शनि मंदिर में छिपा था बंगाल का इमाम! दो साल तक बना रहा फर्जी बाबा, खुलासे ने उड़ा दिए होश

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हाइलाइट्स

  • फर्जी बाबा के नाम पर शनि मंदिर में रह रहा था बंगाल का इमाम
  • दो वर्षों से हिन्दू संत बनकर कर रहा था श्रद्धालुओं को गुमराह
  • असली पहचान उजागर होने पर ग्रामीणों ने दी पुलिस को सूचना
  • सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की आशंका, NSA के तहत हो सकती है कार्रवाई
  • पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर शुरू की गहराई से जांच

फर्जी बाबा बना इमाम, दो साल तक करता रहा धार्मिक धोखा

उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले के थानाभवन क्षेत्र के मंटी हसनपुर गांव में एक फर्जी बाबा का भंडाफोड़ हुआ है, जिसने न केवल स्थानीय लोगों को धोखे में रखा, बल्कि धार्मिक आस्था के साथ भी खिलवाड़ किया। इस व्यक्ति की पहचान इमामुद्दीन अंसारी (55 वर्ष) के रूप में हुई है, जो मूलतः पश्चिम बंगाल के जिला अलीपुरद्वार के कालचीनी क्षेत्र का निवासी है।

इमामुद्दीन पिछले दो वर्षों से गांव के शनि मंदिर में निवास कर रहा था और खुद को बाबा बंगाली उर्फ बालकनाथ बताकर श्रद्धालुओं की आस्था का शोषण कर रहा था। उसने पूरी तरह से हिन्दू संत का रूप धारण किया हुआ था – भगवा वस्त्र, जटाएं, और पूजा-पाठ की विद्वता का दिखावा।

गांव वालों को हुआ शक, पुलिस ने की कार्रवाई

गुप्त सूचना पर पहुंची पुलिस, खुली फर्जी बाबा की पोल

स्थानीय लोगों के अनुसार, फर्जी बाबा की कुछ गतिविधियां संदिग्ध प्रतीत हो रही थीं। उसकी भाषा, उच्चारण और धार्मिक क्रियाओं में असामान्य बातें देखकर ग्रामीणों ने शक जताया और इसकी सूचना थानाभवन पुलिस को दी।

पुलिस ने मौके पर पहुंचकर पूछताछ की और दस्तावेजों की जांच की। प्रारंभिक पूछताछ में ही फर्जी बाबा की असलियत सामने आ गई। उसने स्वयं स्वीकार किया कि वह मूल रूप से मुस्लिम है और उसका नाम इमामुद्दीन अंसारी है। वह संत नहीं, बल्कि एक आम व्यक्ति है जो फर्जी पहचान के सहारे शनि मंदिर में रह रहा था।

धार्मिक आस्था के नाम पर छल, पुलिस जांच में जुटी

मंदिर में शरण लेकर दो वर्षों तक बनता रहा ‘बालकनाथ’

इमामुद्दीन ने पुलिस को बताया कि वह धार्मिक संत की छवि अपनाकर यहां रहना चाहता था और स्थानीय लोगों की सेवा के बहाने अपने लिए स्थायी ठिकाना बना चुका था। वह प्रतिदिन पूजा, भजन और प्रवचन करके लोगों का भरोसा जीत रहा था।

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि आरोपी की मंशा केवल धार्मिक विश्वास का उपयोग कर छिपकर रहना नहीं, बल्कि इसके पीछे कोई गंभीर साजिश भी हो सकती है। मामले को संवेदनशील मानते हुए विस्तृत जांच के लिए एक विशेष टीम गठित की गई है।

फर्जी बाबा के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत

NSA के तहत भी हो सकती है कार्यवाही

थानाभवन थाने के प्रभारी निरीक्षक ने बताया,

“आरोपी इमामुद्दीन अंसारी के खिलाफ IPC की धारा 419, 420, 295A और 153A के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। अगर जांच में यह सामने आया कि उसने सांप्रदायिक तनाव फैलाने या धर्मांतरण के उद्देश्य से यह छल किया था, तो NSA जैसी सख्त धाराएं भी जोड़ी जाएंगी।”

स्थानीय प्रशासन ने मंदिर को अस्थाई रूप से सील कर दिया है और वहां नियमित निगरानी के आदेश भी दिए गए हैं। गांव में फिलहाल शांति है, लेकिन पुलिस और प्रशासन किसी भी स्थिति से निपटने के लिए अलर्ट पर हैं।

गांव में फैली सनसनी, श्रद्धालु स्तब्ध

“हम जिसे संत समझते थे, वह निकला धोखेबाज़” – ग्रामीणों की प्रतिक्रिया

गांव के बुजुर्ग रामदयाल ने कहा,

“हमने कभी नहीं सोचा था कि फर्जी बाबा निकलेगा। हमने तो उसे सच्चा संत समझा था। वह रोज पूजा करता, प्रसाद बांटता, बच्चों को आशीर्वाद देता था। अब लगता है हमारी आस्था के साथ खिलवाड़ हुआ है।”

एक महिला श्रद्धालु ने बताया,

“वह हमें धर्म और कर्म की बातें बताता था, पर खुद दोगलेपन का जीता-जागता उदाहरण निकला।”

इस घटना के बाद उठते सवाल

कितने और फर्जी बाबा समाज में सक्रिय हैं?

यह घटना केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि फर्जी बाबा जैसे लोग समाज में धार्मिक आस्था को ढाल बनाकर न केवल सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि आम जनता को गुमराह भी कर रहे हैं।

यह पूछना लाज़मी है कि:

  • क्या मंदिरों और धार्मिक स्थानों में पंजीकरण की कोई प्रणाली होनी चाहिए?
  • क्या किसी संत या बाबा की सत्यता जांचने के लिए कोई सरकारी मानक होना चाहिए?
  • क्या यह घटना सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की सोची-समझी साजिश थी?

फर्जी बाबा मामले की निष्पक्ष जांच ज़रूरी

धार्मिक स्थानों पर निगरानी और सत्यापन की आवश्यकता

फर्जी बाबा का भंडाफोड़ केवल एक गिरफ्तारी नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और धार्मिक संरचनाओं के प्रति गंभीर चेतावनी है। प्रशासन को चाहिए कि वह सभी धार्मिक स्थानों पर नियमित निगरानी, सत्यापन प्रक्रिया, और स्थानीय लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करे।

इस तरह की घटनाएं अगर समय रहते न रोकी गईं तो ये सांप्रदायिक तनाव, धार्मिक अविश्वास, और जनता के बीच डर का कारण बन सकती हैं।

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