Israel protest

लखनऊ की सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब: क्या भारत इजराइल का समर्थन करके अपनी आत्मा से कर रहा है समझौता?

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 हाइलाइट्स

  • लखनऊ में Israel protest के समर्थन में मौलाना कल्बे जव्वाद का ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन
  • भारत सरकार पर इजराइल और अमेरिका का साथ देने का आरोप
  • हजारों की संख्या में लोग इमामबाड़ा से जमा मस्जिद तक मार्च करते दिखे
  • मौलाना ने कहा- भारत की गुटनिरपेक्ष नीति खतरे में है
  • मुस्लिम संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र से भी दखल देने की अपील की

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ रविवार को उस समय राजनीतिक और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बन गई, जब प्रसिद्ध शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने इजराइल और अमेरिका के खिलाफ एक विशाल विरोध मार्च का नेतृत्व किया। Israel protest के इस आयोजन में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया और भारत सरकार की विदेश नीति पर गंभीर सवाल उठाए।

 प्रदर्शन की शुरुआत और रूट

Israel protest की शुरुआत ऐतिहासिक इमामबाड़ा से हुई, जहां मौलाना कल्बे जव्वाद ने अपने समर्थकों के साथ जुटकर सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी की। भीड़ में पुरुषों, महिलाओं और युवाओं की बड़ी संख्या शामिल थी। मार्च इमामबाड़ा से शुरू होकर जमा मस्जिद तक पहुंचा, जहां मौलाना ने एक भावनात्मक और तीखा भाषण दिया।

 मौलाना का सीधा आरोप: “भारत अत्याचारियों का साथ दे रहा है”

अपने भाषण में मौलाना ने कहा:

“हमारा भारत हमेशा गुटनिरपेक्ष रहा है, लेकिन आज वह इजराइल और अमेरिका जैसे अत्याचारी देशों का समर्थन कर रहा है। इससे हम भारतीय मुसलमानों को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है।”

Israel protest में दिए गए उनके भाषण ने साफ कर दिया कि देश के मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग वर्तमान विदेश नीति से असंतुष्ट है।

 गाजा और फिलिस्तीन का मुद्दा फिर चर्चा में

मौलाना के अनुसार, इजराइल द्वारा फिलिस्तीन के गाजा क्षेत्र में किए गए हमलों में मासूम नागरिकों की हत्या हो रही है। उन्होंने दावा किया कि भारत सरकार का इस मामले में चुप रहना या इजराइल का अप्रत्यक्ष समर्थन देना, उसके ऐतिहासिक रुख के खिलाफ है। Israel protest के दौरान उन्होंने कहा:

“जब तक एक भी फिलिस्तीनी बच्चा जिंदा है, हम आवाज़ उठाते रहेंगे।”

 भारत सरकार पर विदेश नीति को लेकर तीखा हमला

मौलाना ने प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्रालय को सीधे निशाने पर लेते हुए कहा कि भारत को अपनी ऐतिहासिक गुटनिरपेक्ष नीति से भटकना नहीं चाहिए। Israel protest के माध्यम से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश की कि भारत की जनता इस नीति से सहमत नहीं है।

 विरोध प्रदर्शन में लगे नारे और पोस्टर

प्रदर्शन के दौरान “इजराइल मुर्दाबाद”, “अमेरिका होश में आ”, और “भारत चुप क्यों है?” जैसे नारे लगते रहे। बच्चों और युवाओं के हाथों में फिलिस्तीनी झंडे और Israel protest से जुड़े पोस्टर थे, जिन पर “Save Gaza”, “Stop Killing Innocents” जैसे संदेश लिखे हुए थे।

 पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासन की प्रतिक्रिया

लखनऊ प्रशासन ने Israel protest को देखते हुए भारी सुरक्षा बल तैनात किए थे। किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए जगह-जगह बैरिकेड्स लगाए गए थे। लखनऊ के एसएसपी ने बताया कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा और किसी तरह की हिंसा की सूचना नहीं मिली।

 धार्मिक बनाम राजनीतिक आंदोलन?

इस Israel protest ने एक सवाल भी खड़ा किया है—क्या यह केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा प्रदर्शन था या इसके पीछे कोई राजनीतिक संकेत भी छिपा है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रदर्शन 2024 के बाद भारत में मुस्लिम समुदाय की बढ़ती असंतुष्टि को दिखाता है।

 सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X (पूर्व में ट्विटर), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर Israel protest से संबंधित हैशटैग ट्रेंड करने लगे। कुछ लोगों ने इसे धार्मिक उन्माद कहा, तो कई लोगों ने मौलाना के साहस की सराहना की। कुछ नेटिज़न्स ने सवाल उठाए कि भारत के आंतरिक मुद्दों को छोड़कर विदेशी मामलों में इतना ध्यान देना उचित है या नहीं।

 अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं और मुस्लिम देशों का समर्थन

Israel protest की खबर जैसे ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पहुंची, कुछ मुस्लिम देशों के नेताओं ने इस पर प्रतिक्रिया दी। ईरान और तुर्की के धार्मिक संगठनों ने मौलाना के नेतृत्व की सराहना की और इसे ‘इस्लामी एकता’ की मिसाल बताया।

 मौलाना की संयुक्त राष्ट्र से अपील

प्रदर्शन के अंत में मौलाना कल्बे जव्वाद ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की कि वह इजराइल के खिलाफ सख्त कदम उठाए और फिलिस्तीन की जनता की रक्षा करे। Israel protest को उन्होंने एक वैश्विक आंदोलन करार देते हुए कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी तो दिल्ली और अन्य महानगरों में भी विरोध प्रदर्शन होंगे।

क्या Israel protest बदलेगा भारत की विदेश नीति?

लखनऊ में हुए इस Israel protest ने निश्चित रूप से देशभर में चर्चा को जन्म दिया है। क्या सरकार इस विरोध को गंभीरता से लेगी? क्या भारत अपनी विदेश नीति की समीक्षा करेगा? यह आने वाले समय में देखा जाएगा। फिलहाल, इतना तय है कि भारत के मुस्लिम समुदाय में एक नई जागरूकता और असंतोष की लहर उठी है।

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