हाइलाइट्स
- संवेदनहीनता की पराकाष्ठा: गोंडा में 200 रुपये के विवाद में युवक की हत्या और फिर शव के साथ हैवानियत
- पोस्टमार्टम के बाद शव ले जाने से ड्राइवर ने किया इनकार, परिजनों के मिन्नतों के बावजूद नहीं मानी बात
- स्ट्रेचर फंसा तो बिना रुके दौड़ा दी एंबुलेंस, चलती गाड़ी से सड़क पर गिरा मृतक का शव
- स्थानीय लोगों में आक्रोश, प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल
- क्या अब मृतकों के सम्मान और इंसानियत की कोई कीमत नहीं रही?
गोंडा में 200 रुपये के लिए हत्या, फिर शव के साथ हैवानियत का मंजर
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से एक रूह कंपा देने वाली घटना सामने आई है, जिसने समाज की संवेदनहीनता को आईने की तरह दिखा दिया है। पहले 200 रुपये के मामूली विवाद में एक युवक की हत्या कर दी गई और फिर उसके शव के साथ जिस तरह की अमानवीयता हुई, उसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया।
यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही की बानगी पेश करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि हमारी सामाजिक चेतना कितनी गिर चुकी है। सवाल ये नहीं है कि कितने लोग थे, सवाल ये है कि इतने लोग देखते रहे और फिर भी चुप रहे।
कैसे हुई हत्या? – 200 रुपये बना जानलेवा
मृतक युवक की पहचान राजू (काल्पनिक नाम) के रूप में हुई है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, राजू का अपने पड़ोसी से 200 रुपये को लेकर कुछ दिनों से विवाद चल रहा था। यह विवाद धीरे-धीरे बढ़ता गया और अंततः झगड़े में तब्दील हो गया। घटना वाले दिन बहस ने हिंसक रूप ले लिया और पड़ोसी ने धारदार हथियार से राजू पर हमला कर दिया।
राजू को आनन-फानन में जिला अस्पताल लाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इसके बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा।
शव का अपमान – पोस्टमार्टम के बाद सामने आई असली संवेदनहीनता
हत्या की खबर के बाद लोगों को लगा कि अब प्रशासन उचित कार्यवाही करेगा, लेकिन असली संवेदनहीनता तो पोस्टमार्टम के बाद देखने को मिली।
शव को पोस्टमार्टम हाउस से गांव ले जाने के लिए परिजनों ने एंबुलेंस बुलाई। एंबुलेंस आई भी, लेकिन ड्राइवर ने शव को गाड़ी में चढ़ाने से मना कर दिया। कारण पूछने पर ड्राइवर ने कहा कि ‘स्ट्रेचर अटका हुआ है, मुझे जल्दी जाना है।’
ड्राइवर की बर्बरता – चलती एंबुलेंस से गिरा शव
परिजन किसी तरह स्ट्रेचर को गाड़ी में डालने लगे, तभी अचानक एंबुलेंस ड्राइवर ने वाहन स्टार्ट कर दिया।
शव पूरी तरह से लदा भी नहीं था कि एंबुलेंस चल पड़ी।
लोगों की चीख-पुकार के बीच जब तक वाहन रोका गया, राजू का शव सड़क पर गिर चुका था।
यह दृश्य देखकर मौजूद लोगों की रूह कांप गई।
स्थानीय नागरिकों ने एंबुलेंस रोककर ड्राइवर को जमकर फटकार लगाई। कई लोग तो वहां रो पड़े। लेकिन ड्राइवर ने अपने बचाव में सिर्फ इतना कहा – “मुझे ऊपर से ऑर्डर है कि देरी न हो।”
स्थानीय लोगों में गुस्सा, प्रशासन मौन
घटना की खबर आग की तरह फैली और मौके पर भारी भीड़ जुट गई। लोगों ने प्रशासन की चुप्पी और एंबुलेंस चालक की संवेदनहीनता के खिलाफ नारेबाजी की।
ग्रामीणों का आरोप है कि यह कोई पहली बार नहीं है। पहले भी एंबुलेंस चालक और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण कई बार असंवेदनशील घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।
संवेदनहीनता की हद पार!
गोंडा में 200 रुपये के विवाद में हत्या, और अब शव के साथ अमानवीयता!
पोस्टमार्टम के बाद एंबुलेंस में शव नहीं चढ़ाने दिया, स्ट्रेचर अटका तो ड्राइवर ने एंबुलेंस दौड़ा दी।
चलती गाड़ी से सड़क पर गिरा शव…
क्या इंसान की जान और सम्मान की कीमत सिर्फ इतनी रह गई है? pic.twitter.com/rzw1IsDqlx— ashokdanoda (@ashokdanoda) August 5, 2025
परिजनों का दर्द – “मरने के बाद भी चैन नहीं”
राजू के पिता ने रोते हुए कहा, “पहले तो मेरे बेटे को मार दिया गया और अब उसकी लाश को भी इज्जत नहीं दी गई। क्या गरीब की मौत की कोई कीमत नहीं?”
राजू की मां भी बेसुध हो गईं। परिजनों का कहना है कि प्रशासन की बेरुखी और संवेदनहीनता ने उनके जख्मों को और गहरा कर दिया है।
प्रशासन का जवाब – जांच के आदेश दिए गए
इस घटना पर जिला अधिकारी का कहना है कि मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सिविल सर्जन ने कहा कि “यह गंभीर मामला है, ड्राइवर को सस्पेंड किया जाएगा और अस्पताल प्रशासन से जवाब मांगा गया है।”
लेकिन सवाल यह है कि क्या जांच और निलंबन से संवेदनहीनता का इलाज हो पाएगा?
क्या हम इंसानियत खो चुके हैं?
इस पूरी घटना ने समाज के उस अंधेरे को उजागर किया है जहां अब मौत के बाद भी इंसान को सम्मान नहीं मिलता।
200 रुपये की वजह से हत्या और फिर शव के साथ ऐसा व्यवहार – यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं, यह सामाजिक चेतना की गिरावट है।
क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि अब मृतकों को भी इज्जत नहीं देंगे?
जरूरत है जवाबदेही और सुधार की
इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सिर्फ सस्पेंशन या जांच काफी नहीं हैं।
सिस्टम में जवाबदेही तय करनी होगी।
हर एंबुलेंस ड्राइवर, हर अस्पताल कर्मचारी को इंसानियत का पाठ पढ़ाना होगा।
सरकार और समाज दोनों को आत्ममंथन करना होगा – वरना कल यह लाश किसी और की नहीं, आपके घर की हो सकती है।