हाइलाइट्स
- HospitalNegligence का ताज़ा मामला प्रयागराज के SRN अस्पताल परिसर से, बुजुर्ग महिला की दर्दनाक मौत
- तीन दिन तक वार्ड के बाहर बिना मदद पड़ी रही वृद्धा; शव पर रेंगते रहे कीड़े
- स्थानीय लोगों की शिकायत के बाद ही हरकत में आया अस्पताल प्रशासन
- सुरक्षाकर्मियों और सफ़ाई कर्मचारियों की लापरवाही पर उठे सवाल, जांच कमेटी गठित
- हाईकोर्ट पहले ही SRN अस्पताल की बदहाल व्यवस्था पर कर चुका है कड़ी टिप्पणी (HospitalNegligence)
घटना का पूरा विवरण
शनिवार शाम प्रयागराज के स्वरूप रानी नेहरू (SRN) अस्पताल में HospitalNegligence का एक और भयावह चेहरा सामने आया। सर्जिकल वार्ड के बाहर शेड के नीचे एक असहाय बुजुर्ग महिला तीन दिनों से पड़ी थी। उसकी हालत इतनी ख़राब थी कि वह पानी तक माँगने के लिए उठ नहीं सकी। धीरे‑धीरे उसकी साँस थमी, मगर किसी ने परवाह नहीं की। मौत के बाद भी शव वहीं निर्वस्त्र पड़ा रहा, जिस पर कीड़े चलने लगे। HospitalNegligence शब्द सिर्फ़ कागज़ी नहीं, बल्कि हाड़‑तोड़ हक़ीक़त बनकर सामने आया।
डॉक्टरों और स्टाफ की HospitalNegligence चूक
अस्पताल के अंदर और बाहर सैकड़ों कर्मचारी तैनात हैं, मगर वार्ड के दरवाज़े पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने भी बिना लाइफ़‑सपोर्ट तड़पती इस महिला को अनदेखा कर दिया। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अमित सिंह ने स्वीकार किया कि सूचना मिलते ही शव को पोस्टमार्टम हाउस भेजा गया, पर सवाल यह है कि HospitalNegligence को रोका क्यों नहीं गया?
चश्मदीदों की कहानी
वार्ड के सामने दवा बेचने वाले मोहम्मद सादिक़ बताते हैं, “बुजुर्ग माँ लगातार इशारे से पानी माँग रही थीं। मैंने कंपाउंडर से कहा भी, पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यह खुला HospitalNegligence है।”
प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल
SRN अस्पताल प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी केंद्रों में गिना जाता है। अस्पताल की आधिकारिक साइट पर इसे “टर्शरी‑केयर” सुविधा बताया गया है, जहाँ रोज़ाना हज़ारों मरीज़ आते हैं । लेकिन हाईकोर्ट ने बीते महीनों में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि SRN अस्पताल “मॉर्चरी” में तब्दील हो चुका है—सीधे‑सीधे HospitalNegligence का परिणाम ।
HospitalNegligence पर उठी आवाजें
स्वयंसेवी संस्था जनकूट की अध्यक्ष नीता तिवारी कहती हैं, “हर दो‑तीन महीने में SRN से HospitalNegligence की ख़बर आती है। इस बार मामला हत्या समान है, क्योंकि मौन रहकर मदद न करना भी अपराध है।”
हाईकोर्ट की भी जताई चिंता
इलाहाबाद हाईकोर्ट की हालिया टिप्पणी में कहा गया था कि सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्थिति पर राज्य सरकार तत्काल कड़े कदम उठाए। अदालत की यह टिप्पणी भी HospitalNegligence पर सीधा प्रहार है, जो अब सड़ांध मारती व्यवस्था को बेनकाब करती है
मानवीय पहलू और सामाजिक जिम्मेदारी
जब अस्पताल—जो जीवन बचाने का स्थल है—ही असंवेदनशील हो जाए, तो समाज की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। सड़क किनारे बेसहारा बुजुर्ग, अपंग या मानसिक रूप से अशक्त लोगों को अस्पताल पहुँचाना ही पर्याप्त नहीं; उन पर नजर भी रखनी होगी, ताकि दुबारा HospitalNegligence न हो।
HospitalNegligence रोकने के लिए क्या करें?
- War Room प्रणाली: हर सरकारी अस्पताल में 24×7 ‘वार‑रूम’ हो, जहाँ संकटकालीन कॉल रिकॉर्ड हों और तुरंत ग्राउंड‑स्टाफ भेजा जाए—HospitalNegligence पर पहला प्रहार।
- सामुदायिक निगरानी: स्थानीय स्वयंसेवक समूह अस्पताल परिसरों में नियमित निगरानी रखें। किसी एक व्यक्ति की भी तड़पती तस्वीर सामने आए तो सोशल‑मीडिया अलर्ट से प्रशासन को घेरें—HospitalNegligence की रोकथाम का सशक्त हथियार।
- डिजिटल ट्रैकिंग: बायोमेट्रिक समय‑पालन सिर्फ़ डॉक्टरों के लिए नहीं, सुरक्षाकर्मियों और सफ़ाई स्टाफ के लिए भी—HospitalNegligence में लापरवाही साबित होने पर तुरंत वेतन रोकें।
विशेषज्ञों की राय
स्वास्थ्य प्रबंधन विशेषज्ञ डॉ. रश्मि अवस्थी मानती हैं, “जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, HospitalNegligence जैसे मामले दोहराते रहेंगे। हमें क़ानून में ‘ड्यूटी टू असिस्ट’ क्लॉज़ जोड़ना चाहिए।” उनके अनुसार यह क्लॉज़ मेडिकल‑स्टाफ को कानूनी मजबूरी देगा कि वे किसी भी लावारिस मरीज़ की स्थिति रिपोर्ट करें।
प्रयागराज का यह दिल दहला देने वाला दृश्य याद दिलाता है कि HospitalNegligence सिर्फ़ शब्द नहीं, बल्कि मौत का दूसरा नाम बन चुका है। तीन दिनों तक-–दर्द, प्यास और लाचारी का वह अनसुना त्राहिमाम—हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य‑व्यवस्था पर गहरे प्रश्नचिह्न छोड़ गया है। अगर अब भी कड़े कदम नहीं उठे, तो HospitalNegligence की यह चुप्पी न जाने और कितनी जिंदगियाँ निगल जाएगी