Caste Identity

Caste Identity: कार के पीछे ‘चमार’ लिखवाया, तो प्रियंका नामक X यूज़र ने लगाई जमकर फटकार

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हाइलाइट्स

  • Caste Identity को लेकर सोशल मीडिया पर छिड़ी नई बहस
  •  X (पूर्व ट्विटर) पर प्रियंका ने तस्वीर साझा कर जताई नाराज़गी
  • बाबासाहेब आंबेडकर के “जाति तोड़ो, समाज जोड़ो” विचारों की दी याद दिलाई
  • कार पर जाति अंकित करना संविधान और सामाजिक समरसता के खिलाफ बताया
  •  पोस्ट को समर्थन और विरोध दोनों मिल रहे हैं—बहस फिर से गरमा गई है

सोशल मीडिया पर Caste Identity को लेकर नई बहस

भारत में Caste Identity एक ऐसा मुद्दा है जो समय-समय पर गरमाता रहता है। इस बार बहस की चिंगारी X (पूर्व ट्विटर) पर एक यूज़र द्वारा साझा की गई तस्वीर से भड़की है। इस तस्वीर में एक कार के पीछे ‘चमार’ लिखा हुआ है, जिसे देखकर प्रियंका नामक यूज़र ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने न सिर्फ इस कृत्य को गलत ठहराया बल्कि इसे जातिवाद को बढ़ावा देने वाला बताया।

“जाति तोड़ो, समाज जोड़ो” की अपील

प्रियंका ने अपनी पोस्ट में लिखा,

“डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने ‘जाति तोड़ो, समाज जोड़ो’ कहा था। लेकिन कुछ लोग ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई जाति व्यवस्था को आज भी गले लगाकर गर्व महसूस करते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई उन्हें जातिसूचक शब्द से बुलाए, तो बुरा लगता है। ऐसे में स्वयं अपनी Caste Identity का प्रदर्शन करना किस प्रकार तर्कसंगत है?

क्यों होता है जाति का प्रदर्शन?

पहचान या प्रतिरोध?

कई लोग अपने वाहनों, सोशल मीडिया बायो, या यहां तक कि नाम के साथ जाति जोड़ते हैं। कुछ इसे सामाजिक विरोध का प्रतीक मानते हैं—वो अपनी पहचान छुपाने के बजाय उसे गर्व से दिखाना चाहते हैं। उनके अनुसार यह Caste Identity को अपनाने का नहीं, बल्कि उसे अस्वीकार करने वालों को चुनौती देने का एक तरीका है।

लेकिन क्या यह दोहरा मापदंड नहीं?

प्रियंका ने इसी द्वंद्व को चुनौती दी। उन्होंने पूछा कि जब संविधान ‘अछूत’, ‘अंत्यज’ जैसे शब्दों को नकारता है, तो फिर किसी जाति को खुद पर अंकित करना किस उद्देश्य की पूर्ति करता है?

Caste Identity और संविधान: एक विरोधाभास?

भारतीय संविधान ने हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीने का अधिकार दिया है। फिर भी Caste Identity आज भी सामाजिक व्यवहार, राजनीति और यहां तक कि सोशल मीडिया डिस्कोर्स का अहम हिस्सा बनी हुई है।

क्या जाति की घोषणा करना संविधान विरोधी है?

कानूनी रूप से किसी को अपनी जाति दिखाने से नहीं रोका जा सकता, लेकिन अगर इसका उपयोग दूसरों को नीचा दिखाने, भड़काने या अलग करने के लिए किया जाता है, तो यह समस्या का कारण बनता है।

सोशल मीडिया पर मिली मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

प्रियंका की पोस्ट पर कई प्रतिक्रियाएं आईं। कुछ ने उनके विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि Caste Identity को सार्वजनिक करना समाज को विभाजित करता है। वहीं कुछ लोगों ने इस विरोध को ही जाति-द्वेष बताया।

समर्थन में:

“प्रियंका सही कह रही हैं। डॉ. आंबेडकर ने जाति तोड़ने की बात की थी, उसे जिंदा रखने की नहीं।”

विरोध में:

“हमारी जाति हमारी पहचान है, हम उसे छिपा क्यों रखें?”

यहां सवाल यही उठता है कि Caste Identity को संरक्षित करना अधिकार है या सामाजिक उत्तरदायित्व का उल्लंघन?

सामाजिक एकता बनाम व्यक्तिगत स्वाभिमान

गाड़ी पर जाति लिखना: गर्व या विघटन?

गाड़ी के पीछे ‘चमार’ लिखवाने वाला व्यक्ति शायद अपनी पहचान को नकारने के बजाय अपनाना चाहता था। लेकिन सवाल यह है कि सार्वजनिक स्थानों पर Caste Identity को प्रदर्शित करना किस दिशा में ले जाता है—सामाजिक एकता या अलगाव?

दलित शब्द पर आपत्ति क्यों?

प्रियंका की पोस्ट में इस बात पर भी रोष था कि ‘दलित’ शब्द को अपमानजनक मानकर खारिज किया जा रहा है, जबकि इसी समाज का एक वर्ग जाति प्रदर्शित कर रहा है। यह दोहरा रवैया सामाजिक सुधार को चुनौती देता है।

क्या कहता है समाजशास्त्र?

समाजशास्त्रियों के अनुसार Caste Identity का सार्वजनिक प्रदर्शन भारत में लंबे समय से सामाजिक वर्चस्व और प्रतिरोध दोनों के प्रतीक के रूप में देखा जाता रहा है। हालांकि अब समय आ गया है जब पहचान के साथ-साथ समाज को जोड़ने की प्राथमिकता पर भी विचार किया जाना चाहिए।

Caste Identity की बहस कब रुकेगी?

गाड़ी पर जाति लिखना एक साधारण-सा कृत्य दिख सकता है, लेकिन इसके पीछे छिपा सामाजिक संदेश गहरा है। यह बहस सिर्फ प्रियंका की नाराज़गी नहीं, बल्कि पूरे समाज में Caste Identity को लेकर फैले अंतर्विरोधों को उजागर करती है। जब तक हम जातियों को गौरव या अपमान की दृष्टि से देखना बंद नहीं करेंगे, तब तक ‘जाति तोड़ो, समाज जोड़ो’ सिर्फ एक नारा ही बना रहेगा।

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