हाइलाइट्स
- सांप्रदायिक हिंसा पर भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद का तीखा हमला, X पर साझा किया वीडियो
- अयोध्या के विवादित परमहंस दास पर आरोप, मुस्लिम बुज़ुर्ग को ‘आतंकवादी’ कहकर अपमानित किया
- सीतापुर के मोहम्मद हनीफ चादरें बेचकर परिवार का पालन कर रहे हैं, वीडियो में दिखा खुलेआम अपमान
- चंद्रशेखर बोले – “धर्म का चोला ओढ़कर ज़हर उगलने वाले संत नहीं, समाज के लिए ख़तरा हैं”
- भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी ने इस सांप्रदायिक हिंसा की तीव्र निंदा करते हुए कार्रवाई की माँग की
X पर वायरल वीडियो ने खोली ‘संत’ की असलियत
भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद ने 19 जुलाई को X (पूर्व ट्विटर) पर एक वीडियो साझा करते हुए उत्तर प्रदेश की राजनीति में उबाल ला दिया। वीडियो में अयोध्या के स्वयंघोषित संत परमहंस दास, सीतापुर के एक बुज़ुर्ग मुस्लिम – मोहम्मद हनीफ को, जो मेहनत से चादरें बेचकर जीवनयापन कर रहे हैं, ‘आतंकवादी’ कहते हुए दिखाई दे रहे हैं।
चंद्रशेखर ने तीखे शब्दों में लिखा, “जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री की भाषा ही असंवैधानिक हो, वहाँ धर्म का चोला ओढ़े ठेकेदारों से इससे ज़्यादा क्या उम्मीद की जा सकती है?” यह बयान न केवल सत्ताधारी दल पर प्रहार था, बल्कि समाज में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा पर सीधा सवाल भी।
परमहंस दास का ज़हरीला बयान: ‘मुस्लिम होना ही आतंकवाद का प्रमाण?’
सीतापुर के फेरीवाले चादरें बेच रहे मोहम्मद हनीफ पर बिना किसी प्रमाण के सार्वजनिक रूप से ‘आतंकवादी’ ठप्पा लगाने का यह प्रयास न सिर्फ अमानवीय था, बल्कि सांप्रदायिक हिंसा की मानसिकता को उजागर करता है।
चंद्रशेखर आज़ाद का सवाल: “क्या यही धर्म है?”
वीडियो के साथ उन्होंने लिखा:
“अयोध्या का पाखंडी परमहंस दास, सीतापुर के एक मेहनतकश बुज़ुर्ग — मोहम्मद हनीफ जी, जो चादरें बेचकर अपने परिवार का पेट पालते हैं — को सिर्फ़ मुस्लिम होने की वजह से ‘आतंकवादी’ कहता है।
यह कोई बयान नहीं, सीधी सांप्रदायिक हिंसा है।”
चंद्रशेखर ने पूछा, “जब सोच ही इतनी ज़हरीली हो, तो ऐसे लोग धर्म और नैतिकता की बातें क्या सिखाते होंगे?”
धर्म का अपमान या उसका व्यापार?
चंद्रशेखर ने परमहंस दास जैसे लोगों को ‘धर्म का ठेकेदार’ कहते हुए लिखा:
“धर्म का चोला ओढ़कर ज़हर उगलने वाले संत नहीं, समाज के लिए ख़तरा और सांप्रदायिक अपराधी होते हैं।”
यह वक्तव्य स्पष्ट करता है कि ऐसे बयान समाज में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की भूमिका निभाते हैं, न कि शांति और सद्भाव की।
जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री की भाषा ही असंवैधानिक हो, वहाँ धर्म का चोला ओढ़े ठेकेदारों से इससे ज़्यादा क्या उम्मीद की जा सकती है?
अयोध्या का पाखंडी परमहंस दास, सीतापुर के एक मेहनतकश बुज़ुर्ग — मोहम्मद हनीफ जी, जो चादरें बेचकर अपने परिवार का पेट पालते हैं — को सिर्फ़ मुस्लिम होने… pic.twitter.com/zC6Y2d1uA1
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) July 20, 2025
भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी का विरोध प्रदर्शन
भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने इस पूरे मामले को लेकर विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने इस मानसिकता को “घिनौनी और संविधान-विरोधी” बताते हुए सरकार से कार्रवाई की माँग की है।
कानूनी सवाल: क्या ये बयान IPC की धारा 153A के तहत अपराध है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 153A के अनुसार, धार्मिक आधार पर वैमनस्य फैलाना दंडनीय अपराध है। इस वीडियो में जिस प्रकार मोहम्मद हनीफ को केवल मुस्लिम पहचान के आधार पर अपमानित किया गया है, वह सांप्रदायिक हिंसा की स्पष्ट श्रेणी में आता है।
क्या यह चुप रह जाने का समय है?
इस घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा किया है कि क्या भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के सम्मान और सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा रहा है?
सामाजिक संगठनों की भूमिका
“हम भारत के लोग”, “United Against Hate” जैसे संगठन इस मामले में न्याय की माँग करते हुए सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि ऐसे बयानों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो।
धर्म के नाम पर नफ़रत, संविधान की आत्मा पर चोट
चंद्रशेखर आज़ाद का यह वीडियो पोस्ट और प्रतिक्रिया महज एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि भारत के संविधान, धार्मिक स्वतंत्रता और सह-अस्तित्व के मूल्यों की रक्षा की पुकार है।
सांप्रदायिक हिंसा की यह घटना हमें बार-बार चेतावनी देती है कि धर्म का चोला ओढ़े लोग यदि समाज में ज़हर फैलाने लगें, तो यह न सिर्फ़ हमारे लोकतंत्र, बल्कि हमारी इंसानियत पर भी सबसे बड़ा हमला है।
अस्वीकरण
यह लेख केवल भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद द्वारा X (पूर्व ट्विटर) पर साझा किए गए एक ट्वीट पर आधारित है। इसमें उल्लिखित विचार, शब्द एवं आरोप उनके व्यक्तिगत हैं, न कि “रंगीन दुनिया” न्यूज़ पोर्टल के।
“रंगीन दुनिया” इस ट्वीट की सामग्री, उसकी सटीकता या उसमें दिए गए कथनों की पुष्टि नहीं करता है, और न ही इसका उद्देश्य किसी धर्म, समुदाय या व्यक्ति की भावना को आहत करना है।