वीडियो वायरल: खतरनाक प्रथा के नाम पर मासूम पर खौफनाक वार

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हाइलाइट्स

  • खतरनाक प्रथा के चलते नवजात शिशुओं की सेहत पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
  • धार्मिक आस्था और अंधविश्वास के नाम पर मासूमों के साथ अनुचित कृत्य किए जा रहे हैं।
  • डॉक्टरों ने चेताया कि इस तरह की हरकत से जानलेवा संक्रमण हो सकता है।
  • समाज में जागरूकता फैलाने और सख्त कार्रवाई की ज़रूरत बताई जा रही है।
  • सरकार और प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसी प्रथाओं पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती।

खतरनाक प्रथा से जुड़ा ताज़ा मामला

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक तथाकथित धार्मिक गुरु को नवजात शिशु के साथ अजीबोगरीब और असुरक्षित हरकतें करते देखा गया। बताया जा रहा है कि इस खतरनाक प्रथा के तहत वह व्यक्ति शिशु के मुंह में अपनी जीभ डाल रहा था। डॉक्टरों और विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा करना सीधे-सीधे बच्चे की जान को जोखिम में डालना है। क्योंकि नवजात का इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर होता है और किसी भी बाहरी बैक्टीरिया या वायरस से गंभीर संक्रमण हो सकता है।

डॉक्टरों की चेतावनी: खतरनाक प्रथा से हो सकती है मौत

नवजात शिशु की नाज़ुक स्थिति

विशेषज्ञों का कहना है कि जन्म के शुरुआती महीनों में शिशु का प्रतिरोधक तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता। इस दौरान किसी भी तरह का बाहरी संक्रमण उसके शरीर के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। ऐसे में इस तरह की खतरनाक प्रथा न केवल लापरवाही है, बल्कि सीधे तौर पर हत्या जैसी स्थिति पैदा कर सकती है।

संक्रमण का बड़ा खतरा

मेडिकल साइंस की मानें तो वयस्क व्यक्ति के मुंह में हजारों तरह के बैक्टीरिया पाए जाते हैं। यदि ये बैक्टीरिया नवजात के शरीर में प्रवेश कर जाएं, तो गंभीर निमोनिया, सेप्सिस या अन्य संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। यही वजह है कि बाल रोग विशेषज्ञ बार-बार चेतावनी देते हैं कि बच्चों के साथ किसी भी तरह का असुरक्षित संपर्क नहीं होना चाहिए।

खतरनाक प्रथा और अंधविश्वास का गहरा रिश्ता

अंधविश्वास की जड़ें

भारत समेत कई देशों में अभी भी कुछ लोग आस्था और अंधविश्वास के नाम पर ऐसी खतरनाक प्रथा का पालन करते हैं। उनका मानना है कि इस तरह की रस्मों से बच्चा आशीर्वाद प्राप्त करता है और लंबी उम्र पाता है। लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है।

समाज पर असर

जब समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है, तो यह लोगों को वैज्ञानिक सोच से दूर कर देता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी के कारण लोग बिना परिणाम सोचे इन परंपराओं का पालन करते हैं। नतीजा यह होता है कि मासूम बच्चे ऐसी खतरनाक प्रथा की भेंट चढ़ जाते हैं।

प्रशासन और कानून की भूमिका

कार्रवाई की मांग

सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो को लेकर आम जनता में भारी गुस्सा देखने को मिला। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर प्रशासन कब तक आंखें मूंदे रहेगा। यदि किसी खतरनाक प्रथा के चलते बच्चों की जान जोखिम में डाली जा रही है, तो इसके खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।

कानूनी प्रावधान

विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराएं ऐसी घटनाओं पर लागू हो सकती हैं। बच्चों के जीवन को खतरे में डालना, शारीरिक नुकसान पहुंचाना और बाल अधिकारों का उल्लंघन करना गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसलिए इस तरह की खतरनाक प्रथा का पालन करने वालों को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।

जागरूकता ही समाधान

मीडिया और शिक्षा की भूमिका

विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी खतरनाक प्रथा को समाप्त करने का सबसे सशक्त हथियार शिक्षा और जागरूकता है। मीडिया को चाहिए कि ऐसे मामलों को उजागर करे और लोगों तक सही जानकारी पहुंचाए।

सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी

कई एनजीओ और सामाजिक संस्थाएं स्वास्थ्य और बच्चों के अधिकारों पर काम कर रही हैं। इन संगठनों को चाहिए कि वे गांव-गांव जाकर लोगों को समझाएं कि ऐसी खतरनाक प्रथा न केवल अंधविश्वास है, बल्कि बच्चों के लिए जानलेवा भी है।

अंतरराष्ट्रीय नजरिया

दुनिया के कई देशों में भी ऐसी विचित्र और खतरनाक रस्में पाई जाती रही हैं। हालांकि वहां सरकार और स्वास्थ्य संस्थाओं ने सख्त कदम उठाकर उन्हें लगभग खत्म कर दिया। भारत जैसे बड़े देश में भी अब समय आ गया है कि इस तरह की खतरनाक प्रथा पर पूर्ण विराम लगाया जाए।

नवजात शिशु किसी भी समाज का भविष्य होते हैं। यदि उन्हें जन्म के शुरुआती दिनों में ही इस तरह की खतरनाक प्रथा का सामना करना पड़े, तो यह न केवल उनकी जान को खतरे में डालता है बल्कि समाज की सोच को भी कटघरे में खड़ा करता है। ज़रूरी है कि हम सब मिलकर इस तरह के अंधविश्वास और लापरवाही पर रोक लगाएं और बच्चों को सुरक्षित माहौल दें।

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