हाइलाइट्स
- शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने दिल्ली के निजी स्कूलों में फीस वृद्धि पर उठे सवालों पर तीखी प्रतिक्रिया दी।
- पेरेंट्स की मीटिंग में एक अभिभावक के सवाल पर मंत्री का गुस्सा फूट पड़ा।
- शिक्षा मंत्री ने कहा – “जिसे जाना है निकल जाए”, अभिभावकों ने जताया कड़ा विरोध।
- बैठक का माहौल तनावपूर्ण रहा, कई पेरेंट्स ने मंत्री के रवैये पर आपत्ति दर्ज की।
- सवाल उठता है – क्या शिक्षा मंत्री आशीष सूद का ऐसा व्यवहार एक जनप्रतिनिधि को शोभा देता है?
शिक्षा मंत्री आशीष सूद और निजी स्कूलों की फीस विवाद
दिल्ली में निजी स्कूलों की फीस हर साल बढ़ने का मुद्दा अभिभावकों के लिए सिरदर्द बन चुका है। कल इसी विषय पर अभिभावकों और शिक्षा विभाग की बैठक आयोजित की गई थी। बैठक की अध्यक्षता शिक्षा मंत्री आशीष सूद कर रहे थे। अभिभावकों को उम्मीद थी कि मंत्री उनकी समस्याओं का समाधान देंगे, लेकिन मीटिंग का नज़ारा कुछ और ही निकला।
जब एक अभिभावक ने सवाल उठाया कि आखिर बिना उचित कारण फीस क्यों बढ़ाई जा रही है, तो शिक्षा मंत्री आशीष सूद गुस्से से बिफर पड़े। उन्होंने सख्त लहजे में जवाब दिया – “जिसे जाना है निकल जाए।” इस बयान ने वहां मौजूद सभी पेरेंट्स को हैरान कर दिया।
क्या यह प्रतिक्रिया शोभनीय थी?
जनता का प्रतिनिधि और जिम्मेदारी
एक शिक्षा मंत्री आशीष सूद जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि वे अभिभावकों की समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुनें। लेकिन मीटिंग में दिया गया उनका जवाब न केवल असंवेदनशील माना जा रहा है, बल्कि इससे मंत्री की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
पेरेंट्स का आक्रोश
मीटिंग में मौजूद कई अभिभावकों का कहना था कि जिस तरह से शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने प्रतिक्रिया दी, उससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार बच्चों की शिक्षा और फीस संबंधी परेशानियों को गंभीरता से नहीं ले रही। कई पेरेंट्स ने यहां तक कहा कि मंत्री का रवैया आम जनता के प्रति अपमानजनक था।
निजी स्कूल फीस वृद्धि: एक पुराना विवाद
साल दर साल बढ़ती फीस
दिल्ली के निजी स्कूल हर साल फीस बढ़ाते हैं। कई बार यह फीस वृद्धि मनमानी और बिना किसी ठोस कारण के होती है। अभिभावक मानते हैं कि शिक्षा का व्यावसायीकरण बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ रहा है।
सरकार की भूमिका
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकार फीस नियंत्रण पर ठोस नीति क्यों नहीं बना पा रही। शिक्षा मंत्री आशीष सूद का गुस्सा इस बात का संकेत देता है कि सरकार दबाव में है और इस मुद्दे पर ठोस जवाब देने में असमर्थ है।
शिक्षा मंत्री आशीष सूद की सफाई
मीटिंग के बाद जब मीडिया ने उनसे सवाल किया, तो शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने सफाई दी। उन्होंने कहा कि उनका बयान संदर्भ से हटकर दिखाया जा रहा है। उनका उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं था, बल्कि मीटिंग में अनुशासन बनाए रखना था। हालांकि, उनके इस बयान से अभिभावकों का गुस्सा कम नहीं हुआ।
विशेषज्ञों की राय
शिक्षा विशेषज्ञों का मत
शिक्षा क्षेत्र के जानकार मानते हैं कि फीस वृद्धि को लेकर अभिभावकों की चिंताएं वाजिब हैं। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। साथ ही, शिक्षा मंत्री आशीष सूद जैसे जनप्रतिनिधियों को अपने शब्दों और आचरण पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि उनकी एक टिप्पणी समाज पर गहरा असर डाल सकती है।
सामाजिक प्रभाव
इस तरह की घटनाएं सरकार और जनता के बीच विश्वास की खाई को और गहरा कर देती हैं। यदि जनता को लगता है कि उनकी आवाज़ दबाई जा रही है, तो इसका सीधा असर लोकतंत्र की नींव पर पड़ता है।
क्या होगा आगे?
अभिभावकों की मांग
अभिभावकों ने साफ कहा है कि वे चाहते हैं कि फीस वृद्धि पर रोक लगे और सरकार इस संबंध में पारदर्शी नीति बनाए। इसके अलावा, उन्होंने शिक्षा मंत्री आशीष सूद से उनके बयान पर सार्वजनिक माफी मांगने की भी मांग की है।
शिक्षा मंत्री आशीष सूद का जवाब!!
कल दिल्ली के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के पेरेंट्स के साथ शिक्षा मंत्री की मीटिंग थी।।।
एक अभिभावक ने फीस बढ़ाने को लेकर सवाल किया तो ,
शिक्षा मंत्री आशीष सूद की, सिट्टी पिट्टी गुल हो गई और गुस्से से लाल पीले हो गए!!
जिसे जाना है… pic.twitter.com/RoYWveg3qx
— Meenu kumari (@meenukumaricute) August 19, 2025
सरकार की चुनौती
अब सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह अभिभावकों की समस्याओं का समाधान कैसे करेगी। यदि यह मुद्दा यूं ही चलता रहा, तो यह राजनीतिक विवाद में बदल सकता है और विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है।
निजी स्कूल फीस वृद्धि का मुद्दा आज हर घर का मसला बन चुका है। अभिभावकों की आर्थिक स्थिति पर इसका सीधा असर पड़ता है। ऐसे में, सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह ठोस नीति बनाए और बच्चों की शिक्षा को व्यावसायिक दबाव से बचाए।
लेकिन, जब इस गंभीर मुद्दे पर मीटिंग में शिक्षा मंत्री आशीष सूद जैसे नेता अभिभावकों की चिंताओं पर गुस्से से प्रतिक्रिया देते हैं, तो सवाल उठना स्वाभाविक है – क्या यह रवैया लोकतांत्रिक जिम्मेदारी के अनुरूप है?
जनप्रतिनिधि का कर्तव्य है कि वह जनता की बात धैर्यपूर्वक सुने और समाधान निकाले। अगर यही रवैया जारी रहा, तो अभिभावकों का गुस्सा और सरकार के प्रति अविश्वास दोनों बढ़ते जाएंगे।