रविवार को बंद दरवाजे के पीछे क्या चल रहा था? जब ग्रामीणों ने खोला राज़, सरकारी किताबों का बड़ा घोटाला आया सामने!

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हाइलाइट्स

  • सरकारी किताबें वितरण के बजाय बेची जा रही थीं खंड विकास अधिकारी द्वारा
  • रविवार को छुट्टी के दिन चोरी-छिपे चल रहा था सरकारी किताबों की बिक्री का खेल
  • BDO दीपक कुमार, सहयोगी देवेश और महेश पर लगे गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप
  • स्थानीय लोगों ने रंगे हाथ पकड़ा, सूचना पर पहुंची टीम ने जब्त किया सामान
  • जांच के आदेश, शिक्षा विभाग और प्रशासन में मचा हड़कंप

 आगरा में सामने आया सरकारी किताबों का बड़ा घोटाला

उत्तर प्रदेश के आगरा ज़िले से सरकारी किताबें बेचने का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। रविवार को जब पूरा प्रशासनिक अमला छुट्टी पर था, उसी समय खंड विकास अधिकारी दीपक कुमार और उनके सहयोगी देवेश कुमार और महेश कुमार मिलकर सरकारी स्कूलों की निःशुल्क किताबों को ठिकाने लगाने में जुटे थे।

सरकार की ओर से हर साल लाखों की संख्या में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी किताबें मुफ्त में बांटी जाती हैं, ताकि शिक्षा में समानता बनी रहे और गरीब बच्चों को सहायता मिल सके। लेकिन इस घटना ने उस पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है।

 मामला कैसे खुला?

सूत्रों के अनुसार, रविवार को स्थानीय ग्रामीणों को संदेह हुआ कि पंचायत भवन में कुछ गतिविधियां असामान्य हो रही हैं। जब ग्रामीणों ने वहां जाकर देखा, तो पाया कि बड़ी संख्या में सरकारी किताबें एक वाहन में लादी जा रही थीं। पूछताछ पर जवाब टालने की कोशिश की गई, लेकिन कुछ जागरूक लोगों ने तुरंत इसकी सूचना उच्च अधिकारियों और मीडिया को दी।

 कौन हैं आरोपी अधिकारी?

मुख्य आरोपी दीपक कुमार, जो कि क्षेत्र के खंड विकास अधिकारी (BDO) हैं, लंबे समय से इस पद पर कार्यरत हैं। उनके सहयोगी देवेश कुमार और महेश कुमार को भी इस पूरे षड्यंत्र में शामिल बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इन लोगों ने पिछले दो वर्षों से सरकारी किताबें बाजार में बेचने का एक संगठित गिरोह तैयार कर रखा था।

इन किताबों को उन जरूरतमंद बच्चों तक पहुंचाने के बजाय यह अधिकारी या तो उन्हें रद्दी के भाव बेचते थे या निजी विद्यालयों में सप्लाई करवा देते थे। इस तरह लाखों का सरकारी नुकसान हो रहा था और शिक्षा के अधिकार अधिनियम का सीधा उल्लंघन भी।

 क्यों है यह मामला बेहद गंभीर?

इस पूरे प्रकरण में कई गंभीर बिंदु सामने आते हैं:

  • सरकारी किताबें बच्चों को देने के लिए होती हैं, इन्हें बेचना कानूनन अपराध है
  • रविवार को चोरी-छिपे किताबों की ढुलाई इस बात का संकेत है कि यह कार्य जानबूझकर गुप्त रूप से किया जा रहा था
  • सरकारी धन और संसाधनों का दुरुपयोग भारतीय दंड संहिता के तहत घोर आपराधिक कृत्य है
  • इससे बच्चों की पढ़ाई पर प्रतिकूल असर पड़ता है, और शिक्षा व्यवस्था पर से लोगों का विश्वास उठता है

क्या बोले शिक्षा विभाग के अधिकारी?

जब इस घोटाले की खबर शिक्षा विभाग तक पहुंची, तो जिले के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने तुरंत जांच टीम गठित करने के आदेश दिए। उनका कहना है कि,

“यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी इस प्रकार से सरकारी किताबें बेचता पाया गया है, तो न केवल उसकी सेवा समाप्त की जाएगी बल्कि उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा।”

 घटनास्थल से जब्त सामग्री

मौके से अधिकारियों ने कई गत्तों में बंद सरकारी किताबें, वाहन की रसीदें और कुछ दस्तावेज जब्त किए हैं। इन्हें बतौर सबूत सुरक्षित रखा गया है। साथ ही CCTV फुटेज भी जांची जा रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि इससे पहले कितनी बार इस प्रकार की गतिविधियां हो चुकी हैं।

 FIR दर्ज, आगे की कार्रवाई

पुलिस ने इस मामले में IPC की धारा 409 (विश्वास भंग कर संपत्ति की हेराफेरी), 420 (धोखाधड़ी) और 120B (षड्यंत्र) के तहत मामला दर्ज कर लिया है। दीपक कुमार और दोनों सहयोगियों से पूछताछ की जा रही है। संभावना है कि जल्द ही और लोगों की भूमिका भी उजागर हो सकती है।

बच्चों का भविष्य अधर में

जहां एक ओर सरकार शिक्षा को प्राथमिकता दे रही है, वहीं इस प्रकार की घटनाएं न केवल सरकारी नीतियों पर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि सरकारी किताबें समय पर न मिलने से हजारों बच्चों की पढ़ाई बाधित हो जाती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि दोषियों को जल्द से जल्द सज़ा मिले ताकि शिक्षा व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त किया जा सके।

सरकारी किताबें वितरण में हुए इस बड़े भ्रष्टाचार ने शासन और प्रशासन दोनों के कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। यह मामला केवल एक घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बच्चों के भविष्य और सरकारी नीतियों की विश्वसनीयता का भी विषय है। ज़रूरत है पारदर्शिता, जवाबदेही और समय पर कड़ी कार्रवाई की, ताकि दोबारा कोई भी अधिकारी बच्चों की किताबें बेचने की हिम्मत न कर सके।

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