क्या 2030 से अमर हो जाएगा इंसान? जानिए Google वैज्ञानिक की हैरान कर देने वाली बात

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हाइलाइट्स

  • अमरता का दावा करने वाले वैज्ञानिक रे कुर्जवील ने कहा – 2030 तक इंसान अमर हो सकता है।
  • नैनोटेक्नोलॉजी और जेनेटिक्स को बताया गया अमरता की चाबी।
  • इंसानी शरीर में मौजूद नैनोबॉट्स करेंगे सेल्स की मरम्मत और बुढ़ापा रोकेंगे।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्लाउड तकनीक के सहारे होगा ‘डिजिटल जीवन’।
  • रे कुर्जवील की 86% से अधिक भविष्यवाणियां अब तक सही साबित हो चुकी हैं।

क्या इंसान वाकई अमर हो सकता है?

2030 तक अमरता संभव होगी – यह कोई काल्पनिक विज्ञान कथा नहीं, बल्कि गूगल के पूर्व इंजीनियर और भविष्यवाणी विशेषज्ञ रे कुर्जवील का दावा है। कुर्जवील का मानना है कि आने वाले पांच वर्षों में तकनीक इस स्तर तक पहुंच जाएगी कि इंसान कभी न मरने वाली प्रजाति बन सकता है।

उन्होंने न सिर्फ यह बात कही है, बल्कि वैज्ञानिक तर्क और तकनीकी प्रगति के आधार पर इसका खाका भी पेश किया है। अमरता अब केवल धार्मिक या दार्शनिक चर्चा का विषय नहीं रह गई, बल्कि यह विज्ञान की प्रयोगशाला में आकार ले रही एक वास्तविकता बनती दिख रही है।

रे कुर्जवील कौन हैं?

रे कुर्जवील अमेरिका के प्रसिद्ध आविष्कारक, लेखक और भविष्यवक्ता हैं। वे गूगल के इंजीनियरिंग डायरेक्टर भी रह चुके हैं। उन्होंने अब तक 147 भविष्यवाणियां की हैं, जिनमें से 86% से ज्यादा सही साबित हुई हैं

उनकी प्रसिद्ध किताब The Singularity is Near में उन्होंने पहली बार तकनीक के सहारे अमरता प्राप्त करने की बात कही थी। इस किताब में उन्होंने Genetics, Nanotechnology और Robotics को अमरता की तीन मुख्य कुंजियाँ बताया है।

तकनीक कैसे दिलाएगी अमरता?

नैनोबॉट्स होंगे शरीर के अंदरूनी डॉक्टर

रे कुर्जवील के मुताबिक, निकट भविष्य में ऐसे सूक्ष्म रोबोट्स यानी नैनोबॉट्स तैयार हो जाएंगे, जो इंसान के शरीर के अंदर तैरते रहेंगे। ये बॉट्स क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत करेंगे, कैंसर जैसी बीमारियों को रोकेंगे, और शरीर को लगातार ‘युवा’ बनाए रखेंगे।

इन बॉट्स के कारण शरीर में बुढ़ापा थम जाएगा, रोगों से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी, और इस प्रकार इंसान काल के प्रभाव से बाहर निकल सकता है।

आनुवंशिकी में क्रांतिकारी बदलाव

Genetics के क्षेत्र में हुए विकास से वैज्ञानिक अब DNA को संशोधित कर रहे हैं। रे कुर्जवील मानते हैं कि हम अपने जीन को इस प्रकार मॉडिफाई कर सकते हैं कि शरीर कभी बूढ़ा ही न हो।

यह तकनीक न केवल रोगों को जड़ से मिटा सकती है, बल्कि हमारे शरीर को ‘self-healing’ मशीन में बदल सकती है – जो खुद को ठीक करता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अमरता का मेल

2029 तक कंप्यूटर होंगे इंसानों जितने समझदार

कुर्जवील की एक और बड़ी भविष्यवाणी यह है कि 2029 तक कंप्यूटर इंसानों जैसी समझ रखने लगेंगे। यह स्थिति AI और इंसान के बीच की दीवार को गिरा देगी।

उनका कहना है कि भविष्य में इंसान और AI एक-दूसरे से इतने घुलमिल जाएंगे कि फर्क कर पाना मुश्किल होगा।

डिजिटल अमरता की अवधारणा

कुर्जवील यह भी मानते हैं कि इंसान का मस्तिष्क एक दिन क्लाउड कंप्यूटिंग में अपलोड किया जा सकेगा। यानी हमारे विचार, यादें, और पहचान डिजिटल रूप में संग्रहीत होंगे।

अगर शरीर खत्म भी हो जाए, तो मस्तिष्क को फिर से डाउनलोड करके किसी कृत्रिम शरीर में लगाया जा सकेगा। यह स्थिति डिजिटल अमरता कहलाएगी – जिसमें शरीर तो बदल सकता है, लेकिन ‘व्यक्ति’ अमर रहेगा।

कुर्जवील की कुछ सफल भविष्यवाणियाँ

  • 1990 में, उन्होंने कहा था कि 2000 तक कंप्यूटर इंसान को शतरंज में हरा देगा। 1997 में IBM का ‘Deep Blue’ गैरी कास्परोव को हरा चुका था।
  • 1999 में, उन्होंने कहा था कि 2023 तक एक हज़ार डॉलर का लैपटॉप इंसानी मस्तिष्क जितना डेटा प्रोसेस कर सकेगा – जो आज की AI क्षमताओं में सच है।
  • 2010 तक, तेज़ वायरलेस इंटरनेट दुनिया के हर कोने में होगा – और आज 5G सामान्य हो चुका है।

वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिक्रिया

वैज्ञानिक समाज में कुर्जवील के दावे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ वैज्ञानिकों को यह विचार अत्यधिक आशावादी और कल्पनाशील लगता है, जबकि कुछ इसे वास्तविक तकनीकी संभावना मानते हैं।

MIT, Stanford और Google AI Lab जैसे संस्थानों में अमरता को लेकर शोध कार्य जारी हैं। हालांकि, इसकी नैतिकता और सामाजिक प्रभाव पर बहस भी उतनी ही तीव्र है।

नैतिक और सामाजिक सवाल

  • अगर अमरता संभव हुई, तो जनसंख्या नियंत्रण कैसे होगा?
  • क्या यह तकनीक केवल अमीरों तक सीमित रहेगी?
  • क्या एक अमर जीवन बोरियत और मानसिक थकान नहीं लाएगा?
  • क्या हम ‘प्रकृति’ की सीमाओं को तोड़कर ईश्वर की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं?

ये सभी प्रश्न आज के विज्ञान और समाज के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि खुद अमरता का विचार।

 क्या अमरता सपना है या आने वाली सच्चाई?

आज की तारीख में विज्ञान जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, उसे देखकर अमरता कोई असंभव सपना नहीं लगती। हालांकि इसके रास्ते में अभी कई तकनीकी, नैतिक और सामाजिक चुनौतियाँ हैं, लेकिन रे कुर्जवील जैसे वैज्ञानिक हमें यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि –

क्या इंसान मरने के लिए बना भी है?

शायद भविष्य का इंसान ‘मृत्यु’ को बीते युग की बात माने, और जीवन को ‘डिजिटल अमरता’ के रूप में हमेशा के लिए जी सके।

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