हाइलाइट्स
- Beti Bachao नारा एक बार फिर सवालों के घेरे में, हरदोई की नाबालिग रिशु शुक्ला की हत्या से मचा हड़कंप
- पीड़िता का शव अर्धनग्न हालत में नाले के पास मिला, कई दिनों से लापता थी
- गृहमंत्री अमित शाह के दावों पर उठे सवाल—क्या यही है ‘Beti Bachao’ नीति?
- अमेरिका समेत कई देशों ने भारत यात्रा पर महिलाओं को दी चेतावनी
- सवाल खड़ा: क्या विकास और सुशासन बेटियों की सुरक्षा से बड़ा है?
हरदोई से उठी दर्दनाक चीख—’Beti Bachao’ सिर्फ नारा या छलावा?
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में एक नाबालिग बच्ची रिशु शुक्ला की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है। “Beti Bachao” नारे के बीच एक बार फिर सवाल उठ खड़ा हुआ है—क्या देश में बेटियां वास्तव में सुरक्षित हैं?
रिशु शुक्ला, जो कई दिनों से लापता थी, उसका शव हाल ही में अर्धनग्न अवस्था में एक नाले के पास मिला। परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है, और स्थानीय लोगों में आक्रोश की लहर है।
मंचों से किए वादे और जमीनी सच्चाई में फासला
जब मंच से हुआ था वादा
गृहमंत्री अमित शाह ने कई मंचों से ये दावा किया था कि देश में अब महिलाएं आधी रात को भी गहने पहनकर निकल सकती हैं। यह बयान जहां एक तरफ “सुशासन” की मिसाल माना गया, वहीं दूसरी ओर Beti Bachao नीति की प्रभावशीलता पर आज सवालिया निशान लग गया है।
रिशु की हत्या ने उठाए कई सवाल
हरदोई की इस घटना ने साफ कर दिया है कि जमीनी हकीकत कुछ और है। Beti Bachao के नाम पर योजनाएं बनाई जाती हैं, पोस्टर लगाए जाते हैं, लेकिन जब एक बच्ची घर से बाहर निकलती है, तो उसकी सुरक्षा भगवान भरोसे होती है।
परिजनों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनकी शिकायत को समय पर गंभीरता से नहीं लिया, और अगर ली होती तो शायद रिशु आज जिंदा होती।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख पर असर
अमेरिका और अन्य देशों की चेतावनी
भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गूंज रही है। अमेरिका समेत कई देशों ने अपने नागरिकों को चेतावनी जारी की है कि वे भारत यात्रा के दौरान महिलाओं को अकेले यात्रा न करने की सलाह दें।
यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक छवि पर गहरा धब्बा है। Beti Bachao जैसे अभियानों के बावजूद अगर महिलाओं को यह चेतावनी दी जा रही है, तो सवाल उठाना लाजमी है।
क्या यही है विश्वगुरु बनने की राह?
जब देश की बेटियां घर से निकलने में डरती हैं, जब स्कूल जाते हुए रास्ते असुरक्षित लगते हैं, तब “विकास” और “विश्वगुरु” जैसे शब्द बेमानी लगने लगते हैं। क्या हम ऐसे राष्ट्र की ओर अग्रसर हैं, जहाँ Beti Bachao का नारा सिर्फ पोस्टर तक सीमित रह गया है?
राजनीति और संवेदनशीलता की टकराहट
बसावन इंडिया का ट्वीट—सत्ता को आईना
राजनीतिक कार्यकर्ता बसावन इंडिया ने ट्वीट कर सीधे गृह मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा:
“हरदोई में रविप्रकाश शुक्ला की नाबालिग बेटी रिशु शुक्ला का शव अर्धनग्न अवस्था में नाले के पास मिला। वह कई दिनों से लापता थी।
पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है, लेकिन परिजनों के आंसू और समाज का आक्रोश अभी थमा नहीं है।
गृहमंत्री अमित शाह बताएं, जो मंचों से आधी रात को बहन-बेटियों के गहने पहनकर घूमने की कानून-व्यवस्था का दावा करते हैं, क्या यही है आपकी ‘Beti Bachao’ नीति?”
यह बयान सिर्फ एक व्यक्ति की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि जनता की सामूहिक पीड़ा का प्रतीक बन गया है।
क्या वाकई ‘Beti Bachao’ नीति सफल है?
सरकारी बजट और जमीनी क्रियान्वयन
Beti Bachao योजना पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। लेकिन इस धन का कितना हिस्सा वास्तविक सुरक्षा पर जाता है, और कितना प्रचार-प्रसार में—यह सवाल बना हुआ है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी पुलिस की संख्या कम है, सीसीटीवी का अभाव है, और महिला सुरक्षा को लेकर कोई ठोस निगरानी तंत्र नहीं है।
कानून तो हैं, पर उनका पालन?
बलात्कार, छेड़खानी, लापता बच्चों के केस में मुकदमा दर्ज करना और समय पर जांच पूरी करना—इन सब में प्रशासनिक लापरवाही आम बात हो गई है। Beti Bachao तभी सार्थक होगा, जब कानून का डर अपराधियों में हो, और आमजन को सुरक्षा की भावना मिले।
मीडिया की भूमिका और जनदबाव
सोशल मीडिया बना पीड़ित परिवार की आवाज
रिशु शुक्ला का मामला तब चर्चा में आया जब सोशल मीडिया पर बसावन इंडिया जैसे लोगों ने इसे उठाया।
आज मीडिया का दायित्व है कि वह सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए नहीं, बल्कि Beti Bachao जैसे अभियानों की असल सच्चाई उजागर करने के लिए रिपोर्टिंग करे।
जनता की मांग: सुरक्षा का अधिकार
देश की जनता अब सिर्फ नारों से नहीं, बल्कि ठोस नतीजों की अपेक्षा कर रही है। जब बच्चियां स्कूल, बाजार या पार्क तक जाने में सुरक्षित न हों, तो “बेटी पढ़ाओ” और Beti Bachao जैसे नारों का क्या अर्थ रह जाता है?
हरदोई की रिशु शुक्ला की हत्या ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि Beti Bachao सिर्फ एक स्लोगन नहीं, बल्कि एक जमीनी चुनौती है। जब तक बच्चियों को असली सुरक्षा नहीं मिलती, जब तक अपराधियों को सजा नहीं मिलती, तब तक भारत का हर विकास-नारा अधूरा है।
यह सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात नहीं, बल्कि पूरे देश की चेतावनी है—अब समय आ गया है जब नारे नहीं, नतीजे चाहिए।