हाइलाइट्स
- मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक में विधायक अतुल प्रधान को पुलिस ने गेट पर रोका
- विरोध में विधायक अतुल प्रधान सड़क किनारे धरने पर बैठ गए
- मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया
- 2017 से पहले विपक्षी विधायकों को भी मीटिंग में बुलाया जाता था
- अखिलेश यादव के कार्यकाल की तुलना करते दिखे अतुल प्रधान
मेरठ, 4 अगस्त 2025: उत्तर प्रदेश के मेरठ में आज उस समय राजनीतिक तापमान अचानक बढ़ गया जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक के दौरान समाजवादी पार्टी के विधायक श्री अतुल प्रधान को बैठक स्थल पर अंदर जाने से रोक दिया गया। पुलिस की इस कार्रवाई के विरोध में विधायक सड़क किनारे ही बैठ गए और उन्होंने सरकार पर विपक्ष की आवाज दबाने का गंभीर आरोप लगाया।
मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक में हंगामा: गेट पर रोके गए अतुल प्रधान
आज मेरठ के सर्किट हाउस में आयोजित मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विकास कार्यों, कानून व्यवस्था और प्रशासनिक मामलों की समीक्षा कर रहे थे। लेकिन इसी दौरान जब सपा विधायक अतुल प्रधान मीटिंग में शामिल होने पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें मुख्य द्वार पर ही रोक दिया।
गेट पर रोकने के बाद विधायक ने सवाल किया, “मैं जनता द्वारा चुना गया जनप्रतिनिधि हूं। फिर मुझे मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक में क्यों नहीं जाने दिया जा रहा?”
सड़क पर धरना: ‘यह तानाशाही है’
मुख्य द्वार से लौटाए जाने के बाद श्री अतुल प्रधान वहीं सड़क किनारे बैठ गए और धरने पर बैठ गए। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा,
“यह लोकतंत्र नहीं, तानाशाही है। भाजपा सरकार विपक्ष की आवाज को दबाना चाहती है। मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक में स्थानीय विधायक को बुलाया नहीं गया, क्योंकि हम सवाल करते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तब वह विपक्षी विधायकों को भी बुलाकर उनकी समस्याएं सुनते थे और समाधान निकालते थे। लेकिन वर्तमान सरकार केवल अपने लोगों की सुनती है।
आज मेरठ में मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक में क्षेत्रीय विधायक श्री अतुल प्रधान को मीटिंग में जाने से पुलिस ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया।
उसके बाद श्री अतुल प्रधान सड़क किनारे ही बैठ गये।
2017 से पूर्व सीएम माननीय अखिलेश यादव जी विपक्षी दलों के MLA को बुलाकर मिलते थे उनके काम… pic.twitter.com/HErlNWmoKX
— I.P. Singh (@IPSinghSp) August 4, 2025
मौके पर तैनात रही भारी पुलिस फोर्स
धरने की सूचना मिलते ही बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी मौके पर पहुंच गए। मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने स्थिति को शांतिपूर्ण बताते हुए कहा,
“यह एक प्रशासनिक निर्णय था। मीटिंग में केवल उन्हीं जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था जिनका नाम सूची में था। अतुल प्रधान का नाम सूची में नहीं था, इसलिए उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया।”
विपक्ष का हमला: ‘लोकतंत्र का गला घोंट रही है सरकार’
इस पूरे घटनाक्रम के बाद समाजवादी पार्टी के कई नेताओं ने सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना शुरू कर दी। पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने ट्वीट किया,
“मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक को भाजपा सरकार ने निजी आयोजन बना दिया है। विपक्ष के जनप्रतिनिधियों को जनता की बात रखने तक नहीं दी जा रही। ये लोकतंत्र की हत्या है।”
वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं ने भी इसे अलोकतांत्रिक बताया।
भाजपा की सफाई: ‘मीटिंग सिर्फ सत्ताधारी विधायकों के लिए थी’
भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने सफाई देते हुए कहा कि
“मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक प्रशासनिक प्रकृति की होती है, इसमें सिर्फ जिम्मेदार अधिकारियों और सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधियों को बुलाया गया था। विपक्ष को राजनीति नहीं करनी चाहिए।”
जनता में चर्चा: विधायक को रोकना कितना उचित?
इस घटना ने आम जनता के बीच भी चर्चा को जन्म दिया है। कई लोग मानते हैं कि एक निर्वाचित विधायक को जनता की समस्याओं को रखने का अधिकार है, और उसे मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक से दूर रखना गलत है। वहीं कुछ लोग प्रशासन की भूमिका को भी सही ठहरा रहे हैं कि अगर सूची में नाम नहीं था तो प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए था।
समीक्षा बैठक का उद्देश्य हुआ पीछे
जहां एक ओर मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक का उद्देश्य जिले की प्रगति, कानून व्यवस्था और जनकल्याण योजनाओं की समीक्षा था, वहीं सारा फोकस अतुल प्रधान की सड़क पर बैठने की घटना पर आ गया। सीएम योगी आदित्यनाथ ने स्वास्थ्य सेवाओं, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और युवाओं को रोजगार देने की योजनाओं पर अधिकारियों से रिपोर्ट ली, लेकिन मीडिया की नजरें बैठक से ज्यादा उस गेट पर टिकी रहीं जहां एक विधायक बैठा था।
2017 से पहले का दौर: क्यों याद आए अखिलेश यादव?
अतुल प्रधान की नाराजगी सिर्फ मौके पर रोके जाने की नहीं थी, बल्कि उन्होंने तीखा तंज कसते हुए कहा,
“2017 से पहले अखिलेश यादव जी मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक में सभी विधायकों को बुलाकर मिलते थे, चाहे वह किसी भी पार्टी से हों। विपक्ष की बात को महत्व दिया जाता था। लेकिन अब तो लोकतंत्र की नींव ही हिलाई जा रही है।”
लोकतंत्र बनाम सत्ता की परिभाषा
इस घटना ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या सरकारें विपक्ष की आवाज सुनने को तैयार नहीं हैं? अगर मुख्यमंत्री समीक्षा बैठक जैसी अहम बैठकों में जनप्रतिनिधियों को शामिल नहीं किया जाएगा, तो आम जनता की आवाज कौन उठाएगा? यह सवाल अब सिर्फ मेरठ तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे प्रदेश और देश के लिए सोचने का विषय बन गया है।