हाइलाइट्स
- सऊदी अरब में फांसी के मामलों में हाल के सालों में लगातार बढ़ोतरी, एक दिन में आठ लोगों को मिली मौत की सजा।
- चार सोमाली, तीन इथियोपियाई और एक सऊदी नागरिक को अलग-अलग अपराधों में फांसी।
- ड्रग्स तस्करी से जुड़े मामलों में फांसी की संख्या में तेज़ वृद्धि।
- 2024 में अब तक 230 लोगों को दी गई फांसी, जिनमें से 154 ड्रग्स मामलों से जुड़े।
- मानवाधिकार समूहों ने फैसलों को गरीब और हाशिए पर पड़े लोगों के खिलाफ बताया।
सऊदी अरब में फांसी का नया रिकॉर्ड
सऊदी अरब में फांसी के आंकड़े इस साल पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं। हाल ही में एक ही दिन में आठ लोगों को मौत की सजा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई बहस छेड़ दी है। इनमें चार सोमाली और तीन इथियोपियाई नागरिक शामिल थे, जिन्हें नजरान क्षेत्र में हशीश की तस्करी के आरोप में फांसी दी गई। इसके अलावा, एक सऊदी नागरिक को अपनी मां की हत्या के जुर्म में मौत की सजा दी गई।
सरकारी एजेंसी सऊदी प्रेस एजेंसी के अनुसार, इन सभी मामलों में कोर्ट ने अंतिम सुनवाई के बाद सजा को मंजूरी दी। लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि आरोपियों को उचित कानूनी सहायता और न्यायपूर्ण मुकदमे का अवसर नहीं मिला।
ड्रग्स तस्करी और मौत की सजा का बढ़ता सिलसिला
पिछले कुछ सालों में सऊदी अरब में फांसी का सबसे बड़ा कारण ड्रग्स से जुड़े अपराध रहे हैं। ब्रिटेन स्थित संगठन Reprieve और ESOHR (European Saudi Organization for Human Rights) के अनुसार, ड्रग्स मामलों में दी जाने वाली मौत की सजा पर 2020 में अनौपचारिक रोक लगी थी। लेकिन 2021 में यह रोक हटा दी गई, जिसके बाद फांसी के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई।
आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में अब तक 230 लोगों को फांसी दी जा चुकी है, जिनमें से 154 मामले ड्रग्स तस्करी से जुड़े थे। 2023 में यह संख्या 345 थी, जिसमें लगभग आधे मामले ऐसे थे जो घातक अपराध नहीं माने जाते।
विदेशी नागरिकों पर सख्ती ज्यादा
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि सऊदी अरब में फांसी का सबसे बड़ा असर विदेशी नागरिकों पर पड़ता है। 2010 से 2021 के बीच, ड्रग्स से जुड़े अपराधों में सऊदी नागरिकों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक विदेशी नागरिकों को मौत की सजा दी गई।
दिलचस्प बात यह है कि सऊदी अरब की कुल जनसंख्या में विदेशी नागरिकों की हिस्सेदारी केवल 36% है, लेकिन फांसी पाने वालों में उनका अनुपात कहीं ज्यादा है।
मानवाधिकार संगठनों की चिंता
Reprieve के MENA डेथ पेनाल्टी प्रमुख, जीद बसयूनी का कहना है—
“ड्रग्स के खिलाफ युद्ध दुनिया भर में असफल रहा है, लेकिन सऊदी अरब में इसका जवाब गरीब और हाशिए पर खड़े लोगों को फांसी देकर दिया जा रहा है। इन मामलों में आरोपियों को वकील या अनुवादक जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पातीं।”
ESOHR ने भी इसी तरह की चिंता जताई है। उनका कहना है कि सऊदी अरब में फांसी की बढ़ती संख्या न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करती है।
अंतरराष्ट्रीय आलोचना और सऊदी सरकार का पक्ष
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सऊदी अरब में फांसी की आलोचना लगातार होती रही है। संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठनों ने इन सजाओं को क्रूर और असंगत करार दिया है।
वहीं, सऊदी सरकार का कहना है कि सख्त सजा देने से अपराधों में कमी आती है और देश की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। उनका तर्क है कि ड्रग्स तस्करी से समाज और युवाओं पर गंभीर असर पड़ता है, जिसे रोकने के लिए कठोर कानून जरूरी हैं।
भविष्य में क्या बदलेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सऊदी अरब में फांसी की रफ्तार इसी तरह जारी रही तो 2024 में यह आंकड़ा 350 से ऊपर जा सकता है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव और मानवाधिकार समूहों की सक्रियता के चलते आने वाले समय में सजा के तौर-तरीकों में बदलाव संभव है।
कई संगठन सऊदी अरब से ड्रग्स से जुड़े मामलों में मौत की सजा पर स्थायी रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अपराध रोकने के लिए पुनर्वास, शिक्षा और रोजगार जैसे उपाय कहीं अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
सऊदी अरब में फांसी का यह सिलसिला सिर्फ कानूनी बहस का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकार, न्याय और अंतरराष्ट्रीय कानून की बुनियाद पर भी सवाल खड़ा करता है। एक ही दिन में आठ लोगों को मौत की सजा मिलना यह दर्शाता है कि कड़ा कानून लागू करना सऊदी सरकार की प्राथमिकता है, लेकिन इससे जुड़े मानवीय पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।