवन जीना?
जहां एक ओर रामभद्राचार्य ने विद्वता और शास्त्रीय ज्ञान की कसौटी पर चमत्कार को परिभाषित किया है, वहीं प्रेमानंद महाराज का जीवन संघर्ष और आस्था का उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह बहस आने वाले दिनों में और गहराएगी और धार्मिक समाज को गहराई से सोचने पर मजबूर करेगी।