896 साल पहले मालदीव में हुई थी ऐतिहासिक धार्मिक क्रांति: कैसे बौद्ध देश बना ‘इस्लामिक सल्तनत

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हाइलाइट्स

  • मालदीव में इस्लाम धर्म की स्थापना को लेकर हर साल रबी उल आखिर की दूसरी तारीख को विशेष दिन के रूप में मनाया जाता है।
  • कभी बौद्ध धर्म का गढ़ रहे मालदीव में आज इस्लाम पूरी तरह स्थापित है और यह देश का राजधर्म बन चुका है।
  • 12वीं सदी में एक इस्लामी विद्वान की प्रेरणा से राजा ने इस्लाम कबूल किया और देश की धार्मिक दिशा बदल गई।
  • इस्लाम के आगमन ने मालदीव की न्याय प्रणाली, संस्कृति और सामाजिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित किया।
  • आज का मालदीव इस्लामी मूल्यों को संजोते हुए एक विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है।

मालदीव में इस्लाम धर्म: सिर्फ एक बदलाव नहीं, बल्कि एक नया अध्याय

मालदीव, हिंद महासागर में बसा एक छोटा-सा लेकिन रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण द्वीपीय राष्ट्र, आज अपनी सुंदरता, समुद्री रिसॉर्ट्स और इस्लामी संस्कृति के लिए दुनियाभर में पहचाना जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता है कि मालदीव में इस्लाम धर्म की जड़ें कोई नई नहीं हैं, बल्कि यह परिवर्तन लगभग 896 वर्ष पहले हुआ था। यह सिर्फ एक धर्म परिवर्तन नहीं था, बल्कि मालदीव की आत्मा, संस्कृति और राजनीति में गहरे बदलाव की शुरुआत थी।

बौद्ध धर्म से इस्लाम तक: मालदीव की आध्यात्मिक यात्रा

तीसरी शताब्दी से चला आ रहा बौद्ध प्रभाव

मालदीव में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से बौद्ध धर्म की गूंज सुनाई देती थी। उस काल में यह द्वीप समूह भारत और श्रीलंका के बौद्ध केंद्रों से जुड़ा हुआ था। यहां स्तूप, विहार और बौद्ध मूर्तियां मौजूद थीं, जिनके अवशेष आज भी कुछ द्वीपों पर पाए जाते हैं।

बौद्ध धर्म ने सदियों तक मालदीव की धार्मिक पहचान, जीवनशैली और शासकीय व्यवस्था को प्रभावित किया। स्थानीय समाज में अहिंसा, ध्यान और ज्ञान की परंपराएं स्थापित थीं।

अबू अल-बरकत की यात्रा और धर्मांतरण का ऐतिहासिक क्षण

12वीं सदी में मालदीव की किस्मत तब बदली जब एक इस्लामी विद्वान अबू अल-बरकत यूसुफ अल-बरबरी यहां पहुंचे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे उत्तरी अफ्रीका, सोमालिया या ईरान से आए थे।

उन्होंने मालदीव के राजा धोवेमी को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया। धार्मिक संवाद, चमत्कारिक घटनाओं और बौद्ध पुरोहितों की विफलता ने राजा को प्रभावित किया और उन्होंने मालदीव में इस्लाम धर्म को अपनाने की ऐतिहासिक घोषणा की।

राजा धोवेमी ने इस्लाम स्वीकार कर नया नाम सुल्तान मुहम्मद अल-आदिल रखा और मालदीव की धार्मिक दिशा हमेशा के लिए बदल गई।

मालदीव में इस्लाम धर्म के आगमन से सामाजिक और राजनीतिक बदलाव

शरिया कानून का आगमन और धार्मिक शिक्षा का विस्तार

राजा के धर्मांतरण के बाद न सिर्फ शाही दरबार बल्कि आम जनता ने भी धीरे-धीरे इस्लाम धर्म को स्वीकार किया। मस्जिदों का निर्माण शुरू हुआ, कुरान और हदीस की शिक्षा को बढ़ावा मिला, और मालदीव में इस्लाम धर्म समाज के हर स्तर पर प्रभावी होने लगा।

शरिया कानून को न्याय व्यवस्था का आधार बनाया गया, जो आज तक मालदीव की कानूनी प्रणाली में प्रमुखता से लागू है। इस्लामिक कैलेंडर, रोज़ा, ज़कात, हज और नमाज को सार्वजनिक जीवन में स्थान मिला।

संस्कृति, कला और परंपराओं में बदलाव

इस्लाम के आगमन ने मालदीव की कला और संगीत में भी बड़ा बदलाव किया। बौद्ध चित्रकला की जगह अरबी सुलेख और इस्लामी वास्तुकला ने ली। पहले के धार्मिक नृत्य और नाटक को हतोत्साहित किया गया और धार्मिक गीतों व सूफी परंपराओं को अपनाया गया।

आधुनिक मालदीव: इस्लामी मूल्यों और पर्यटन का संगम

इस्लामिक पहचान बनी राष्ट्रीय धरोहर

आज भी मालदीव में इस्लाम धर्म न केवल राजधर्म है, बल्कि देश की पहचान है। हर नागरिक का मुस्लिम होना अनिवार्य है और गैर-मुस्लिमों को नागरिकता नहीं दी जाती। मस्जिदें सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं बल्कि सामाजिक केंद्र भी हैं, जहां धार्मिक शिक्षा, शादी-ब्याह और सामूहिक निर्णय होते हैं।

सरकार इस्लामिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार में सक्रिय है और इस्लामी नियमों के अनुसार कानून में बदलाव करती रहती है।

पर्यटन में भी झलकता है इस्लाम

मालदीव आज विश्व का प्रमुख समुद्री पर्यटन स्थल है, लेकिन यहां का पर्यटन इस्लामी आदर्शों के अनुसार ढला हुआ है। मुस्लिम पर्यटकों के लिए विशेष सुविधाएं जैसे हलाल खाना, प्राइवेट फैमिली विला, स्पा, और नमाज स्थल उपलब्ध कराए जाते हैं।

मालदीव में इस्लाम धर्म के अनुरूप महिलाओं के ड्रेस कोड, सार्वजनिक आचरण और धार्मिक दिनचर्या का पालन भी होटलों और रिसॉर्ट्स में किया जाता है।

इतिहास की परछाईं आज भी मौजूद

आज जब हम मालदीव की चमक-दमक, नीले समुद्र और लक्ज़री रिसॉर्ट्स की बात करते हैं, तो उसके पीछे छिपी यह गहरी ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि को नहीं भूलना चाहिए।

मालदीव में इस्लाम धर्म केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि यह देश की आत्मा बन चुका है – एक ऐसा आत्मिक सूत्र जो देश को उसकी मूल पहचान से जोड़ता है।

मालदीव में इस्लाम धर्म का आगमन इतिहास के सबसे शांतिपूर्ण और स्थायी धार्मिक परिवर्तन में से एक माना जाता है। यह बदलाव न केवल धार्मिक था, बल्कि उसने पूरे देश की राजनीति, समाज और संस्कृति को एक नई दिशा दी।

896 साल बाद भी मालदीव अपनी इस्लामी पहचान को पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ जी रहा है। यह एक ऐसा उदाहरण है कि कैसे धर्म, समाज को जोड़ने वाली शक्ति बन सकता है — बशर्ते वह सच्चे हृदय से स्वीकारा जाए।

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