हाइलाइट्स
- सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल, कक्षा 5 का बच्चा हिंदी तक नहीं पढ़ पा रहा।
- बुलंदशहर के मंशागढ़ी प्राथमिक विद्यालय में टीम ने देखा शिक्षा का चौंकाने वाला हाल।
- कक्षा 5 का छात्र किताब खोलकर हिंदी पढ़ने में असमर्थ, वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल।
- सवाल उठता है कि बिना पढ़ना जाने बच्चे को कक्षा 5 तक कैसे प्रमोट किया गया।
- सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर अभिभावकों और समाज में गहरा आक्रोश।
भारत में शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है और इसके लिए सरकारी स्तर पर कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई कभी-कभी ऐसे घटनाक्रमों से उजागर होती है, जो न सिर्फ हैरान करती है बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर देती है। हाल ही में बुलंदशहर के मंशागढ़ी प्राथमिक विद्यालय का एक वीडियो सामने आया है जिसमें कक्षा 5 का बच्चा हिंदी पढ़ने में असमर्थ दिखाई देता है। इस घटना ने स्थानीय लोगों से लेकर पूरे प्रदेश तक को झकझोर दिया है।
मंशागढ़ी स्कूल का चौंकाने वाला दृश्य
रंगीन दुनिया न्यूज की टीम जब बुलंदशहर के मंशागढ़ी प्राथमिक विद्यालय पहुंची तो वहां जो नज़ारा सामने आया उसने सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी। कक्षा 5 के एक बच्चे को हिंदी की किताब पढ़ने के लिए कहा गया, लेकिन वह ‘क’ से ‘कबूतर’ तक भी सही तरह से नहीं पढ़ पाया।
सवालों का अंबार
- यदि बच्चा कक्षा 5 तक पहुंच चुका है तो उसे प्राथमिक स्तर पर हिंदी पढ़नी आनी चाहिए थी।
- जब उसे हिंदी का आधारभूत ज्ञान ही नहीं है तो उसने अब तक की परीक्षाएं कैसे पास कीं?
- क्या यह केवल मंशागढ़ी स्कूल की समस्या है या फिर पूरी सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत?
शिक्षा व्यवस्था पर उठ रहे सवाल
परीक्षाओं की वास्तविकता
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी स्कूलों में “नो-डिटेंशन पॉलिसी” यानी किसी बच्चे को फेल न करने की नीति ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। बच्चे पढ़ाई किए बिना ही कक्षाएं पार करते जा रहे हैं। इससे सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं।
शिक्षकों की भूमिका
अभिभावकों और स्थानीय लोगों का आरोप है कि कई शिक्षक समय पर स्कूल नहीं पहुंचते और पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने के बजाय औपचारिकता निभाने तक सीमित रहते हैं। यदि शिक्षक बच्चों पर उचित ध्यान दें तो इस स्थिति से बचा जा सकता है।
समाज पर असर
सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था की यह खामियां सीधे समाज पर असर डालती हैं। गरीब और ग्रामीण परिवार, जो निजी स्कूलों की भारी फीस नहीं दे सकते, वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं। यदि वही बच्चे पढ़ने-लिखने में कमजोर रहेंगे तो आगे की पढ़ाई और करियर की राह भी कठिन हो जाएगी।
शिक्षा विशेषज्ञों की राय
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को सिर्फ स्कूल खोलने और किताबें बांटने तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि जमीनी स्तर पर यह देखना चाहिए कि बच्चों को वास्तव में शिक्षा मिल रही है या नहीं।
अभिभावकों की पीड़ा
मंशागढ़ी में जब यह वीडियो वायरल हुआ तो कई अभिभावकों ने गुस्से में कहा कि उनके बच्चे रोज स्कूल जाते हैं लेकिन पढ़ाई का स्तर बेहद खराब है। अभिभावकों ने मांग की कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
शिक्षा व्यवस्था सुधारने के उपाय
नियमित मॉनिटरिंग
प्रत्येक सरकारी स्कूल में शिक्षकों और बच्चों की नियमित जांच होनी चाहिए।
जिम्मेदारी तय हो
यदि किसी स्कूल में बच्चे पढ़ने-लिखने में कमजोर पाए जाते हैं तो उसकी जिम्मेदारी संबंधित शिक्षकों और अधिकारियों पर तय की जाए।
आधारभूत शिक्षा पर ध्यान
कक्षा 1 से 5 तक बच्चों को भाषा और गणित पर मजबूत पकड़ दिलाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
तकनीक का इस्तेमाल
डिजिटल लर्निंग, स्मार्ट क्लास और ऑनलाइन टेस्ट जैसे साधन अपनाकर सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।
बड़ा सवाल
मंशागढ़ी के इस प्राथमिक विद्यालय का वीडियो केवल एक उदाहरण है। असल समस्या यह है कि यदि देशभर में इस तरह के स्कूलों की जांच की जाए तो न जाने कितने ऐसे बच्चे मिलेंगे जो कक्षा 5 में पहुंचकर भी किताब पढ़ने में असमर्थ हैं। ऐसे में क्या भारत अपने बच्चों को भविष्य के लिए तैयार कर पाएगा? यह सवाल पूरी सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर उठता है।
बुलंदशहर का यह मामला आंखें खोलने वाला है। सरकार और शिक्षा विभाग को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां अशिक्षा और कमजोर शिक्षा का शिकार न बनें। यदि प्राथमिक स्तर पर ही बच्चों को मजबूत शिक्षा नहीं मिलेगी तो आगे उनका भविष्य अधर में रह जाएगा। यह समय है कि हम सब मिलकर सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए ठोस कदम उठाएं।