हाइलाइट्स
- DRDO की नई Desalination Technology से समुद्री जल को पीने योग्य बनाया जा सकेगा।
- तकनीक का सफल परीक्षण भारतीय तटरक्षक बल के जहाज पर हुआ।
- झिल्ली (Membrane) को उच्च दबाव और खारे पानी की स्थितियों के लिए डिजाइन किया गया।
- इसे समुद्री किनारे के गांवों और द्वीपों में भी उपयोगी बनाया जा सकता है।
- आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत यह बड़ी तकनीकी सफलता मानी जा रही है।
DRDO की Desalination Technology से समुद्री पानी बनेगा मीठा, आत्मनिर्भर भारत को मिली नई ताकत
नई दिल्ली। भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने देश को तकनीकी क्षेत्र में एक और बड़ी सफलता दिलाई है। DRDO ने स्वदेशी Desalination Technology विकसित कर समुद्री जल को पीने योग्य जल में बदलने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह तकनीक न केवल सैन्य आवश्यकताओं को पूरा करेगी, बल्कि इसे नागरिक उपयोग के लिए भी अनुकूलित किया जा सकता है।
यह प्रौद्योगिकी भारतीय तटरक्षक बल (ICG) के ऑफशोर पेट्रोलिंग वेसल्स पर पहले ही परीक्षण की प्रक्रिया से गुजर रही है और प्रारंभिक परिणामों ने इसकी प्रभावशीलता और संभावनाओं को साबित कर दिया है।
क्या है यह नई Desalination Technology?
नैनोपोरस मल्टीलेयर्ड पॉलीमर झिल्ली – तकनीक की रीढ़
DRDO की इस Desalination Technology का मुख्य आधार है एक अत्याधुनिक नैनोपोरस मल्टीलेयर्ड पॉलीमर झिल्ली, जिसे विशेष रूप से समुद्री जल के उच्च दबाव और अधिक मात्रा में मौजूद क्लोराइड आयन के प्रतिकूल प्रभावों को सहन करने के लिए विकसित किया गया है। पारंपरिक झिल्लियाँ अक्सर लंबे समय तक समुद्री नमक के संपर्क में रहने से खराब हो जाती थीं, जिससे उनकी उपयोगिता सीमित हो जाती थी।
लेकिन DRDO की यह नई झिल्ली इस कमी को दूर करती है और लंबे समय तक कार्यशील बनी रहती है, जिससे पानी को अधिक कुशलता से मीठा बनाया जा सकता है।
कैसे हुआ इस Desalination Technology का परीक्षण?
तटरक्षक बल के OPV जहाज पर चला परीक्षण
इस Desalination Technology का परीक्षण भारतीय तटरक्षक बल के ऑफशोर पेट्रोलिंग वेसल पर स्थापित मौजूदा डीसैलिनेशन प्लांट में किया गया। परीक्षण में झिल्ली के प्रदर्शन, सुरक्षा मानकों और कार्यकुशलता को परखा गया। शुरुआती परिणाम बेहद सकारात्मक रहे और अब इसे 500 घंटे की वास्तविक ऑपरेशनल परीक्षण प्रक्रिया में डाला गया है।
DRDO और तटरक्षक बल का साझा प्रयास इस तकनीक को वास्तविक समय और समुद्री परिस्थितियों में परखने के लिए किया जा रहा है।
कैसे काम करती है Desalination Technology?
रिवर्स ऑस्मोसिस आधारित झिल्ली प्रणाली
इस Desalination Technology में झिल्ली आधारित रिवर्स ऑस्मोसिस प्रक्रिया का उपयोग किया गया है। इसमें समुद्री जल को उच्च दबाव से झिल्ली के आर-पार भेजा जाता है, जिससे खारे तत्व पीछे छूट जाते हैं और केवल शुद्ध, पीने योग्य जल झिल्ली से होकर गुजरता है।
यह प्रणाली ऊर्जा-कुशल होने के साथ-साथ लंबे समय तक टिकाऊ भी है, जो इसे सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए उपयुक्त बनाती है।
नागरिक क्षेत्रों में भी उपयोगी हो सकती है यह Desalination Technology
द्वीप और तटीय गांवों के लिए वरदान
हालांकि फिलहाल यह तकनीक तटरक्षक बल के लिए तैयार की गई है, लेकिन DRDO के वैज्ञानिकों का मानना है कि थोड़े बहुत संशोधनों के बाद इसे तटीय इलाकों और द्वीप क्षेत्रों में आम नागरिकों के उपयोग के लिए भी अपनाया जा सकता है।
भारत के कई समुद्री तटवर्ती क्षेत्र, खासकर अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप जैसे द्वीप समूह, आज भी स्वच्छ जल की समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे में यह Desalination Technology उन क्षेत्रों के लिए एक क्रांतिकारी समाधान बन सकती है।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक मजबूत कदम
आठ महीने में तैयार हुई स्वदेशी तकनीक
यह विशेष तकनीक DRDO की कानपुर स्थित डिफेंस मैटेरियल स्टोर्स एंड रिसर्च एंड डेवलेपमेंट लैब (DMSRDE) द्वारा मात्र आठ महीनों में विकसित की गई है। यह समयबद्ध सफलता ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत एक प्रेरणास्पद उपलब्धि मानी जा रही है।
भारत अब विदेशी तकनीकों पर निर्भर हुए बिना स्वयं के संसाधनों से समुद्री जल को मीठे जल में बदलने में सक्षम हो गया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और सामुदायिक विकास दोनों के लिए अहम है।
भविष्य की संभावनाएं: वैश्विक बाजार में भारत की भागीदारी
निर्यात और तकनीकी साझेदारी की उम्मीद
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि DRDO की यह Desalination Technology व्यापक स्तर पर सफल होती है, तो इसे अन्य देशों को भी निर्यात किया जा सकता है, जो पानी की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके माध्यम से भारत न केवल अपनी तकनीकी क्षमताएं सिद्ध करेगा, बल्कि जल संरक्षण और वैश्विक सहायता में भी योगदान देगा।
इसके अलावा, यह तकनीक रक्षा सेवाओं के अलावा, पर्यटन उद्योग, जहाजरानी और मछली पालन क्षेत्रों में भी उपयोगी हो सकती है।
भारत की जल-सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में DRDO की यह नई Desalination Technology एक मील का पत्थर साबित हो रही है। यह तकनीक न केवल रक्षा सेवाओं को सशक्त बनाएगी, बल्कि नागरिक जीवन को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। आने वाले समय में जब इस तकनीक का पूर्ण परिचालन परीक्षण सफलतापूर्वक हो जाएगा, तब यह भारतीय तकनीकी परिदृश्य में एक नई दिशा और विश्वसनीयता जोड़ेगी।