हाइलाइट्स
- रूस ने कैंसर की वैक्सीन का मानव परीक्षण शुरू करने की घोषणा की
- शुरुआत में यह वैक्सीन दुनिया को मुफ्त दी जाएगी: पुतिन
- अमेरिकी और यूरोपीय फार्मा कंपनियों में तनाव की स्थिति
- कैंसर का वैश्विक कारोबार 400 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की कगार पर
- रूसी वैक्सीन से सस्ता और स्थायी इलाज संभव होने की उम्मीद
रूस एक बार फिर वैश्विक मंच पर चिकित्सा विज्ञान में नया इतिहास रचने की ओर बढ़ रहा है। इस बार चर्चा का केंद्र है कैंसर की वैक्सीन जिसे रूस की प्रतिष्ठित गामालेया रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा विकसित किया गया है। इस वैक्सीन का मानव परीक्षण अब शुरू होने जा रहा है और दावा किया जा रहा है कि इससे कैंसर जैसी घातक बीमारी पर निर्णायक वार हो सकेगा।
रूस ने क्यों ली कैंसर की वैक्सीन की जिम्मेदारी?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की है कि यह वैक्सीन मानवता के कल्याण हेतु मुफ्त में उपलब्ध करवाई जाएगी। पुतिन का कहना है कि सिर्फ रूस ही नहीं, बल्कि दुनिया के उन गरीब और विकासशील देशों को भी यह वैक्सीन दी जाएगी जो अब तक महंगे इलाज के कारण इलाज से वंचित रहे हैं।
गामालेया संस्थान की भूमिका
कोविड-19 के दौरान स्पुतनिक-V नामक वैक्सीन बनाकर दुनिया को चौंकाने वाले इसी संस्थान ने अब कैंसर की वैक्सीन तैयार की है। निदेशक अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग के मुताबिक यह एक ‘पर्सनलाइज्ड वैक्सीन’ होगी यानी इसे केवल उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जा सकेगा जिसके लिए यह बनी होगी।
मानव परीक्षण की प्रक्रिया
हर्टसन रिसर्च इंस्टीट्यूट और ब्लोखिन कैंसर सेंटर में इसके प्रारंभिक परीक्षण शुरू किए जा रहे हैं। यदि सब कुछ योजना के अनुसार चला, तो 2026 तक यह वैक्सीन व्यापक तौर पर उपलब्ध हो सकती है। वैक्सीन न केवल ट्यूमर को खत्म करने में सहायक होगी, बल्कि पुनः कैंसर होने की संभावना को भी लगभग समाप्त कर देगी।
क्यों घबराईं अमेरिका-यूरोप की फार्मा कंपनियां?
इस खबर के बाद अमेरिका और यूरोप की प्रमुख फार्मा कंपनियों के शेयरों में गिरावट देखने को मिली। मॉडर्ना, मर्क, बायोएनटेक, फाइजर और रोश जैसी कंपनियों की चिंता इस बात को लेकर है कि यदि कैंसर की वैक्सीन सस्ती और प्रभावी साबित होती है, तो उनके अरबों डॉलर के मुनाफे पर सीधी चोट पड़ेगी।
कैंसर इलाज में कितनी कमाई होती है?
2022 में दुनिया भर में कैंसर दवाओं का व्यापार लगभग 203 अरब डॉलर का था, जो 2028 तक 400 अरब डॉलर के पार जाने का अनुमान है। इसमें से अकेले अमेरिकी कंपनियों की हिस्सेदारी लगभग 50% और यूरोपीय कंपनियों की 15-20% के बीच है।
सवाल: क्या फार्मा कंपनियां इलाज छिपा रही हैं?
यह बहस वर्षों से चल रही है कि क्या फार्मा कंपनियां जानबूझकर स्थायी इलाज विकसित नहीं करतीं ताकि उनकी दवाएं बार-बार बिकती रहें? उदाहरण के लिए, मर्क की दवा “Keytruda” ने अकेले 2023 में 25 अरब डॉलर की कमाई की। अगर कैंसर की वैक्सीन आ जाती है और एक ही बार में मरीज ठीक हो जाता है, तो ऐसी दवाओं की मांग कम हो सकती है।
वैकल्पिक दृष्टिकोण
हालांकि फार्मा कंपनियां यह तर्क देती हैं कि वे हर साल अरबों डॉलर रिसर्च और डेवलपमेंट में खर्च करती हैं। 2023 में फार्मा इंडस्ट्री ने R&D पर लगभग 250 अरब डॉलर खर्च किए थे। इसके बावजूद, यह भी सच है कि यदि सस्ती और कारगर वैक्सीन उपलब्ध होती है, तो कंपनियों का मुनाफा प्रभावित होगा।
वैक्सीन बनाम पारंपरिक इलाज: आम जनता को क्या मिलेगा फायदा?
कीमोथेरेपी, रेडिएशन, इम्यूनोथेरेपी जैसी विधियों से इलाज कराने में वर्षों लगते हैं और लाखों-करोड़ों का खर्च आता है। कैंसर की वैक्सीन से यदि यह इलाज एक बार में हो जाए तो यह न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होगा, बल्कि मरीज की शारीरिक और मानसिक पीड़ा भी कम होगी।
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— Zee News (@ZeeNews) August 4, 2025
भारत के लिए क्या होगा असर?
भारत जैसे देशों में जहां बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे है, वहां कैंसर की वैक्सीन एक वरदान साबित हो सकती है। फिलहाल भारत में कैंसर इलाज पर औसतन ₹10 लाख तक का खर्च आता है, जो वैक्सीन की उपलब्धता के बाद न के बराबर हो सकता है।
क्या वैक्सीन से खत्म हो जाएगा कैंसर?
इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है क्योंकि कैंसर की वैक्सीन का मानव परीक्षण अभी शुरू ही हुआ है। लेकिन यदि यह वैक्सीन सफल रहती है, तो यह एक बड़ी चिकित्सा क्रांति होगी। WHO और अन्य वैश्विक संस्थाएं इस प्रक्रिया पर नज़र बनाए हुए हैं।
क्या रूस बदल देगा चिकित्सा का नक्शा?
रूस की यह पहल केवल एक वैक्सीन नहीं, बल्कि एक वैश्विक संदेश है—बीमारी से लड़ाई के लिए एकजुट होने का। कैंसर की वैक्सीन की सफलता न केवल वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक होगी, बल्कि यह भी सिद्ध करेगी कि चिकित्सा का उद्देश्य मुनाफा नहीं, मानव सेवा होना चाहिए।