क्या यही है नये भारत का सपना? 51 हजार स्कूल बंद, 17 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित – पर्दे के पीछे की सच्चाई चौंका देगी!

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हाइलाइट्स

  • देश में Education Crisis in India के चलते 51 हजार स्कूलों को किया गया बंद
  • 17 करोड़ से अधिक बच्चे शिक्षा से हो गए वंचित, ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रभाव
  • बच्चों के भविष्य को लेकर अभिभावकों में गहरा रोष और चिंता
  • शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) के तहत सरकार की जिम्मेदारी पर उठे सवाल
  • विपक्ष और शिक्षा विशेषज्ञों ने की तत्काल हस्तक्षेप की मांग

देश की शिक्षा व्यवस्था एक बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट ने इस Education Crisis in India को उजागर कर दिया है, जिसमें बताया गया है कि सरकार ने 51,000 से अधिक सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया है। इसके चलते लगभग 17 करोड़ बच्चे स्कूल जाने से वंचित हो चुके हैं।

इस निर्णय ने ना केवल अभिभावकों की चिंता बढ़ाई है बल्कि शिक्षा के अधिकार कानून (RTE) को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि इन करोड़ों बच्चों के भविष्य का जिम्मेदार कौन होगा? और आखिरकार ऐसा निर्णय क्यों लिया गया, जिससे गरीब और वंचित तबके के बच्चों की शिक्षा बाधित हो गई?

 स्कूल बंद करने की वजहें: सरकार की दलीलें कितनी जायज़?

 घटती छात्र संख्या और संसाधनों की कमी

सरकार के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में घटती छात्र संख्या, शिक्षक अनुपस्थिति और बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते इन स्कूलों को बंद किया गया। नीति निर्माताओं का मानना है कि छोटे स्कूलों को बंद कर बच्चों को ‘क्लस्टर मॉडल’ के तहत बड़े स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा।

 शिक्षा मंत्रालय का बयान

शिक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,

“हमारा उद्देश्य संसाधनों का समेकन करना है। कम बच्चों वाले स्कूलों को पास के उच्च गुणवत्ता वाले स्कूलों में मर्ज किया गया है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।”

लेकिन क्या यह तर्क उन बच्चों के लिए स्वीकार्य है, जो अब 10-15 किमी दूर स्कूल जाने के लिए मजबूर हैं, वो भी बिना किसी सरकारी परिवहन व्यवस्था के?

Education Crisis in India का बच्चों और समाज पर असर

गरीब और आदिवासी बच्चों पर सबसे अधिक मार

बंद किए गए अधिकांश स्कूल झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश के दूरदराज के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में स्थित थे। इन क्षेत्रों में पहले से ही शिक्षा की पहुंच सीमित थी। स्कूल बंद होने से अब बच्चे खेतों, घर के काम या मजदूरी में लग गए हैं।

 बालिका शिक्षा पर सीधा असर

लंबी दूरी और परिवहन की कमी के कारण लड़कियां अब स्कूल नहीं जा पा रही हैं। अभिभावक सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और परिणामस्वरूप कई किशोरियां शिक्षा बीच में ही छोड़ चुकी हैं। यह स्थिति भारत के लैंगिक समानता के लक्ष्यों के लिए खतरे की घंटी है।

 विशेषज्ञों और विपक्ष का रुख: “यह शिक्षा की हत्या है”

 विपक्ष ने क्या कहा?

विपक्षी दलों ने इसे सरकार की शिक्षा विरोधी नीति बताया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया,

“51 हजार स्कूलों का बंद होना केवल भवनों का बंद होना नहीं है, यह देश के भविष्य पर ताले लगाने जैसा है।”

 शिक्षा विशेषज्ञों की चेतावनी

शिक्षाविद प्रो. अनिल सदगोपाल कहते हैं:

“यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21-A का उल्लंघन है, जो 6-14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। यह स्पष्ट रूप से Education Crisis in India को और गहरा करता है।”

 UNICEF और UNESCO की रिपोर्ट क्या कहती है?

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने भी भारत में शिक्षा की गिरती स्थिति पर चिंता जताई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के बाद से बच्चों की स्कूल में वापसी की दर गिर गई है, और अब स्कूल बंद होने से हालात और बिगड़ गए हैं।

 क्या है समाधान? क्या शिक्षा मंत्रालय के पास कोई ठोस योजना है?

 डिजिटल शिक्षा नहीं है हर जगह का समाधान

सरकार डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कर रही है, लेकिन देश के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट, बिजली और स्मार्टफोन जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। ऐसे में Education Crisis in India का समाधान डिजिटल माध्यम नहीं हो सकता।

 स्कूल ट्रांसपोर्ट और इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश आवश्यक

यदि सरकार को स्कूल समेकन करना है, तो इसके साथ-साथ फ्री ट्रांसपोर्ट, हॉस्टल सुविधा और स्थानीय शिक्षकों की नियुक्ति जैसे उपाय किए बिना यह कदम बच्चों को शिक्षा से दूर कर देगा।

 सवाल जो आज हर नागरिक को पूछना चाहिए

  • क्या हम 17 करोड़ बच्चों के भविष्य के साथ प्रयोग कर रहे हैं?
  • क्या एक लोकतांत्रिक देश में शिक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है?
  • क्या गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर देना सामाजिक अन्याय नहीं है?
  • क्या Education Crisis in India को राष्ट्रीय आपदा मानकर तत्काल कदम नहीं उठाए जाने चाहिए?

भारत की शिक्षा नीति में यह परिवर्तन उस दिशा में जा रहा है, जहाँ सरकारी स्कूलों का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है। यह बदलाव उन बच्चों पर सबसे अधिक असर डाल रहा है, जो पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं।

Education Crisis in India एक वास्तविकता है और यदि समय रहते इस पर ठोस नीति नहीं बनी, तो देश के करोड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित होकर गरीबी और अशिक्षा के कुचक्र में फँस जाएंगे। यह सिर्फ एक नीति का मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य का सवाल है।

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