हाइलाइट्स
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Divorce Battle के बीच पूर्व विधायक की चुप्पी ने बढ़ाई संवेदनशीलता, दिव्यांग पति की न्याय की मांग चर्चा में
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पत्नी को राजनीति में स्थापित करने के लिए दिव्यांग सेवक राम ने की वर्षों की मेहनत
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विधायक बनने के बाद पत्नी ने पति को छोड़ दिया, अब मांग रहे हैं 25,000 रुपये गुजारा भत्ता
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तलाक के बिना अलग रह रहीं पूर्व MLA, कोर्ट में चल रही Divorce Battle
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पूर्व विधायक सोना बाई ने अब तक मीडिया के सामने नहीं रखा अपना पक्ष
मामला क्या है?
मध्य प्रदेश की राजनीति में एक अनोखा लेकिन दर्दनाक Divorce Battle सामने आया है। दमोह जिले के पथरिया विधानसभा क्षेत्र से 2003-2008 तक विधायक रहीं सोना बाई अहिरवार, जो अनुसूचित जाति वर्ग की कद्दावर नेता मानी जाती हैं, अब अपने दिव्यांग पति से Divorce Battle में उलझ गई हैं।
उनके पति सेवक राम का आरोप है कि उन्होंने सोना बाई को राजनीति में स्थापित करने के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी, लेकिन जैसे ही वह विधायक बनीं, उन्होंने रिश्ता खत्म कर दिया।
सोना बाई का राजनीतिक सफर और पति की भूमिका
संघर्ष की शुरुआत
सेवक राम ने मीडिया को बताया कि शादी के बाद सब कुछ सामान्य था। सोना बाई ने राजनीति में आने की इच्छा जताई तो उन्होंने पूरी निष्ठा से सहयोग किया। उन्होंने दमोह से लेकर भोपाल और दिल्ली तक उन्हें वरिष्ठ नेताओं से मिलवाया, जो उनके टिकट के लिए निर्णायक साबित हुआ।
विधायक बनने की कहानी
2003 में बीजेपी ने उन्हें पथरिया सीट से टिकट दिया और वे विधायक चुनी गईं। उनके पति का दावा है कि राजनीतिक कनेक्शन बनाने से लेकर रणनीति तैयार करने तक, हर स्तर पर उन्होंने सोना बाई का साथ दिया। लेकिन इसी जीत ने उनके रिश्ते में खटास डाल दी।
Divorce Battle की असली शुरुआत
रिश्ता टूटा लेकिन तलाक नहीं मिला
सेवक राम का आरोप है कि 2008 में जब सीट अनारक्षित हुई और सोना बाई को टिकट नहीं मिला, तब उन्होंने उनसे दूरी बना ली। 2009 से सोना बाई सागर में अलग रहने लगीं। न तलाक लिया, न कोई संवाद रखा।
कोर्ट में गुजारा भत्ता की मांग
अब यह Divorce Battle कोर्ट तक पहुंच चुकी है। सेवक राम ने दमोह कुटुंब न्यायालय में 25,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता और तलाक की मांग की है। उनका तर्क है कि वह दिव्यांग हैं, उनकी कोई स्थायी आमदनी नहीं है और जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है।
संपत्ति और सुविधाएं: एक तरफ सुख-सुविधा, दूसरी तरफ संघर्ष
सेवक राम के अनुसार, सोना बाई के पास जमीन, मकान, गाड़ी और पूर्व विधायक की पेंशन है। दूसरी ओर, वह एक छोटे से घर में रहते हैं, जहां उनका खर्च चलाना भी कठिन हो गया है। यह असमानता ही Divorce Battle को संवेदनशील बना रही है।
मीडिया में दर्द बयां, लेकिन पत्नी की चुप्पी
सेवक राम का मीडिया के सामने खुलासा
सेवक राम ने मीडिया के सामने कहा,
“मैंने अपनी पत्नी को विधायक बनाया, लेकिन आज वह मुझे पहचानने से भी इनकार कर रही हैं। मैंने उन्हें मिट्टी से उठाकर शिखर तक पहुंचाया, लेकिन अब वो मुझे ही मिटा देना चाहती हैं।”
उनकी भावुकता और परिस्थितियों ने पूरे प्रकरण को जनचर्चा का विषय बना दिया है।
सोना बाई की चुप्पी
इस पूरे Divorce Battle में अभी तक सोना बाई ने कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। मीडिया द्वारा संपर्क किए जाने पर भी उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दियाक्या कहता है कानून?
भारतीय कानून के अनुसार, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत यदि कोई पति या पत्नी बिना कारण के अपने जीवनसाथी से अलग रहता है, तो दूसरा पक्ष वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मुकदमा कर सकता है।
इसके साथ ही धारा 125 CrPC के अंतर्गत गुजारा भत्ता भी मांगा जा सकता है। इस Divorce Battle में दोनों धाराएं लागू होती नजर आ रही हैं।
सामाजिक पहलू और सवाल
यह मामला केवल एक व्यक्तिगत Divorce Battle नहीं है, बल्कि यह उन सामाजिक सवालों को भी जन्म देता है:
- क्या किसी की मेहनत से मिली सफलता में उसका श्रेय नहीं होना चाहिए?
- क्या सत्ता और सामाजिक प्रतिष्ठा रिश्तों से ऊपर हो गई है?
- क्या दिव्यांग और आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति की न्याय प्रणाली तक पहुंच समान है?
आगे क्या?
दमोह कोर्ट ने सेवक राम की याचिका स्वीकार कर ली है और जल्द ही सोना बाई को नोटिस भेजा जाएगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट इस Divorce Battle में किसके पक्ष में फैसला सुनाता है। यह मामला न केवल कानून, बल्कि नैतिकता की भी परीक्षा है।
यह Divorce Battle सिर्फ एक वैवाहिक विवाद नहीं, बल्कि एक ऐसा सामाजिक आईना है जिसमें सत्ता, राजनीति, त्याग और भावनाओं के धुंधले प्रतिबिंब नजर आते हैं। एक दिव्यांग पति, जिसने अपनी पत्नी को विधायक बनाने के लिए सब कुछ दांव पर लगाया, आज न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है। और वह पत्नी, जिसने ऊंचाइयों को छुआ, अब चुप है।