स्कूल का टेस्ट छूटा तो बच्ची ने कर डाली अपने अपहरण की साजिश, वीडियो देख बनाई स्क्रिप्ट

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हाइलाइट्स

  • रीवा में 10 साल की बच्ची ने मोबाइल देखकर रच डाली झूठा अपहरण की कहानी
  • स्कूल में टेस्ट छूटने के डर से बच्ची ने खुद बनाई पूरी स्क्रिप्ट
  • परिजनों ने पुलिस में दी शिकायत, सीसीटीवी फुटेज से हुआ भंडाफोड़
  • फोर्ट रोड पर बच्ची साइकिल से जाती दिखी, पुलिस ने बरामद किया सकुशल
  • मोबाइल में देखे वीडियो और कहानियों ने मासूम को दी झूठा अपहरण की प्रेरणा

झूठा अपहरण: एक मासूम की डर और डिजिटल भ्रम की सच्ची कहानी

मध्य प्रदेश के रीवा जिले में झूठा अपहरण का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां मात्र 10 साल की एक छात्रा ने स्कूल की डांट से बचने के लिए मोबाइल में देखे गए वीडियो के आधार पर अपना खुद का अपहरण दिखाने की योजना रच डाली। पुलिस की जांच और तत्परता से न सिर्फ बच्ची को सुरक्षित पाया गया, बल्कि पूरे प्रकरण का सच भी सामने आया जिसने समाज और शिक्षा प्रणाली दोनों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

घटना का प्रारंभ: स्कूल से गायब हुई छात्रा, परिजन परेशान

रीवा शहर के चोरहटा थाना क्षेत्र में 29 जुलाई की सुबह एक सनसनी फैल गई जब एक 10 वर्षीय बच्ची के परिजनों ने पुलिस को सूचना दी कि उनकी बेटी का दो अज्ञात बाइक सवारों ने झूठा अपहरण कर लिया है। परिजनों के अनुसार, बच्ची सुबह स्कूल के लिए निकली थी, लेकिन दोपहर तक घर नहीं लौटी। इससे परेशान होकर उन्होंने चोरहटा थाना पुलिस से संपर्क किया।

पुलिस की त्वरित कार्रवाई: 20 सीसीटीवी कैमरे खंगाले

सूचना मिलते ही पुलिस सक्रिय हो गई और क्षेत्र के 20 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई। नगर पुलिस अधीक्षक रितु उपाध्याय के नेतृत्व में जांच टीम ने दुआरी गांव से लेकर फोर्ट रोड तक के कैमरों की निगरानी की। जांच में साफ दिखाई दिया कि छात्रा अपनी साइकिल पर अकेली फोर्ट रोड की ओर जाती हुई दिखी।

यह दृश्य झूठा अपहरण की कहानी को संदिग्ध बना रहा था।

खुलासा: मोबाइल वीडियो से ली प्रेरणा, बनाई खुद की स्क्रिप्ट

जब बच्ची को सकुशल बरामद कर महिला पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ की गई, तो उसने जो बताया वो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। बच्ची ने बताया कि 29 जुलाई को उसका स्कूल में टेस्ट था जो छूट गया। उसे डर था कि अगर वह स्कूल गई तो शिक्षकों से डांट पड़ेगी।

इस डर से बच्ची ने मोबाइल पर देखे गए अपहरण संबंधी वीडियो और कहानियों से प्रेरणा लेकर झूठा अपहरण का प्लान बनाया। उसने खुद ही तय किया कि वह स्कूल न जाकर दूर किसी जगह चली जाएगी ताकि सभी को लगे कि उसका अपहरण हो गया है।

स्कूल जाने की जगह फोर्ट रोड पहुंची बच्ची

अपहरण की झूठी साजिश रचते हुए बच्ची ने स्कूल जाने की बजाय साइकिल से फोर्ट रोड की ओर रुख किया। परिजनों को इस बीच कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने बच्ची के लापता होने पर अपहरण की आशंका जताते हुए रिपोर्ट दर्ज करवा दी। पुलिस ने गंभीरता से मामले की जांच की और अंततः बच्ची को सुरक्षित फोर्ट रोड से बरामद कर लिया।

पुलिस की मानवीय पहल: बच्ची को दिलाया भरोसा

बच्ची को मिलने के बाद पुलिस उसे स्कूल ले गई, जहां शिक्षकों और प्राचार्य से बातचीत की गई। पुलिस ने बच्ची को आश्वस्त किया कि उसे डांट नहीं पड़ेगी, बल्कि उसकी मदद की जाएगी। यह पहल सराहनीय थी क्योंकि इससे बच्ची के मन में बना डर का भाव कम हुआ।

सवाल जो समाज से पूछे जाने चाहिए

यह घटना एक संकेत है कि कैसे डिजिटल युग में बच्चों की सोच और कल्पनाएं मोबाइल के जरिए गहराई से प्रभावित हो रही हैं। एक 10 साल की बच्ची का इतना जटिल झूठा अपहरण प्लान बनाना यह दर्शाता है कि अब बच्चों को तकनीक के इस्तेमाल पर गंभीर नियंत्रण और मार्गदर्शन की जरूरत है।

इसके अलावा, यह घटना हमारे शिक्षण प्रणाली पर भी सवाल उठाती है—क्या छात्रों को इतना डर होना चाहिए कि वे अपनी सुरक्षा से खिलवाड़ कर बैठें?

विशेषज्ञों की राय: क्या बदलना होगा दृष्टिकोण?

बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. गरिमा शुक्ला का मानना है, “बच्चों को डराकर पढ़ाई करवाना उन्हें मनोवैज्ञानिक दबाव में डाल सकता है। ऐसे में वे अव्यवहारिक निर्णय ले सकते हैं। स्कूलों और अभिभावकों को संवाद आधारित शिक्षा की ओर बढ़ना चाहिए।”

समाजसेवी रमेश मिश्रा कहते हैं, “इस मामले ने यह भी बताया कि बच्ची को मोबाइल तक ऐसी असंवेदनशील सामग्री देखने की खुली छूट थी। यह माता-पिता की भूमिका पर भी सवाल उठाता है। डिजिटल कंट्रोल और गाइडेंस अब समय की मांग है।”

 एक झूठ ने खोली कई सच्चाइयाँ

रीवा की यह घटना केवल झूठा अपहरण की एक कोशिश नहीं थी, यह एक सामाजिक, शैक्षणिक और डिजिटल पहलुओं को उजागर करने वाला आईना था। बच्ची की मासूम हरकत के पीछे छुपी भय, दबाव और तकनीक के प्रभाव की कहानी ने हर जागरूक नागरिक को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

इस घटना से हम सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि बच्चों के मनोविज्ञान को समझना, उन्हें मार्गदर्शन देना और डर को प्रेम और संवाद से बदलना ही एक स्वस्थ समाज की नींव रख सकता है।

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