‘डकैत की मां’ कह दी गई चंद्रशेखर आज़ाद की मां! आज़ादी के वीर की मां के साथ यह कैसा अन्याय?

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हाइलाइट्स 

  • Chandrashekhar Azad की मां Jagrani Devi को कांग्रेस ने कहा था “डकैत की मां”
  • नेहरू ने न कभी Azad की मां से मुलाकात की, न दी कोई श्रद्धांजलि
  • आज़ादी के लिए बेटे की शहादत, मां के हिस्से में आया तिरस्कार
  • गांव-गांव में Azad को पूजने वाले, लेकिन मां को भुला दिया गया
  • इतिहास की किताबों से गायब वो मां, जिसे मिटाने की कोशिश की गई

Chandrashekhar Azad की मां Jagrani Devi: इतिहास की वह वीरांगना जो भुला दी गई

Chandrashekhar Azad, वो नाम जिसे सुनकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। लेकिन इस गौरवशाली योद्धा की मां Jagrani Devi के बारे में कितने लोग जानते हैं? यह सवाल इतिहास से नहीं, हम सभी से है।

उनकी कहानी केवल एक मां की नहीं, बल्कि उस “मौन बलिदान” की है जिसे भारत की आज़ादी के बाद सत्ता और इतिहास ने नजरअंदाज़ कर दिया।

जन्म और संघर्ष: एक मां की छाया में जन्मा क्रांतिकारी

Chandrashekhar Azad की परवरिश

Jagrani Devi मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की रहने वाली थीं। उनका विवाह पंडित सीताराम तिवारी से हुआ, और उनका पुत्र चंद्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाभरा गांव में हुआ।

वो एक साधारण ब्राह्मण परिवार से थीं, लेकिन उनके संस्कार असाधारण थे। उन्होंने अपने बेटे को हमेशा अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाया। यही संस्कार Chandrashekhar Azad को अंग्रेजों के खिलाफ एक सशक्त प्रतिरोध की प्रेरणा बने।

शहादत और समाज की चुप्पी

Alfred Park की वो सुबह और मां का टूटना

27 फरवरी 1931 को Chandrashekhar Azad इलाहाबाद के Alfred Park में surrounded हो गए थे। अंग्रेजी पुलिस के घेराव में उन्होंने वीरगति को अपनाया लेकिन आत्मसमर्पण नहीं किया।

मां Jagrani Devi को जब बेटे की शहादत की खबर मिली, तो उनका दिल टुकड़ों में बिखर गया। लेकिन वह गर्वित थीं कि उनका बेटा “आज़ाद” रहा, मरते दम तक।

Chandrashekhar Azad की मां के साथ कैसा व्यवहार किया गया?

‘डकैत की मां’ कहा गया – कांग्रेस का असली चेहरा

आज़ादी के बाद जिस मां को भारत रत्न जैसा सम्मान मिलना चाहिए था, उसे “डकैत की मां” कहकर अपमानित किया गया। कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने Chandrashekhar Azad को “lawless rebel” कहकर नकारा।

पंडित जवाहरलाल नेहरू, जो कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, उन्होंने कभी Jagrani Devi से मिलने या उनके बलिदान को सार्वजनिक रूप से सम्मान देने का प्रयास नहीं किया।

इतिहास में भुला दी गई एक मां की छवि

क्यों गायब है Jagrani Devi का नाम?

हमारी इतिहास की किताबों में Chandrashekhar Azad का नाम है, लेकिन उनकी मां के योगदान की कोई चर्चा नहीं।

क्या कारण था कि एक क्रांतिकारी की मां, जिसने देश को आज़ाद करने के लिए अपने बेटे को खो दिया, उसे कभी मंच नहीं मिला? क्या उसकी आवाज़ इतिहास के पन्नों में जानबूझकर दबा दी गई?

Chandrashekhar Azad: एक विचार, एक संकल्प

Chandrashekhar Azad सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे, वो एक विचारधारा थे। उन्होंने कभी अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। उनका अंतिम वाक्य था:

“दुश्मन की गोली का हम सामना करेंगे, आज़ाद ही जिए हैं, आज़ाद ही मरेंगे।”

और इस विचार की जननी थीं – Jagrani Devi

गांव में आज भी जलाई जाती है दीप – लेकिन दिल्ली में सन्नाटा

चंद्रशेखर आज़ाद के गांव में श्रद्धा, राजधानी में चुप्पी

आज भी मध्य प्रदेश के भाभरा गांव में लोग Chandrashekhar Azad और उनकी मां के लिए दीप जलाते हैं। लेकिन दिल्ली के गलियारों में, जहां नेताजी की मूर्तियाँ लगती हैं, वहाँ Azad की मां के लिए एक ईंट भी नहीं रखी गई।

अब भी समय है: इतिहास को न्याय देने का

Chandrashekhar Azad की शहादत को भुनाया गया, लेकिन उनकी मां को भुला दिया गया। यह लेख सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उस मिट्टी की पुकार है जिसे इतिहास ने दबा दिया था।

आज हमें ज़रूरत है कि हम Jagrani Devi जैसे बलिदानियों को मंच दें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि देश की आज़ादी सिर्फ बंदूक से नहीं, मां की कोख से भी निकली थी।

मिट्टी याद रखती है जो इतिहास भूल जाए

Chandrashekhar Azad की मां Jagrani Devi का जीवन हमें सिखाता है कि हर क्रांति के पीछे एक मौन शक्ति होती है। जब तक इस देश में आज़ादी की बात होगी, तब तक Azad का नाम जिंदा रहेगा — और अब समय है कि उनकी मां का नाम भी इतिहास में अमर हो।

अस्वीकरण: यह लेख पूर्णतः Namami Bharatam की X (पूर्व में ट्विटर) पोस्ट पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार और जानकारी रंगीन दुनिया की मान्यता या सहमति नहीं दर्शाते हैं, न ही इसे रंगीन दुनिया द्वारा प्रमाणित माना जाना चाहिए।

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