हाइलाइट्स
- लखनऊ कोर्ट ने Human Flesh Eating मामले में राजा कोलंदर और बच्छराज कोल को उम्रकैद की सजा दी
- आरोपी मरने वालों के मांस को खाता और खोपड़ी से सूप बनाकर पीता था
- 2000 में मनोज सिंह और ड्राइवर रवि श्रीवास्तव की हत्या में दोषी पाए गए
- इलाहाबाद कोर्ट ने 2012 में भी एक पत्रकार की हत्या के मामले में आजीवन कारावास दिया था
- घटना ने यूपी की कानून व्यवस्था और समाज में फैले भय को उजागर किया
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की एडीजे कोर्ट ने 19 मई को एक ऐसे Human Flesh Eating केस में ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस भीषण और अमानवीय अपराध में नरभक्षी कहे जाने वाले राम निरंजन उर्फ राजा कोलंदर और उसके साथी बच्छराज कोल को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
22 साल पुराने मामले का फैसला: इंसाफ के लिए लंबा इंतज़ार
यह मामला वर्ष 2000 का है, जब राजा कोलंदर और बच्छराज कोल ने 22 वर्षीय मनोज सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव को किडनैप कर बेरहमी से हत्या कर दी थी। बाद में Human Flesh Eating प्रवृत्ति के तहत उनके शवों का मांस खाया गया और खोपड़ियों का उबालकर सूप बनाकर पीया गया।
जांच में खुला खौफनाक राज
जांच एजेंसियों ने बताया कि राजा कोलंदर स्वयं को “राजा” कहता था और उसका दावा था कि मानव मांस खाने से उसमें ‘शक्ति’ आती है। वह वर्षों से Human Flesh Eating गतिविधियों में संलग्न था। यह खुलासा तब हुआ जब पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के बाद पुलिस को जांच में कई शवों के अवशेष जंगलों में मिले।
अदालत का फैसला: कानून ने किया न्याय
लखनऊ की एडीजे कोर्ट ने राजा कोलंदर और बच्छराज कोल को दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके साथ ही दोनों पर 2.5-2.5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
इससे पहले भी दोषी ठहराए गए थे आरोपी
राजा कोलंदर और उसके साथी को 2012 में इलाहाबाद कोर्ट ने पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के मामले में भी उम्रकैद की सजा सुनाई थी। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब कोर्ट ने पाया कि यह हत्या Human Flesh Eating के लिए की गई थी।
समाज पर असर: डर, अविश्वास और क्रूरता का प्रतीक
इस केस ने केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। Human Flesh Eating जैसे मामले केवल फिल्मों तक सीमित माने जाते थे, लेकिन जब यह हकीकत में सामने आया, तो समाज का भरोसा कानून व्यवस्था पर डगमगाने लगा।
ग्रामीणों में भय का माहौल
राजा कोलंदर जिस क्षेत्र में रहता था, वहां के ग्रामीण आज भी इस घटना को याद कर सिहर उठते हैं। वे बताते हैं कि वह अक्सर अजीब हरकतें करता था, रात में जंगलों में जाता और कई बार मानव हड्डियां घर के बाहर पाई जाती थीं।
कानून व्यवस्था पर उठते सवाल
यह केस उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था और आपराधिक जांच प्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है। आखिर कैसे इतने वर्षों तक एक Human Flesh Eating अपराधी खुलेआम घूमता रहा?
देरी से मिला इंसाफ
हालांकि अंततः न्याय मिला, लेकिन यह सोचने पर मजबूर करता है कि अगर जांच समय पर होती, तो कितनी जिंदगियां बचाई जा सकती थीं।
दूसरी घटनाएं: मौसम की मार से भी मौतें
जब राज्य में अदालत Human Flesh Eating के मामलों पर सख्ती दिखा रही थी, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में मौसम ने कहर बरपाया।
- आगरा में 3 मौतें
- कासगंज में 6 मौतें
- एटा में 5
- फिरोजाबाद, बदायूं, टंडला में कुल 4 मौतें
- कानपुर और बुंदेलखंड में कुल 22 मौतें
इन घटनाओं ने प्रदेश में दोहरी त्रासदी उत्पन्न कर दी – एक ओर कानून के हाथों इंसाफ और दूसरी ओर प्रकृति का कहर।
मनोवैज्ञानिक पहलू: Human Flesh Eating मानसिक विकृति या तांत्रिक अंधविश्वास?
राजा कोलंदर का कहना था कि मानव मांस खाने से वह अमर हो सकता है और यह शक्ति उसे अघोरी साधना से मिली है। यह साफ है कि Human Flesh Eating का यह मामला केवल आपराधिक नहीं, बल्कि मानसिक रोग और सामाजिक अंधविश्वास का भी प्रतीक है।
पुलिस की भूमिका: जांच और सबूत
पुलिस ने बड़ी मेहनत से सबूत इकट्ठा किए — डीएनए टेस्ट, शवों के अवशेष, चश्मदीद गवाहों के बयान, और राजा कोलंदर के बयान जो अंततः कोर्ट में उसके खिलाफ निर्णायक साबित हुए।
समाज को चाहिए चेतना और सख्ती
Human Flesh Eating जैसे मामलों से यह स्पष्ट है कि समाज को केवल कानून से नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देकर ही ऐसे अपराधों से बचाया जा सकता है।
यह केस एक चेतावनी है – अगर समय रहते हम नहीं चेते, तो राजा कोलंदर जैसे नरभक्षी फिर से जन्म ले सकते हैं।