बागपत में साध्वी का चौंकाने वाला दावा: ‘मदरसे बंद हों, तभी देश में खत्म होगा आतंकवाद!’ – क्या सच में मदरसों में चल रही है आतंकवाद की ट्रेनिंग?

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हाइलाइट्स

  • मदरसों पर सरकार की कार्रवाई का केंद्र बना विवादित विषय, मदरसों की जाँच व शुद्धिकरण पर बढ़ी मांग — यह मदरसे चर्चा में।
  • Uttar Pradesh Anti-Terrorist Squad (ATS) ने हाल ही में प्रयागराज जोन समेत आठ जिलों के मदरसों से जुड़ी जानकारी मांगी है।
  • सीमावर्ती जिलों में सैकड़ों अवैध मदरसों को बंद करने या बंदी के अधिकारिक आदेश का सामना करना पड़ रहा है।
  • कुछ मदरसों में विदेशों से फंडिंग और वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा हुआ है, जिससे सुरक्षा‑सोच व निगरानी का समर्थन बढ़ा है।
  • तथ्यों की पड़ताल के दौरान कई दावे झूठे या गलत पाए गए — मदरसों में आतंकवाद‑प्रशिक्षण देने की बात पर आधारित पुराने वीडियो/दावों को फेक बताया गया।

मदरसों को लेकर क्यों बढ़ा सार्वजनिक और राजनीतिक दबाव

उत्तर प्रदेश में मदरसों को लेकर राजनीतिक और सुरक्षा‑संतुलन की चर्चा लंबे समय से चल रही है। हाल ही में, मदरसों की मान्यता, फंडिंग स्रोत, और उनके संचालन को लेकर नई चुनौतियाँ सामने आई हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने कई मदरसों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक संस्थाओं की छानबीन शुरू की है — विशेष रूप से उन मदरसों की जो अवैध तरीके से सरकारी या निजी ज़मीन पर बने हुए थे या जिन्हें विद्यालय बोर्ड/मदरस बोर्ड से मान्यता प्राप्त नहीं थी।

सरकार का तर्क है कि वह सिर्फ अवैध निर्माण ही नहीं हटा रही, बल्कि उन मदरसों की पहचान कर रही है जो मानकों और नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसे मदरसों की स्थिति, फंडिंग स्रोत, और उनकी गतिविधियाँ सार्वजनिक और सुरक्षा‑चेतना के दायरे में आई हैं।

एक बड़े स्तर पर जाँच के दौरान यह भी सामने आया कि कई मदरसों ने कभी अस्तित्व ही नहीं था — यानी फर्जी मदरसे थे, जिन्हें सरकारी अनुदान मिलता रहा।

इन सब कारणों से मदरसों का नाम पूरी तरह से विवादों से जुड़ चुका है — कुछ लोग इसे शिक्षा और धार्मिक अध्ययन का जरिया देखते हैं, तो कुछ इसे सुरक्षा व शासन‑व्यवस्था के लिए खतरा।

हालिया कार्रवाई — मदरसों का अज्ञात रूप से आंकलन और बंदी

गिरती विश्वसनीयता: अवैध मदरसों पर कार्रवाई

सरकार द्वारा 2025 में सीमावर्ती जिलों में अवैध मदरसों व धार्मिक संस्थाओं पर कार्रवाई तेज की गई है। उलंघन, गैर-मान्यता प्राप्त संस्थाएं, और सरकारी भूमि पर बिना अनुमति के बने धर्म‑संरचनाएं प्रमुख लक्ष्य रही हैं।

उदाहरण के लिए, एक बड़े अभियान में कई मदरसों को सील किया गया, मस्जिदों और अवैध बनावटों को तोड़ा गया — जिसमें उन संस्थाओं को भी शामिल किया गया जो वर्षों से सरकारी अनुदान ले रही थीं, लेकिन मान्यता व दस्तावेज़ीकरण के अभाव में पाई गईं।

वित्तीय जांच: विदेशी फंडिंग और अनियमितताएं

राज्य सरकार ने एक विशेष जांच दल (Special Investigation Team — SIT) गठित किया, ताकि बाहरी फंडिंग स्रोतों की निगरानी की जा सके। इस टीम ने पाया कि उत्तर प्रदेश के कुछ मदरसों को विदेशों से प्राप्त चंदा — अक्सर अरब देशों या विदेशों के अन्य स्रोतों से — भेजा गया था।

जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया कि ऐसे मदरसों में खर्च व आय‑व्यय की पारदर्शिता नहीं है। कई बार दान या चंदे लेने वाले संस्थान दाताओं की पहचान बताने से भी बचते रहे। इस वजह से सरकार ने उनकी गतिविधियों पर संदेह जताया है।

कुछ मदरसों ने अनुदान प्राप्त किया, लेकिन उनकी वास्तविक मौजूदगी ही विवादित रही — यानी उन्हें फर्जी पैâपरों पर बनाया गया। ऐसे मदरसों ने वर्षों तक सरकारी मदद ली, लेकिन कभी छात्रों या वास्तविक शिक्षण कार्य से संबंधित नहीं थे।

सुरक्षा‑परिप्रेक्ष्य: मदरसों व आतंकवाद का दायरा

कुछ वक्त से सामाजिक व सुरक्षा‑विश्लेषकों के बीच यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि गैर‑मान्यता प्राप्त, अवैध या फर्जी मदरसों का وجود आतंकवाद के खतरे से जुड़ा हो सकता है। ऐसे मदरसों में गतिविधियों की निगरानी मुश्किल होती है।

हालाँकि, इस तरह के दावों की विश्वसनीयता पर सवाल भी उठते रहे हैं। उदाहरण के लिए, एक वीडियो जिसे यह दिखाने के लिए वायरल किया गया था कि मदरसों में आतंकियों को ट्रेनिंग दी जा रही है — बाद में यह पाया गया कि वह वीडियो किसी मदरसे का नहीं था बल्कि एक धार्मिक रिवाज से जुड़ा था।

इसलिए, जब दावे हों, तो उनकी जाँच और सत्यापन बेहद जरूरी है। अफवाहों या सोशल मीडिया पर वायरल क्लिप्स के आधार पर पूरी संस्था या समुदाय को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं।

फिर भी, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने मदरसों की फंडिंग, कर्मचारियों और छात्रों की जांच शुरू की है — जैसे कि हाल ही में Uttar Pradesh Police की ATS यूनिट ने प्रयागराज जोन समेत आठ जिलों के मदरसों से आंकड़े मांगे।

बोलेगा समाज: विरोध, समर्थन और धर्म‑निरपेक्ष चिंताएं

मदरसों को लेकर जो वास्तविकता सामने आ रही है, उसके मद्देनज़र सामाजिक व राजनीतिक स्वर में कई बातें उठ रही हैं — लेकिन ये साफ है कि सिर्फ धर्म या समुदाय के आधार पर निष्कर्ष निकालना जोखिम भरा है।

  • जिन मदरसों पर कार्रवाई हुई है, उनमें कई अवैध, गैर-मान्यता प्राप्त या फर्जी पाए गए। ऐसे मामले न केवल शिक्षा के संकुचित नज़रिए को उजागर करते हैं, बल्कि शासन व सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग की चिंता भी बढ़ाते हैं।
  • वहीं, धर्म और समुदाय के आधार पर सम्पूर्ण संस्थान या धर्म को दोष देने से कट्टरता, सामाजिक द्वंद्व और गैर‑जरूरी विवाद हो सकते हैं। यह सामाजिक समरसता, धार्मिक स्वतंत्रता और संवेदनशीलता — तीनों पर असर डालता है।
  • इस स्थिति में बेहतर हो कि मदरसों में पारदर्शिता, सरकारी मान्यता, पाठ्यक्रम सुधार और वित्तीय अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। इसके साथ ही सुरक्षा और कानून व्यवस्था की निगरानी हो।

 संतुलन और समीक्षा की जरूरत

मदरसों का सवाल सिर्फ शिक्षा या धर्म का नहीं रहा — यह अब सुरक्षा, प्रशासनिक जवाबदेही और सामाजिक संतुलन से जुड़ा हुआ है। अवैध, फर्जी या अनधिकृत मदरसों के मुद्दे स्पष्ट रूप से दिखा चुके हैं कि व्यवस्था कितनी संवेदनशील हो सकती है।

लेकिन इतना भी नहीं कि हर मदरसे को बिना जांच के संदिग्ध मान लिया जाए। अशंका, दावे और समाधान — हर एक को ठोस सबूत, निष्पक्ष जाँच, और न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से देखना चाहिए।

सरकार की वर्तमान पहलों — फंडिंग की जांच, मान्यता व सत्यापन, सुझाव व शिकायत प्रणाली — इस दिशा में हो सकता है कि यह संतुलित और जिम्मेदार दृष्टिकोण हो।

अगर सचमुच कोई मदरसा कानून, शिक्षा या वित्तीय नियमों का उल्लंघन कर रहा हो, तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन सिर्फ नाम या धार्मिक पहचान के आधार पर भय‑भाव फैलाना न केवल अनुचित है, बल्कि संवेदनशील सामाजिक ढांचे को भी जोखिम में डाल सकता है।

इसलिए, ज़रूरी है कि समाज, प्रशासन और धर्म, तीनों मिलकर — पारदर्शिता, सही जानकारी और न्याय की दृष्टि से — इस विषय पर चर्चा करें। तभी मदरसों की पहचान शिक्षा‑संस्थान के रूप में होगी, न कि संदेह, भय या गोलीबारी का विषय।

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