भारत के लिए चौंकाने वाली खबर… ब्रिटेन ने लागू की कड़ी निर्वासन नीति, जानें क्या है नया नियम

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हाइलाइट्स

  • ब्रिटेन की नई निर्वासन नीति में अब भारत को भी शामिल किया गया, अपराधियों को पहले निर्वासन और बाद में अपील का अधिकार मिलेगा।
  • 15 देशों की नई सूची में भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और मलेशिया भी शामिल।
  • नीति के तहत अपराधियों को ब्रिटेन से निर्वासित कर भारत से ही वीडियो लिंक के माध्यम से अपील करनी होगी।
  • जेलों में भीड़ कम करने और अपराध को लेकर आम लोगों की चिंता घटाने के उद्देश्य से लागू की गई योजना।
  • आतंकवादियों और आजीवन कारावास पा चुके अपराधियों को पहले ब्रिटेन में सजा पूरी करनी होगी।

ब्रिटेन की नई निर्वासन नीति का बड़ा बदलाव

ब्रिटेन सरकार ने हाल ही में अपनी नई निर्वासन नीति में बड़ा बदलाव करते हुए भारत को उन देशों की सूची में शामिल कर दिया है, जिन पर “पहले निर्वासन, फिर अपील” का नियम लागू होगा। इसका सीधा मतलब यह है कि अगर कोई भारतीय नागरिक ब्रिटेन में अपराध के लिए दोषी साबित होता है, तो उसे पहले देश से बाहर भेजा जाएगा और उसके बाद ही वह अपने खिलाफ फैसले की अपील कर सकेगा।

ब्रिटिश सरकार का दावा है कि यह कदम जेलों में भीड़भाड़ को कम करने और अपराध को लेकर आमजनों की चिंता को घटाने के उद्देश्य से उठाया गया है।

पहले क्या था नियम?

अब तक स्थिति यह थी कि ब्रिटेन में अपराधी ठहराए गए विदेशी नागरिक मानवाधिकार कानूनों का सहारा लेकर लंबे समय तक वहीं रहकर अपने निर्वासन के खिलाफ अपील कर सकते थे। इस प्रक्रिया में कई साल लग जाते थे और अपराधी इस दौरान ब्रिटेन में रहना जारी रखते थे।

लेकिन नई निर्वासन नीति के तहत अब ऐसा संभव नहीं होगा। दोषी को सीधे निर्वासित कर दिया जाएगा और वह अपने देश से ही वीडियो लिंक के जरिए अपील की सुनवाई में भाग ले सकेगा।

किन अपराधियों पर तुरंत निर्वासन लागू नहीं होगा?

हालांकि इस नीति में कुछ अपवाद भी रखे गए हैं। आतंकवाद के मामलों में दोषी पाए गए अपराधी, हत्या के दोषी और आजीवन कारावास की सजा पा चुके कैदियों को पहले ब्रिटेन में ही अपनी सजा पूरी करनी होगी, उसके बाद ही उनके निर्वासन पर विचार किया जाएगा।

भारत के लिए इसका क्या मतलब है?

भारत के लिए यह बदलाव महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय नागरिकों, विशेषकर अपराध के मामलों में दोषी पाए गए लोगों पर बड़ा असर पड़ेगा। नई निर्वासन नीति लागू होने के बाद भारतीय अपराधियों के पास ब्रिटेन में रहने का कोई कानूनी विकल्प नहीं बचेगा।

निर्वासन के बाद यह भारत की जिम्मेदारी होगी कि वह तय करे कि संबंधित व्यक्ति को जेल भेजा जाए या रिहा कर दिया जाए।

किन देशों में लागू है यह नीति?

पहले यह नीति केवल आठ देशों के अपराधियों पर लागू थी — फिनलैंड, नाइजीरिया, एस्टोनिया, अल्बानिया, बेलीज, मॉरीशस, तंजानिया और कोसोवो।

अब इसे 15 और देशों पर लागू कर दिया गया है, जिनमें भारत, बुल्गारिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अंगोला, बोत्सवाना, ब्रुनेई, गुयाना, इंडोनेशिया, केन्या, लातविया, लेबनान, मलेशिया, युगांडा और जाम्बिया शामिल हैं।

इस तरह अब कुल 23 देश इस नई निर्वासन नीति के दायरे में आ गए हैं।

क्यों लाया गया यह बदलाव?

ब्रिटिश सरकार के अनुसार, जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के कारण प्रशासनिक दबाव बढ़ रहा था। साथ ही, जनता में यह धारणा बन रही थी कि विदेशी अपराधी मानवाधिकार कानूनों का दुरुपयोग कर सजा और निर्वासन में देरी करा रहे हैं।

नई निर्वासन नीति से सरकार उम्मीद कर रही है कि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई तेज होगी और ब्रिटेन की जेलों पर बोझ कम होगा।

2014 से 2023 तक का सफर

इस नीति की शुरुआत पहली बार 2014 में कंज़र्वेटिव पार्टी के शासन में हुई थी। बाद में यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई, लेकिन 2023 में इसे फिर से लागू किया गया और अब 2025 में इसे और विस्तार देते हुए भारत समेत 15 नए देशों को इसमें जोड़ा गया है।

आलोचना और समर्थन

जहां एक तरफ ब्रिटेन के कुछ लोग इस नीति का समर्थन कर रहे हैं, वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कदम विदेशी नागरिकों के अधिकारों का हनन कर सकता है। उनका तर्क है कि अपील का अवसर निर्वासन से पहले मिलना चाहिए, ताकि आरोपी अपनी बात पूरी तरह रख सके।

दूसरी ओर, समर्थकों का मानना है कि यह नीति अपराध कम करने और न्यायिक प्रक्रिया को तेज बनाने में मदद करेगी।

ब्रिटेन की यह नई निर्वासन नीति भारत और वहां रह रहे भारतीय नागरिकों के लिए एक अहम बदलाव है। इसका असर न केवल अपराधियों पर पड़ेगा, बल्कि यह दोनों देशों के बीच कानूनी और कूटनीतिक रिश्तों में भी नई चुनौतियां और अवसर पैदा करेगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नीति अपराध दर और न्यायिक प्रक्रिया पर कितना प्रभाव डाल पाती है।

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