हाइलाइट्स
- मौलाना साजिद रशीदी पर हमला ने मुस्लिम समाज में गहरा रोष पैदा किया है।
- मुरादाबाद में सपा कार्यकर्ताओं द्वारा मौलवी पर की गई मारपीट ने धार्मिक भावनाओं को झकझोरा।
- नाजिम अशरफी और सूफी कशिश वारसी ने इसे पूरे मुस्लिम समाज का अपमान बताया।
- सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की चुप्पी पर उठे सवाल, मुस्लिम सांसदों को भी लताड़ा गया।
- धर्मगुरुओं ने की दोषियों पर सख्त कार्रवाई और माफी की मांग।
मुरादाबाद में मौलाना साजिद रशीदी पर हमला अब सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं रह गई है, बल्कि यह पूरे देश में मुस्लिम समाज के भीतर आक्रोश की लहर बनकर उभरी है। समाजवादी पार्टी (सपा) के कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा एक मौलवी के साथ की गई मारपीट ने न सिर्फ धार्मिक भावनाओं को आहत किया है, बल्कि सपा नेतृत्व की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
धार्मिक सम्मान या राजनीतिक साजिश?
मस्जिद की गरिमा की रक्षा या राजनीति की गुंडागर्दी?
मौलाना साजिद रशीदी पर हमला तब हुआ जब उन्होंने एक मस्जिद से संबंधित मुद्दे पर अपनी राय रखी थी। उनके समर्थकों का कहना है कि रशीदी ने किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति पर कोई आरोप नहीं लगाया था, बल्कि सिर्फ धार्मिक मर्यादा की बात कही थी। बावजूद इसके, सपा से जुड़े लोगों ने उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित कर, उनके साथ धक्का-मुक्की और मारपीट की।
मौलाना नाजिम अशरफी का तीखा बयान
घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए मौलाना नाजिम अशरफी ने कहा, “यह हमला सिर्फ मौलाना साजिद रशीदी पर नहीं, बल्कि पूरे मुस्लिम समाज और उलेमा-ए-दीन पर है। ये अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि मुस्लिम समाज अब खामोश नहीं रहेगा।
सियासत की चुप्पी पर सवाल
अखिलेश यादव और मुस्लिम वोट बैंक
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर भी इस मामले में चुप्पी साधने के आरोप लग रहे हैं। मौलाना अशरफी ने तीखा सवाल किया, “क्या यही है वो इंसाफ जिसकी उम्मीद मुसलमानों ने सपा से की थी?” उन्होंने आरोप लगाया कि सपा के मुस्लिम सांसद भी इस मुद्दे पर चुप हैं, जिससे उनकी नीयत और प्रतिबद्धता पर संदेह होता है।
सपा सांसदों को चेतावनी
सपा सांसद मुहिबुल्लाह नदवी और जियाउर्रहमान बर्क को भी मौलाना अशरफी ने लताड़ा। उन्होंने कहा, “आपकी चुप्पी हमारी जिल्लत है। अगर आज मौलवियों को मारा जा रहा है, तो कल यह आग सबको जला देगी।”
उलेमा की एकता की पुकार
सूफी कशिश वारसी की सख्त चेतावनी
भारतीय सूफी फाउंडेशन के अध्यक्ष सूफी कशिश वारसी ने भी घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा, “यह एक सोची-समझी साजिश है। समाज को बांटने की कोशिश की जा रही है और धर्मगुरुओं को डराने की रणनीति अपनाई जा रही है।” उन्होंने उलेमा से अपील की कि वे एकजुट होकर इस अत्याचार के खिलाफ खड़े हों।
इस्लामी विद्वानों की भूमिका
धार्मिक समुदाय में यह मांग तेजी से उठ रही है कि मौलाना साजिद रशीदी पर हमला करने वालों को जल्द गिरफ्तार किया जाए और न्यायिक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। कई इस्लामी शिक्षाविदों ने भी इस पर चिंता जताई है कि अगर मौलवियों की सुरक्षा नहीं हो सकती तो आम मुस्लिम की क्या स्थिति होगी।
कानूनी कार्रवाई और सियासी दबाव
FIR दर्ज, लेकिन गिरफ्तारी अभी तक नहीं
हालांकि इस मामले में FIR दर्ज हो चुकी है, लेकिन हमलावरों की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हो सकी है। इससे नाराजगी और बढ़ गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सपा का राजनीतिक दबाव पुलिस पर बना हुआ है, जिससे कार्रवाई में देरी हो रही है।
केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका
मौलाना अशरफी और सूफी वारसी ने राज्य सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। साथ ही केंद्र सरकार से इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की गई है। उनके अनुसार, यह केवल एक स्थानीय झगड़ा नहीं, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द को तोड़ने की साजिश है।
मुस्लिम युवाओं में आक्रोश
सोशल मीडिया पर उबाल
घटना के बाद से मौलाना साजिद रशीदी पर हमला सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। Twitter, Facebook और Instagram पर मुस्लिम युवाओं ने सपा के खिलाफ जमकर नाराजगी जताई। कई वीडियो और पोस्ट में हमले की तस्वीरें वायरल हुईं, जिनमें मौलवी की टोपी उछलती और दाढ़ी खींची जाती दिख रही है।
विरोध प्रदर्शन की तैयारी
सूत्रों के अनुसार, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, और अमरोहा में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है। यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आंदोलन राज्यव्यापी रूप ले सकता है।
राजनीतिक समीकरणों में बदलाव?
मुस्लिम वोट बैंक खिसकता दिख रहा
यह घटना सपा के लिए राजनीतिक रूप से भी बड़ा झटका हो सकती है। लंबे समय से सपा को मुस्लिमों का समर्थन मिलता रहा है, लेकिन अब मौलाना साजिद रशीदी पर हमला के बाद यह समीकरण टूटता नजर आ रहा है।
AIMIM और बसपा को फायदा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सपा ने स्थिति को संभालने में देरी की, तो AIMIM, बसपा और अन्य दल मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं। इससे सपा को उत्तर प्रदेश में बड़ा नुकसान हो सकता है।
मौलाना पर हमला नहीं, विचारधारा पर हमला
मौलाना साजिद रशीदी पर हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि यह धार्मिक अस्मिता, सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा आघात है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक दलों के भीतर धार्मिक सहिष्णुता का स्थान कितना संकुचित हो गया है।
मुस्लिम समाज अब चुप बैठने को तैयार नहीं है। इस बार मांग है—सम्मान, सुरक्षा और न्याय।