रहस्य से भरा गांव जहां मुर्दे चलते नहीं… लेकिन रहते हैं साथ, खाते हैं, और पहनते हैं नए कपड़े!

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हाइलाइट्स

  • Dead Body Ritual: इंडोनेशिया के तारोजा गांव में अनोखी प्रथा, शवों को अंतिम संस्कार के बजाय घर में रखा जाता है
  • मृतकों के साथ सामान्य व्यवहार करते हैं परिजन, बात करते हैं और उन्हें खाना भी परोसते हैं
  • हर साल ‘मानेने’ उत्सव में शवों को बाहर निकालकर साफ-सुथरा किया जाता है
  • परंपरा के अनुसार मृत्यु के बाद व्यक्ति मरता नहीं, बल्कि आराम करता है
  • बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी मृतकों को परिवार का हिस्सा माना जाता है

मृत शरीर के साथ जीते हैं लोग: Dead Body Ritual ने चौंकाया विश्व

दुनिया में हजारों संस्कृतियां और परंपराएं हैं जो अपने आप में अनोखी और कभी-कभी चौंकाने वाली होती हैं। लेकिन कुछ परंपराएं इतनी विचित्र होती हैं कि उनके बारे में सुनकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। ऐसी ही एक प्रथा है Dead Body Ritual की, जो इंडोनेशिया के सुदूरवर्ती इलाके तारोजा (Toraja) में निभाई जाती है। यहां लोगों का मानना है कि मौत के बाद इंसान मरता नहीं, बल्कि वह केवल “आराम” करता है।

इंडोनेशिया का तारोजा गांव: जहां मृतक बनते हैं घर के सदस्य

इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में स्थित तारोजा गांव एक अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां के लोग Dead Body Ritual के तहत अपने मृत परिजनों को दफनाते या जलाते नहीं हैं। इसके बजाय वे शव को ममी (mummified body) में बदलकर अपने ही घर में रखते हैं।

परिवार के सदस्य शव को रोज नहलाते हैं, साफ कपड़े पहनाते हैं और खाना भी परोसते हैं, जैसे कि वह अब भी जीवित हो। इतना ही नहीं, वे उनसे बात करते हैं, उनके सुख-दुख साझा करते हैं और उन्हें सामाजिक आयोजनों में भी शामिल करते हैं।

शवों की ममी बनाना और देखभाल करना

तारोजा के लोग पारंपरिक फॉर्मेलिन और प्राकृतिक औषधियों का उपयोग करके मृत शरीर को सड़ने से रोकते हैं। यह प्रक्रिया कई हफ्तों से लेकर महीनों तक चल सकती है। इसके बाद शव को विशेष कपड़ों में लपेटकर घर में सम्मानजनक स्थान पर रखा जाता है।

Dead Body Ritual के दौरान यह माना जाता है कि जब तक शव घर में है, आत्मा भी घर में मौजूद रहती है। यही कारण है कि उस शव को भी जीवित व्यक्ति की तरह सम्मान और सेवा दी जाती है।

‘मानेने’ उत्सव: जब मुर्दे कब्र से निकलते हैं बाहर

तारोजा संस्कृति में साल में एक बार अगस्त महीने में ‘Ma’nene Festival’ मनाया जाता है। यह उत्सव Dead Body Ritual का सबसे बड़ा और रहस्यमय रूप है। इस दिन कब्रों से शवों को बाहर निकाला जाता है। उनके कपड़े बदले जाते हैं, बाल संवारे जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है।

परिवार के लोग इन शवों के साथ फोटो खिंचवाते हैं, उन्हें फिर से जीवंत मानकर संवाद करते हैं। इस दिन पूरा गांव शवों के संग जैसे जश्न मनाता है।

क्या कहती है मनोविज्ञान और समाजशास्त्र?

विशेषज्ञों की मानें तो Dead Body Ritual एक सांस्कृतिक अभ्यास है जो मृत्यु के शोक को नियंत्रित करने और मृतकों के साथ संबंध बनाए रखने की एक पद्धति हो सकती है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि यह परंपरा परिवार और मृतक के बीच एक निरंतरता बनाए रखती है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह मृत्यु को स्वीकारने और भय को दूर करने का एक तरीका हो सकता है। हालांकि, पश्चिमी दुनिया में इसे असामान्य और अस्वास्थ्यकर माना जा सकता है।

धार्मिक मान्यताएं और मृतकों का सम्मान

तारोजा जनजाति की मान्यता है कि जीवन और मृत्यु के बीच एक संधिकाल होता है। उनके अनुसार, शरीर की मृत्यु आत्मा की मृत्यु नहीं होती। Dead Body Ritual इस विश्वास को दर्शाता है कि जो लोग हमें प्रेम करते हैं, वे मृत्यु के बाद भी हमारा साथ नहीं छोड़ते।

क्या ये परंपरा खतरनाक है?

कुछ वैज्ञानिकों और मेडिकल विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि लंबे समय तक शव को घर में रखने से संक्रमण का खतरा हो सकता है, विशेष रूप से यदि शव का संरक्षण सही तरीके से न किया जाए। हालांकि, तारोजा के लोगों की परंपरा में इस पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है और वे सदियों से यह करते आ रहे हैं।

अन्य जगहों पर भी मिलते हैं Dead Body Ritual जैसे संकेत

दुनिया में और भी स्थान हैं जहां Dead Body Ritual जैसी परंपराएं देखने को मिलती हैं, जैसे कि:

  • पापुआ न्यू गिनी की ‘आस्मा पूजा’, जहां शवों को पेड़ों पर लटकाया जाता है
  • भारत के वाराणसी में भी मृत्यु को मोक्ष मानकर शवों का विशेष रूप से सम्मान किया जाता है
  • मेक्सिको का ‘Day of the Dead’ उत्सव, जिसमें मृतकों को याद कर पूजा की जाती है

मृत्यु का अनोखा दर्शन

इंडोनेशिया का Dead Body Ritual हमें यह सिखाता है कि मृत्यु को कैसे एक और जीवन के रूप में देखा जा सकता है। जहां हम मृत्यु से डरते हैं, वहीं तारोजा के लोग उसे अपनाते हैं, सम्मान देते हैं और मृतकों को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखते हैं। यह परंपरा दुनिया को एक अलग दृष्टिकोण देती है—मृत्यु एक अंत नहीं, बल्कि एक परिवर्तन है।

 

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