भीषण भूकंप में गईं 55,000 जानें, गूगल ने 2 साल बाद मानी अपनी चूक — समय पर चेतावनी मिलती तो बच सकती थीं हजारों ज़िंदगियां!

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हाइलाइट्स

  • गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली तुर्की-सीरिया भूकंप के दौरान लाखों लोगों को अलर्ट देने में असफल रही।
  • बीबीसी की रिपोर्ट में खुलासा, वास्तविक तीव्रता 7.8 थी लेकिन गूगल ने इसे 4.5 से 4.9 आंका।
  • सिर्फ 469 फोनों पर गंभीर “कार्रवाई करें” अलर्ट भेजे गए जबकि लाखों को हल्के झटकों की सूचना दी गई।
  • गूगल ने एल्गोरिदम में बदलाव कर नए परीक्षण किए, अब 1 करोड़ लोगों तक सही चेतावनी पहुंचाने का दावा।
  • विशेषज्ञों का सवाल: क्या गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली पर भरोसा किया जा सकता है?

भयानक त्रासदी जिसने हजारों जिंदगियां लील लीं

6 फरवरी, 2023 की सुबह इतिहास के सबसे भयावह भूकंपों में से एक के रूप में दर्ज हो गई। तुर्की और सीरिया की सीमा के पास 7.8 और 7.7 तीव्रता के दो शक्तिशाली भूकंप आए, जिन्होंने कुछ ही पलों में जनजीवन तहस-नहस कर दिया। इन विनाशकारी झटकों ने तुर्की में लगभग 55,000 और सीरिया में 5,000 से अधिक लोगों की जान ले ली। इस भयावह आपदा के दो साल बाद अब सवाल उठ रहे हैं गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली पर।

गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली क्या है और कैसे काम करती है?

तकनीकी कार्यप्रणाली

गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली Android स्मार्टफोनों में मौजूद मोशन सेंसर और एक्सेलेरोमीटर की मदद से भूकंप के शुरुआती झटकों को पहचानती है। सिस्टम का उद्देश्य है कि भूकंप की लहरें जमीन में फैलने से पहले उपयोगकर्ताओं को अलर्ट दे दिया जाए। यह खासकर “P-waves” और “S-waves” के सिद्धांत पर आधारित है, जो भूकंप के झटकों के फैलाव को पहचानते हैं।

तीन स्तर के अलर्ट

  1. Awareness Alert – हल्के झटकों के लिए होता है।
  2. Be Prepared Alert – संभावित मध्यम तीव्रता के लिए होता है।
  3. Take Action Alert – जब तीव्रता अत्यधिक हो, तो यह जोरदार अलार्म के साथ ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ मोड को बायपास कर देता है।

गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली क्यों फेल हुई?

पहले भूकंप में बड़ी चूक

4:17 AM पर आए पहले भूकंप के समय गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली ने मात्र 469 फोनों पर “कार्रवाई करें” अलर्ट भेजा, जबकि इस समय तुर्की और सीरिया में लगभग 1 करोड़ लोग भूकंप क्षेत्र में मौजूद थे। गूगल के सिस्टम ने भूकंप की तीव्रता को गलत तरीके से 4.5 से 4.9 के बीच मापा, जबकि वास्तविक तीव्रता 7.8 थी।

दूसरे झटके में भी दोहराई गई गलती

दूसरे भूकंप के दौरान भी यही त्रुटि हुई। सिर्फ 8,158 फोनों को गंभीर अलर्ट मिला, जबकि लगभग 40 लाख लोगों को कम तीव्रता वाला “अवेयर” अलर्ट मिला। यदि समय पर सही चेतावनी मिलती, तो हजारों लोग जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों की ओर भाग सकते थे।

क्या गूगल ने सीखा कुछ?

एल्गोरिदम में सुधार

इस हादसे के बाद गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली को अपग्रेड किया गया। गूगल के अनुसार, उन्होंने अपने डेटा एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग मॉडल को बेहतर किया, जिससे आने वाले समय में सटीकता बढ़ाई जा सके।

नए परीक्षण और परिणाम

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, नई प्रणाली के तहत किए गए परीक्षणों में “कार्रवाई करें” अलर्ट 1 करोड़ लोगों तक पहुंचा, और “अवेयर” अलर्ट 6.7 करोड़ लोगों को मिले। गूगल ने दावा किया है कि अब उनकी प्रणाली पहले से कहीं अधिक भरोसेमंद है।

विशेषज्ञों की राय: भरोसे का संकट

प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों और आपदा प्रबंधन सलाहकारों का मानना है कि गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली की तकनीक में काफी संभावनाएं हैं, लेकिन वास्तविक आपदाओं में सिस्टम की असफलता गंभीर चिंता का विषय है।

क्लेम और क्रिटिसिज़्म

  • विशेषज्ञ कहते हैं: “सिर्फ तकनीकी सुधार काफी नहीं हैं, सिस्टम की विश्वसनीयता को व्यापक रूप से टेस्ट करना होगा।”
  • सामाजिक कार्यकर्ता: “गूगल जैसी कंपनियों को स्थानीय सरकारों के साथ मिलकर आपदा प्रबंधन नीति बनानी चाहिए।”
  • जनता की भावना: लोग अब अलर्ट पर भरोसा करने से झिझकने लगे हैं।

गूगल की जिम्मेदारी और भविष्य की दिशा

दुनिया भर में करोड़ों लोग एंड्रॉइड स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं। ऐसे में गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली एक बड़ी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाती है। यह सिर्फ एक तकनीकी सुविधा नहीं, बल्कि मानव जीवन से जुड़ा एक संवेदनशील मुद्दा है।

आगे क्या?

  • स्थानीय डेटा सेंटर की स्थापना
  • ग्लोबल से अधिक रीजनल एल्गोरिदम पर जोर
  • यूज़र फीडबैक सिस्टम का निर्माण
  • सरकारी एजेंसियों से साझेदारी

चेतावनी जरूरी है, लेकिन भरोसा उससे भी ज्यादा

गूगल की भूकंप चेतावनी प्रणाली ने दुनिया को एक बेहतर भविष्य की झलक दिखाई है, जहां समय से पहले अलर्ट मिलने से हजारों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। लेकिन इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए तकनीकी सटीकता, पारदर्शिता और भरोसेमंद कार्यप्रणाली जरूरी है। वरना एक बार फिर तकनीक के भरोसे बैठे लोग प्राकृतिक आपदाओं में असहाय होकर रह जाएंगे।

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