हाइलाइट्स
- हजरतबल मस्जिद विवाद में तस्वीर लगाने को लेकर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का बड़ा बयान
- आल इंडिया मुस्लिम जमात ने कहा – इस्लाम में मस्जिद और दरगाह में तस्वीर लगाना नाजायज
- नमाज पढ़ने पहुंचे लोगों ने मस्जिद में तस्वीर देख तोड़ दी, वक्फ बोर्ड ने जताई आपत्ति
- मौलाना रजवी बोले – समाज को सतर्क रहने और पुरानी परंपरा का पालन करने की जरूरत
- विवाद को लेकर जम्मू-कश्मीर में बढ़ी बहस, धार्मिक और सामाजिक हलकों में चर्चा तेज
हजरतबल मस्जिद विवाद का आगाज़
श्रीनगर की हजरतबल मस्जिद विवाद ने बीते दिनों एक नया मोड़ ले लिया है। मस्जिद और दरगाह के भीतर अशोक पटीका की तस्वीर लगाए जाने से धार्मिक माहौल गर्मा गया। इस कदम का विरोध करते हुए आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कड़ा ऐतराज जताया। उन्होंने साफ कहा कि इस्लामिक परंपरा के अनुसार मस्जिदों और दरगाहों में किसी भी तरह की तस्वीर या मूर्ति लगाना पूरी तरह नाजायज है।
मौलाना का कहना था कि सदियों से मज़हबी स्थलों की परंपरा ऐसी रही है कि वहां केवल इबादत होती है और तस्वीर या मुजस्समा लगाने का कोई स्थान नहीं है।
तस्वीर पर विरोध और नमाज में रुकावट
नमाजियों ने तोड़ी तस्वीर
जानकारी के अनुसार, कुछ स्थानीय लोग जब नमाज पढ़ने हजरतबल मस्जिद पहुंचे तो उन्होंने भीतर लगी तस्वीर को देखा और तुरंत उसे तोड़ दिया। उनके मुताबिक, तस्वीर मौजूद होने की स्थिति में नमाज कबूल नहीं होती।
वक्फ बोर्ड की आपत्ति
इस घटना पर जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने कड़ी आपत्ति जताई। बोर्ड का कहना है कि धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और मर्यादा का ध्यान रखना हर किसी की जिम्मेदारी है, और बिना अनुमति किसी भी वस्तु को तोड़ना सही नहीं है। हालांकि इस पूरे मसले ने हजरतबल मस्जिद विवाद को और गहरा कर दिया।
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी की प्रतिक्रिया
तस्वीर को नाजायज करार
मौलाना रजवी ने अपने बयान में कहा कि इस्लाम में तस्वीर या मूर्ति की इजाजत नहीं है, खासकर मस्जिदों और दरगाहों में। उन्होंने कहा, “जहां तस्वीर मौजूद हो वहां नमाज अदा नहीं की जा सकती। अगर कोई नमाज पढ़ भी ले, तो वह कबूल नहीं होगी।”
समाज को चेतावनी
उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि कुछ तत्व जानबूझकर माहौल बिगाड़ने के लिए ऐसे कदम उठाते हैं। मौलाना ने लोगों से अपील की कि वे मज़हबी स्थलों पर परंपरा और शरीअत का पालन करें और किसी भी विवादास्पद कदम से दूर रहें।
परंपरा और शरीअत का महत्व
पुरानी परंपराओं का पालन
इस्लामिक परंपराओं के जानकार बताते हैं कि मस्जिदें और दरगाहें इबादत की जगह हैं, जहां केवल अल्लाह की याद और नमाज अदा की जाती है। यहां तस्वीर या मूर्ति रखना शरीअत के खिलाफ माना जाता है। हजरतबल मस्जिद विवाद में यही पहलू सबसे बड़ा कारण बना है।
शरीअत का स्पष्ट निर्देश
शरीअत के अनुसार, जहां तस्वीरें या मुजस्समे मौजूद हों वहां नमाज की इजाजत नहीं है। इस वजह से मुस्लिम समाज के लिए यह मुद्दा धार्मिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील बन गया है।
समाज और राजनीति पर असर
विवाद ने खींचा ध्यान
हजरतबल मस्जिद विवाद सिर्फ एक धार्मिक बहस तक सीमित नहीं रहा बल्कि इसने सामाजिक और राजनीतिक हलकों का भी ध्यान खींचा है। जम्मू-कश्मीर के संवेदनशील हालात को देखते हुए हर छोटी घटना बड़े विवाद का रूप ले सकती है।
धार्मिक उलेमाओं की राय
कई अन्य उलेमा और धार्मिक विद्वानों ने भी मौलाना रजवी की राय का समर्थन किया और कहा कि धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाए रखना सबसे अहम है।
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी: हमेशा रहे सक्रिय
हर मुद्दे पर खुलकर बोलते हैं
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी मजहबी और सामाजिक दोनों ही मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखते आए हैं। चाहे राष्ट्रीय स्तर का विवाद हो या अंतरराष्ट्रीय मुद्दा, वे हर बार खुलकर प्रतिक्रिया देते हैं।
संवैधानिक पहलू पर भी जोर
उनकी खासियत यह भी है कि वे केवल मज़हबी दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रहते, बल्कि संवैधानिक पहलुओं और सामाजिक प्रभावों को भी सामने रखते हैं। यही वजह है कि उनके बयानों पर अक्सर पूरे देश में चर्चा होती है।
आगे का रास्ता: समाधान या टकराव?
समाज को सतर्क रहने की सलाह
मौलाना ने स्पष्ट कहा है कि हजरतबल मस्जिद विवाद समाज में कुछ लोगों की शरारत से पैदा हुआ है। ऐसे में जरूरत है कि लोग सतर्क रहें और किसी भी तरह के उकसावे में न आएं।
प्रशासन की भूमिका
विवाद को सुलझाने में प्रशासन और वक्फ बोर्ड की भूमिका अहम होगी। धार्मिक मामलों में पारदर्शिता और लोगों की भावनाओं का सम्मान करना ही शांति और सौहार्द का रास्ता है।
हजरतबल मस्जिद विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाए रखने के लिए समाज कितना जागरूक है। तस्वीर लगाने का यह मामूली कदम धार्मिक विवाद में बदल गया, जो इस्लाम की परंपराओं और शरीअत के खिलाफ माना गया। मौलाना शहाबुद्दीन रजवी की अपील स्पष्ट है – मज़हबी स्थलों पर केवल परंपरा और शरीअत का पालन होना चाहिए, ताकि समाज में अमन और भाईचारा कायम रह सके