जिस पुल पर रोज़ गुजरते थे हजारों ज़िंदगियाँ, वही बना मौत का फंदा — गुजरात में हुआ भीषण हादसा

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हाइलाइट्स

  • Broken Bridge Accident: गुजरात में वडोदरा और आणंद को जोड़ने वाला पुल अचानक टूटा, जिससे कई वाहन नदी में गिर गए।
  • हादसे के वक्त पुल पर भारी ट्रैफिक था, जिसमें एक टैंकर अब भी आधा लटका हुआ है।
  • घटना के बाद राहत और बचाव कार्य में देरी को लेकर लोगों में गुस्सा।
  • स्थानीय लोगों का आरोप- कई बार पुल की मरम्मत की मांग की गई, लेकिन नजरअंदाजी हुई।
  • अब सरकार की बजाय ठेकेदार और मजदूरों को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश शुरू।

गुजरात के आणंद और वडोदरा जिलों को जोड़ने वाला एक मुख्य पुल सोमवार की सुबह अचानक टूट गया, जिससे कई वाहन सीधे नदी में जा गिरे। इस Broken Bridge Accident ने न केवल दर्जनों परिवारों को शोक में डुबो दिया, बल्कि एक बार फिर हमारे सिस्टम की नाकामी को उजागर कर दिया।

घटना का पूरा विवरण

सुबह करीब 7:45 बजे के आसपास जैसे ही ऑफिस और स्कूल जाने वालों की भीड़ पुल पर बढ़ी, एक जोरदार आवाज़ के साथ पुल का मध्य हिस्सा ढह गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कम से कम 12 से ज्यादा वाहन—including बसें, कारें और एक बड़ा टैंकर—इस हादसे की चपेट में आ गए।

Broken Bridge Accident के बाद घटनास्थल पर अफरातफरी मच गई। लोगों ने खुद अपने स्तर पर बचाव कार्य शुरू किया क्योंकि प्रशासन की टीमें काफी देर से पहुंचीं।

अब तक कितने लोगों की जान गई?

स्थानीय प्रशासन की शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 8 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 30 से अधिक घायल हैं। वहीं कुछ लोगों के लापता होने की भी खबरें हैं।

Broken Bridge Accident ने न सिर्फ लोगों की जान ली, बल्कि प्रशासन की सुस्त कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए हैं।

जांच या बहाना? सरकार का रुख क्या है

सरकार की प्रतिक्रिया

राज्य सरकार ने हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं। मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर दुख जताया और पीड़ितों के लिए 5 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की है। लेकिन सवाल उठता है—क्या सिर्फ मुआवजा देना काफी है?

ठेकेदार और इंजीनियर पर टिकी नज़र

हर बार की तरह इस बार भी Broken Bridge Accident की जांच की दिशा ठेकेदार और इंजीनियर की ओर मोड़ दी गई है। मीडिया चैनलों ने तो मज़दूरों तक के नाम सार्वजनिक कर दिए हैं, लेकिन उन अफसरों की जवाबदेही तय नहीं हो रही जिन्होंने निर्माण की मंजूरी दी थी।

स्थानीय जनता का आक्रोश

“हमने कई बार चेताया था”

स्थानीय निवासी नरेश पटेल ने बताया, “हमने नगर पालिका और पीडब्ल्यूडी को कई बार शिकायत दी थी कि यह पुल जर्जर हो चुका है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब जब Broken Bridge Accident हुआ, तो सब चुप हैं।”

सड़क नहीं, साजिश है ये

वडोदरा के एक सामाजिक कार्यकर्ता हर्षद भट्ट ने कहा, “यह सिर्फ एक पुल का गिरना नहीं है, यह सिस्टम की साजिश है। जानबूझकर मरम्मत नहीं की जाती ताकि बाद में नया ठेका मिल सके।”

मीडिया का रोल: बहस या भटकाव?

डिबेट में बस तुलना और तमाशा

राष्ट्रीय मीडिया चैनलों ने इस Broken Bridge Accident को एक टीआरपी के मौके में बदल दिया है। एक डिबेट शो में एक पक्ष ने कहा—“यह पुल 2012 में भी कांग्रेस शासन में जर्जर था,” तो दूसरे ने कहा—“भाजपा ने भी कुछ नहीं किया।”

तथ्यों और जवाबदेही की जगह सिर्फ राजनीतिक बहसों ने टीवी स्क्रीन पर जगह पाई है।

ठेकेदार बनाम सरकार

कुछ चैनलों ने तो ठेकेदार का नाम बताते हुए उसे ‘मोहरा’ बना दिया है। वहीं इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से सवाल तक नहीं पूछे जा रहे।

जिम्मेदारी तय कौन करेगा?

पुरानी घटनाएं, पुरानी भूलें

यह पहला Broken Bridge Accident नहीं है। इससे पहले भी मोरबी, बिहार के सीतामढ़ी, और मध्यप्रदेश के कटनी में इसी तरह के हादसे हो चुके हैं। हर बार मुआवजा और जांच के बाद सब कुछ शांत हो जाता है।

जनता को कब मिलेगा इंसाफ?

जनता को सिर्फ हादसे की खबरें और बहसें मिलती हैं, इंसाफ नहीं। सवाल उठता है कि क्या किसी मंत्री या वरिष्ठ अफसर की गिरफ्तारी होगी? या फिर एक बार फिर मज़दूर ही बलि का बकरा बनेंगे?

अब क्या करें?

इस Broken Bridge Accident ने एक बार फिर सिस्टम की लापरवाही, मीडिया की भटकाव भरी रणनीति और जनता की असहायता को उजागर कर दिया है। सवाल पूछने की जिम्मेदारी सिर्फ मीडिया की नहीं, जनता की भी है।

जब तक नागरिक अपनी जान की कीमत नहीं समझते और सिस्टम से जवाब नहीं मांगते, तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे और चर्चा से ज्यादा कुछ नहीं बदलेगा।

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