हाइलाइट्स:
- पहलगाम आतंकी हमले के बाद India Pakistan tensions चरम पर, भारत ने उठाए कड़े कदम
- सऊदी अरब, यूएई जैसे बड़े मुस्लिम देशों ने भारत के रुख को दी मजबूती
- तुर्की और कतर जैसे देश संतुलन साधने की रणनीति पर चल सकते हैं
- अफगानिस्तान ने परोक्ष रूप से भारत का समर्थन करने के संकेत दिए
- पाकिस्तान को अब तक किसी भी बड़े मुस्लिम देश से खुला समर्थन नहीं मिला
भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के पीछे की पृष्ठभूमि
7 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर India Pakistan tensions को भड़का दिया है। इस हमले में कई निर्दोष नागरिकों की जान गई, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान पर सीधे तौर पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया। भारत ने सिंधु जल संधि के निलंबन से लेकर पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करने और राजनयिक संबंधों में कटौती जैसे कड़े कदम उठाए। वहीं पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की धमकी देते हुए शिमला समझौते को रद्द करने की बात कही है। ऐसे नाजुक समय में मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया पर सबकी नजरें टिकी हैं।
सऊदी अरब: रणनीतिक और आर्थिक हितों से भारत के साथ
भारत के साथ गहराते रिश्ते
सऊदी अरब और भारत के बीच ऊर्जा सुरक्षा को लेकर गहरा संबंध है। भारत सऊदी अरब से कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है। साथ ही, सऊदी अरब भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर और रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में बड़े निवेश कर रहा है। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की ‘विजन 2030’ योजना में भारत को एक अहम साझेदार माना गया है। यही वजह है कि India Pakistan tensions के बीच सऊदी अरब आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख का समर्थन करता नजर आ रहा है।
यूएई: ऐतिहासिक साझेदारी का प्रभाव
आर्थिक और जनसांख्यिकीय जुड़ाव
यूएई और भारत के बीच पिछले दशक में संबंध ऐतिहासिक ऊंचाइयों पर पहुंचे हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 85 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। भारत यूएई का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। साथ ही, यूएई में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी काम करते हैं। ऐसे में India Pakistan tensions के दौरान यूएई का भारत के पक्ष में खड़ा होना स्वाभाविक है।
इंडोनेशिया और मिस्र: रणनीतिक सहयोग बढ़ता हुआ
इंडोनेशिया और मिस्र दोनों ही भारत के साथ समुद्री सुरक्षा, फूड प्रोसेसिंग, शिक्षा और रक्षा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहे हैं। इंडोनेशिया के साथ भारत की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए कई संयुक्त पहलें चल रही हैं। मिस्र ने हाल ही में भारत के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। India Pakistan tensions के दौरान इन दोनों देशों का झुकाव भारत की ओर दिखाई देता है।
बांग्लादेश: तटस्थता की राह पर
अस्थिर राजनीतिक स्थिति का प्रभाव
वर्तमान में बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का शासन है, जिसका नेतृत्व मो. यूनुस कर रहे हैं। हालांकि वे भारत के विरोध में कुछ बयान दे चुके हैं, लेकिन बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय हैसियत इतनी बड़ी नहीं है कि वह India Pakistan tensions में पाकिस्तान का खुलकर समर्थन कर सके। इसलिए बांग्लादेश के तटस्थ रहने की संभावना अधिक है।
तुर्की और कतर: संतुलन साधने की रणनीति
तुर्की, जो पारंपरिक रूप से पाकिस्तान का समर्थक रहा है, वर्तमान आर्थिक दबाव और भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को देखते हुए इस बार तटस्थ रहना चाहेगा। इसी तरह, कतर भी अपनी वैश्विक मध्यस्थ की भूमिका बनाए रखने के लिए संतुलन साधेगा। दोनों देशों के लिए भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना रणनीतिक रूप से ज्यादा फायदेमंद है, खासकर India Pakistan tensions के इस संवेदनशील दौर में।
अफगानिस्तान: भारत के साथ परोक्ष समर्थन
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं। भारत ने अफगानिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना के विकास में महत्वपूर्ण निवेश किया है। पाकिस्तान पर आरोप है कि वह अफगानिस्तान में अस्थिरता फैलाने की कोशिश करता रहा है। इसीलिए इस बार अफगानिस्तान का झुकाव भारत की ओर रहने की संभावना जताई जा रही है, खासकर India Pakistan tensions के इस संवेदनशील समय में।
पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर समर्थन नहीं
अब तक किसी भी बड़े मुस्लिम देश ने पाकिस्तान को खुला समर्थन नहीं दिया है। उल्टा, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और जापान जैसे देश भारत के आतंकवाद विरोधी कदमों का समर्थन कर चुके हैं। इससे पाकिस्तान की कूटनीतिक स्थिति बेहद कमजोर हो गई है। इस बार भारत ने वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा तैयार कर लिया है, जिसमें India Pakistan tensions को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत के रुख को समझा और सराहा है।
निष्कर्ष
इस पूरी स्थिति का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि सऊदी अरब, यूएई, इंडोनेशिया, मिस्र और अफगानिस्तान जैसे देश India Pakistan tensions के मुद्दे पर भारत के साथ खड़े हैं या तटस्थ भूमिका निभा रहे हैं। पाकिस्तान को अब तक कोई ठोस अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं मिला है। यह भारत की कूटनीतिक सफलता का परिचायक है कि उसने आतंकवाद के मुद्दे पर वैश्विक समर्थन प्राप्त किया है। आने वाले समय में भी मुस्लिम देशों का यह रुख भारत के पक्ष में बना रह सकता है, जिससे पाकिस्तान की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।