हाइलाइट्स
- सुप्रीम कोर्ट ने Interfaith Marriage मामले में मुस्लिम युवक को दी जमानत
- कोर्ट ने कहा: दो वयस्कों की Interfaith Marriage पर सिर्फ धर्म के आधार पर आपत्ति नहीं
- युवक ने हिंदू महिला से की थी शादी, पहचान छिपाने का आरोप
- शादी दोनों परिवारों की सहमति और उपस्थिति में हुई थी
- कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत चुनाव को बताया मौलिक अधिकार
Interfaith Marriage पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: धर्म नहीं, मर्जी मायने रखती है
Interfaith Marriage और विवाद की जड़
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक Interfaith Marriage से जुड़े बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि दो वयस्क आपसी सहमति से साथ रहना चाहते हैं, तो धर्म के अंतर को आधार बनाकर उनके रिश्ते पर आपत्ति नहीं की जा सकती। यह मामला उस मुस्लिम युवक से जुड़ा है जिसे उत्तराखंड पुलिस ने हिंदू लड़की से पहचान छिपाकर शादी करने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फरवरी 2025 में युवक की ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। अब करीब छह महीने की जेल के बाद युवक को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है।
कोर्ट का निर्णय: Interfaith Marriage के अधिकार को मान्यता
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि यदि शादी दोनों परिवारों की सहमति और जानकारी में हुई हो, और यदि पत्नी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया गया हो, तो Interfaith Marriage को लेकर आपत्ति करने का कोई आधार नहीं बनता।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“राज्य को अपीलकर्ता और उसकी पत्नी के साथ रहने पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। खासतौर पर तब जब उनकी शादी परिवार की सहमति से हुई हो। आगे की कार्यवाही उनकी सहमति से रहने की राह में बाधा नहीं बननी चाहिए।”
आरोपी ने क्या किया था?
Interfaith Marriage में दिया था हलफनामा
शादी के अगले दिन ही आरोपी सिद्दीकी ने एक शपथ पत्र में साफ कहा था कि वह अपनी पत्नी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं करेगा। उसने यह भी कहा कि उसकी पत्नी को अपने धर्म का पालन करने की पूरी आज़ादी होगी।
परिवार की मौजूदगी में हुआ विवाह
कोर्ट को बताया गया कि यह Interfaith Marriage दोनों परिवारों की जानकारी और मौजूदगी में संपन्न हुई थी। इसके बावजूद, बाद में कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने इस विवाह को लेकर आपत्ति जताई और मामला दर्ज करवा दिया गया।
उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट और Interfaith Marriage विवाद
क्या था मुकदमा?
उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन 2018 और भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत युवक पर आरोप लगाए गए कि उसने अपनी धार्मिक पहचान छिपाई और एक हिंदू महिला से धोखे से शादी की।
इन प्रावधानों के तहत अगर कोई व्यक्ति विवाह के उद्देश्य से अपनी धार्मिक पहचान छिपाता है, तो इसे अपराध माना जाता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महिला की सहमति, परिवार की स्वीकृति और युवक की नीयत को ध्यान में रखते हुए निर्णय दिया।
Interfaith Marriage को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय
भारत में Interfaith Marriage हमेशा से एक संवेदनशील सामाजिक और कानूनी मुद्दा रहा है। कई बार ऐसे मामलों में समाज, परिवार और कानून के बीच टकराव की स्थिति बनती है।
ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश मामला
इस फैसले में भी कोर्ट ने कहा था कि एक वयस्क महिला या पुरुष अपनी मर्जी से जीवन साथी चुन सकता है, चाहे उसका धर्म कोई भी हो।
शक्ति वहिनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग और खाप पंचायत के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि अंतरधार्मिक या अंतरजातीय विवाहों पर आपत्ति का कोई कानूनी आधार नहीं हो सकता।
सामाजिक दृष्टिकोण और Interfaith Marriage की चुनौतियां
समाज में व्याप्त भ्रांतियां
भारत में Interfaith Marriage को लेकर अभी भी व्यापक भ्रांतियां और विरोध मौजूद हैं। इसे ‘लव जिहाद’ जैसे राजनीतिक और सांप्रदायिक लेंस से देखा जाता है, जिससे कई बार दो वयस्कों के व्यक्तिगत फैसले को अपराध बना दिया जाता है।
महिला की स्वतंत्रता और एजेंसी
अक्सर ऐसे मामलों में महिला की सहमति को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। अदालतों ने बार-बार कहा है कि एक बालिग महिला अपने जीवन के निर्णय खुद ले सकती है और उसे राज्य या समाज से अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
Interfaith Marriage पर विशेषज्ञों की राय
सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक शर्मा का कहना है:
“यह फैसला भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूती देता है। Interfaith Marriage को लेकर समाज को जागरूक और सहिष्णु बनने की जरूरत है।”
सामाजिक कार्यकर्ता रचना देवी कहती हैं:
“यह सिर्फ एक जमानत नहीं, बल्कि एक बड़ा सामाजिक संदेश है कि प्यार धर्म से बड़ा है।”
Interfaith Marriage पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक नयी दिशा
इस निर्णय ने एक बार फिर से यह स्पष्ट किया है कि Interfaith Marriage भारतीय संविधान के दायरे में एक वैध और कानूनी रिश्ता है, जिसे समाज और सरकार द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए। यह फैसला सामाजिक एकता, धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों की जीत के रूप में देखा जा रहा है।