हाइलाइट्स
- भारत-पाकिस्तान विभाजन को लेकर एनसीईआरटी ने नया शैक्षिक मॉड्यूल जारी किया
- इस मॉड्यूल का नाम ‘विभाजन के अपराधी’ रखा गया है
- जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन को विभाजन का जिम्मेदार बताया गया
- कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के लिए अलग-अलग स्वरूप में तैयार
- पोस्टर, बहस, प्रोजेक्ट और चर्चाओं के जरिए पढ़ाया जाएगा इतिहास
भारत-पाकिस्तान विभाजन आधुनिक भारतीय इतिहास का सबसे दर्दनाक और जटिल अध्याय है। यह केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं था, बल्कि करोड़ों लोगों की किस्मत बदल देने वाली घटना थी। लाखों लोगों की जान गई, करोड़ों को अपना घर छोड़ना पड़ा और पूरे उपमहाद्वीप को हिंसा, अविश्वास और शरणार्थी संकट से जूझना पड़ा। अब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने इसी विभाजन को छात्रों के सामने नए नजरिए से प्रस्तुत करने के लिए एक विशेष शैक्षिक मॉड्यूल जारी किया है।
इस मॉड्यूल का शीर्षक है – ‘विभाजन के अपराधी’, जिसमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के लिए तीन प्रमुख शख्सियतें जिम्मेदार थीं – मोहम्मद अली जिन्ना, कांग्रेस और लॉर्ड माउंटबेटन।
मॉड्यूल की खास बातें
तीन प्रमुख जिम्मेदार
एनसीईआरटी द्वारा तैयार किए गए इस नए मॉड्यूल में बताया गया है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के पीछे तीन प्रमुख कारक थे:
- जिन्ना – जिन्होंने पाकिस्तान की मांग को अडिग होकर उठाया।
- कांग्रेस – जिसने परिस्थितियों के दबाव में विभाजन को स्वीकार किया।
- लॉर्ड माउंटबेटन – जिन्होंने इसे तत्काल लागू करने का निर्णय लिया।
नेहरू का ऐतिहासिक भाषण
इस मॉड्यूल में पंडित जवाहरलाल नेहरू का जुलाई 1947 का एक भाषण भी शामिल किया गया है, जिसमें उन्होंने कहा था –
“विभाजन बुरा है, लेकिन एकता की कीमत चाहे जो भी हो, गृहयुद्ध की कीमत उससे कहीं ज्यादा होगी।”
यह कथन उस समय की कठिन परिस्थितियों को साफ तौर पर दर्शाता है, जब देश टूटने की दहलीज पर था।
इतिहास के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश
मौत और विस्थापन की त्रासदी
मॉड्यूल में बताया गया है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान लगभग 6 लाख लोग मारे गए और 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए। यह आंकड़ा छात्रों को यह समझने में मदद करेगा कि विभाजन केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि मानवीय त्रासदी भी थी।
पंजाब और बंगाल पर असर
विभाजन के परिणामस्वरूप पंजाब और बंगाल की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। कृषि, व्यापार और सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह बिखर गया। यही कारण था कि भारत-पाकिस्तान विभाजन को केवल राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक-आर्थिक तबाही के रूप में भी देखा जाता है।
जम्मू-कश्मीर और भविष्य की चुनौतियाँ
मॉड्यूल में यह भी स्पष्ट किया गया है कि विभाजन ने जम्मू-कश्मीर को अस्थिरता की ओर धकेला। इसी अस्थिरता ने आगे चलकर आतंकवाद और सीमा विवादों को जन्म दिया।
कैसे पढ़ाया जाएगा यह मॉड्यूल?
शिक्षण की नई पद्धति
एनसीईआरटी ने इस मॉड्यूल को केवल किताबों तक सीमित नहीं रखा है। इसे छात्रों तक पहुँचाने के लिए रचनात्मक तरीकों का इस्तेमाल किया जाएगा, जैसे–
- पोस्टर बनाना
- वाद-विवाद प्रतियोगिताएं
- समूह चर्चाएं
- प्रोजेक्ट्स और निबंध लेखन
- रोल-प्ले गतिविधियाँ
इन तरीकों से छात्रों को भारत-पाकिस्तान विभाजन की जटिलताओं को गहराई से समझने का अवसर मिलेगा।
क्यों जरूरी है यह कदम?
इतिहास केवल तारीखों और घटनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक सीख भी है। आज की युवा पीढ़ी को यह जानना जरूरी है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन क्यों हुआ, किसने इसे आगे बढ़ाया और इसके परिणाम क्या हुए।
इस मॉड्यूल के जरिए छात्रों को केवल तथ्य नहीं बताए जाएंगे, बल्कि उन्हें सोचने-समझने और अपने विचार विकसित करने का भी मौका मिलेगा।
विशेषज्ञों की राय
इतिहासकारों का मानना है कि यह कदम छात्रों को आधिकारिक तथ्यों और वास्तविकताओं से परिचित कराने के लिए बेहद अहम है। अक्सर भारत-पाकिस्तान विभाजन को केवल स्वतंत्रता संग्राम की परिणति के रूप में पढ़ाया जाता है, लेकिन इसकी सामाजिक और मानवीय कीमतों पर कम चर्चा होती है। यह मॉड्यूल उस कमी को दूर करने का प्रयास है।
एनसीईआरटी का यह नया मॉड्यूल छात्रों को भारत-पाकिस्तान विभाजन के गहरे पहलुओं से परिचित कराएगा। यह न केवल इतिहास की सच्चाई बताएगा, बल्कि बच्चों में सोचने-समझने की क्षमता भी विकसित करेगा। साथ ही यह कदम विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस को सार्थक बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण साबित होगा।