हाइलाइट्स
- Fake Baba ने महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर जिले में अंधविश्वास के नाम पर पेशाब पिलाकर “चमत्कार” का दावा किया
- वीडियो सामने आते ही अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति और पुलिस ने संयुक्त कार्रवाई शुरू की
- बाबा संजय पगार ने शिऊर गांव में संतान, शराब की लत, भूत‑प्रेत बाधा समेत हर समस्या का दावा कर मासूमों को पीटा
- मामले में महाराष्ट्र Black Magic Act के तहत गंभीर धाराएँ दर्ज, आरोपी अभी भी फरार
- घटना ने ग्रामीण इलाकों में फैले अंधविश्वास पर नई बहस छेड़ी और प्रशासन की सतर्कता पर सवाल उठाए
घटना का खुलासा: जब “चमत्कार” का पर्दा उठा — Fake Baba का असली चेहरा
छत्रपति संभाजी नगर के वैजापुर तहसील स्थित शिऊर गांव में Fake Baba संजय रंगनाथ पगार (49) ने खुद को सिद्ध पुरुष बताकर वर्षों से ग्रामीणों को ठग रहा था। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकर्ता जब गुप्त कैमरे के साथ उसके दरबार में पहुँचे तो बाबा डंडे बरसाकर और जूते चटवाकर “भूत‑प्रेत” भगाने का तमाशा कर रहा था। यही वीडियो वायरल हुआ और पुलिस के पास शिकायत पहुँची। (आज तक, punjabkesari)
स्टिंग ऑपरेशन का तंत्र
वॉलंटियर्स ने हिम्मत दिखाते हुए Fake Baba की हरकतें कैमरे में कैद कीं—पत्तियाँ चबवाना, गालियाँ देकर “शुद्धि” करना, और आखिर में बोतल में भरा उसका पेशाब “प्रसाद” बताकर मरीजों को पिलाना।
ग्रामीणों की प्रतिक्रिया
शुरुआती झिझक के बाद पीड़ितों ने माना कि वे संतान‑सुख, नशा‑मुक्ति या नौकरी‑रोक जैसे कारणों से बाबा के पास पहुँचे थे। डर और आस्था के बीच फँसे लोग Fake Baba के हिंसक तरीकों को “आख़िरी उम्मीद” मान बैठे थे।
ढोंगी बाबा की अमानवीय हरकतें: “इलाज” के नाम पर यातना का बाज़ार
पेशाब से “प्रसाद”, जूते से “वरदान”
Fake Baba पीड़ितों को जमीन पर लिटाकर पैरों तले दबाता और फिर जूते जबरन चबवाता। इसके बाद पेशाब की बोतल घूँट‑घूँट पिलाकर कहता—“अब निश्चित संतान होगी!”
महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार
खौफ़नाक तथ्य यह है कि बाबा ने महिलाओं को “दूषित ऊर्जा” निकालने का बहाना बना कर अश्लील तरीके से छुआ, जबकि बच्चों को डंडों से पीटकर “भूत तंत्र” तोड़ने का दावा किया।
अंधविश्वास की जड़ें और सामाजिक प्रभाव—Fake Baba पर विश्वास क्यों?
शिक्षा‑कमी और स्वास्थ्य‑सुविधाओं का अभाव
ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की कमी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव Fake Baba जैसे गुंडों को जन्म देता है। लोग इलाज की लंबी कतारों और खर्चों से बचने के लिए “चमत्कार” पर भरोसा कर बैठते हैं।
सामूहिक मानसिकता और डर
“यदि बाबा की न मानो तो और अनिष्ट हो जाएगा”—यह डर सामुदायिक दबाव बन जाता है। इस मनोविज्ञान को Fake Baba ने भुनाया।
विशेषज्ञों की राय
सामाजिक मनोवैज्ञानिक डॉ. आर के शिंदे कहते हैं, “डर और आशा का मिलाजुला संघर्ष तर्क को पंगु बना देता है। Fake Baba इसका लाभ उठाकर ‘उपचार’ के नाम पर हिंसा को स्वीकृति दिलवाता है।”
कानूनी शिकंजा: महाराष्ट्र Black Magic Act और पुलिस कार्रवाई
FIR में शामिल धाराएँ
पुलिस ने Fake Baba पर भारतीय दंड संहिता की धारा 295 (A), 323, 354 तथा महाराष्ट्र Prevention & Eradication of Human Sacrifice and Black Magic Act 2013 की धाराएँ लगाई हैं। (आज तक)
गिरफ्तारी की कवायद
वायरल वीडियो और शिकायत के बाद पुलिस दल ने बाबा के ठिकानों पर दबिश दी, मगर Fake Baba कुछ अनुयायियों के साथ फरार हो गया। सर्च ऑपरेशन जारी है; पुलिस का दावा है कि “जल्द पकड़ लिया जाएगा।”
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की भूमिका
समिति के ज़िला संयोजक महेश देसाई ने कहा, “हम वर्षों से जागरूकता चलाते रहे, पर Fake Baba जैसे लोग ग्रामीण भोलेपन का फायदा उठाते हैं। यह कार्रवाई उदाहरण बनेगी।”
जनजागृति की चुनौती: क्या अब बदलेगा हालात?
सरकारी‑ग़ैरसरकारी पहल
पंचायत स्तर पर हेल्थ कैंप, साइंटिफिक अवेयरनेस वर्कशॉप और स्कूल पाठ्यक्रम में “क्रिटिकल थिंकिंग” जोड़ने की योजना पर चर्चा है। पर विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ़ कानून नहीं, निरंतर शिक्षा ही Fake Baba संस्कृति की जड़ें काट सकती है।
मीडिया की जिम्मेदारी
स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, घटना को उजागर करने वाले पत्रकारों को भी धमकियाँ मिलीं। फिर भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स ने वीडियो वायरल कर Fake Baba की पोल खोली—यह नागरिक पत्रकारिता की जीत है।
लंबा रास्ता
समिति के अनुसार पिछले पाँच साल में सिर्फ संभाजी नगर ज़िले में ही Fake Baba या चमत्कारी उपचार के 37 मामले दर्ज हुए। हर नए मामले के साथ यह सवाल गहराता है—“क्या हमें वैज्ञानिक सोच सिखाने में देरी हो रही है?”
अंधविश्वास की बेड़ियाँ तोड़ने की ज़रूरत
Fake Baba संजय पगार का मामला बताता है कि डर और आस्था के धुंधलके में कानून का उजाला ज़रूरी है। जब तक ग्रामीण‑स्वास्थ्य ढाँचे को मज़बूत कर शिक्षा‑व्यवस्था में वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं रोपा जाएगा, तब तक कोई न कोई नया Fake Baba सामाजिक ताने‑बाने को छलनी करता रहेगा।