हाइलाइट्स
- Akbar vs Maharana Pratap की ऐतिहासिक व्याख्या पर प्रोफ़ेसर राम पुनियानी ने उठाए सवाल
- हल्दी घाटी के युद्ध में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की बजाय राजनीतिक गठजोड़ प्रमुख
- अकबर की सेना में राजपूतों की बड़ी संख्या, राणा प्रताप की ओर से लड़े मुस्लिम सेनापति
- इतिहास को वर्तमान राजनीति के लिए तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने पर जताई चिंता
- छात्रों और युवाओं को ऐतिहासिक तथ्यों से जोड़ने की अपील
इतिहास के पन्नों में ‘Akbar vs Maharana Pratap’ की नई व्याख्या
देश के वरिष्ठ इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफ़ेसर राम पुनियानी ने हाल ही में Akbar vs Maharana Pratap से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों पर एक नई रोशनी डाली है। एक सार्वजनिक व्याख्यान के दौरान उन्होंने हल्दी घाटी के युद्ध को केवल धार्मिक संघर्ष के रूप में देखने को ‘राजनीतिक चश्मा’ करार दिया।
उनका दावा है कि उस युद्ध में Akbar vs Maharana Pratap के संदर्भ में जो सामान्य कथाएं प्रचारित की जाती हैं, वे इतिहास से अधिक राजनीति से प्रेरित हैं। उन्होंने कहा, “यह सच है कि युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुआ था, लेकिन दोनों पक्षों में हिंदू और मुस्लिम सेनाएं थीं।”
क्या था हल्दी घाटी का युद्ध?
हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 को राजस्थान की हल्दी घाटी में लड़ा गया था। यह युद्ध मुगल सम्राट अकबर और मेवाड़ के राणा प्रताप सिंह के बीच हुआ था। इसे भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण संघर्षों में से एक माना जाता है।
इस युद्ध को अक्सर Akbar vs Maharana Pratap के रूप में पेश किया जाता है—एक मुस्लिम बादशाह बनाम हिंदू राजा। लेकिन प्रोफ़ेसर पुनियानी के अनुसार यह धारणा अधूरी और भ्रामक है।
दोनों पक्षों की सेना में कौन-कौन थे?
अकबर की सेना में राजपूत
अकबर के सेनापति मान सिंह स्वयं एक राजपूत थे और मुग़ल सेना में बड़ी संख्या में अन्य राजपूत योद्धा भी शामिल थे। अकबर की नीति ही “धर्म के आधार पर नहीं, योग्यता के आधार पर” अधिकारियों की नियुक्ति करना था।
राणा प्रताप की सेना में मुस्लिम सेनानी
राणा प्रताप की सेना में हकीम खान सूर जैसे मुसलमान सेनापति थे, जिन्होंने वीरता से मुगलों का सामना किया। प्रोफ़ेसर पुनियानी कहते हैं, “यदि आप इसे Akbar vs Maharana Pratap के रूप में देखें, तो यह धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक टकराव था।”
धार्मिक एकता का उदाहरण या साम्राज्यवादी संघर्ष?
राजनीतिक नहीं, सांप्रदायिक बना दिया गया
प्रोफ़ेसर पुनियानी ने कहा कि इतिहास को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें की जाती रही हैं। जबकि सच यह है कि Akbar vs Maharana Pratap की लड़ाई सत्ता और प्रभुत्व की थी, न कि मजहबी मतभेदों की।
आज के दौर में इतिहास का दुरुपयोग
उन्होंने यह भी कहा कि आज के राजनेता वोट बैंक की राजनीति के लिए इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। राणा प्रताप को हिंदू गौरव का प्रतीक और अकबर को एक विदेशी आक्रांता के रूप में दिखाना इस प्रवृत्ति का हिस्सा है।
इतिहास को पढ़ें तथ्यों के साथ, न कि भावनाओं के आधार पर
प्रोफ़ेसर पुनियानी ने छात्रों और शिक्षकों से आग्रह किया कि वे इतिहास को बिना पूर्वग्रह के पढ़ें। उन्होंने कहा कि Akbar vs Maharana Pratap का संघर्ष हमें यह समझाने के लिए है कि भारत हमेशा विविधता में एकता का उदाहरण रहा है।
इतिहासकारों की राय क्या कहती है?
प्रोफ़ेसर इरफ़ान हबीब और रोमिला थापर जैसे ख्यात इतिहासकार भी इस मत से सहमत हैं कि हल्दी घाटी का युद्ध धार्मिक नहीं, बल्कि सत्ता संघर्ष था। उनके अनुसार, अकबर और महाराणा प्रताप दोनों ही अपने-अपने राज्यों की सुरक्षा और विस्तार के लिए युद्धरत थे।
‘Akbar vs Maharana Pratap’ आज के भारत में क्यों प्रासंगिक है?
ध्रुवीकरण की राजनीति पर करारा प्रहार
जब किसी ऐतिहासिक युद्ध को धार्मिक चश्मे से देखा जाता है, तो वह सामाजिक सौहार्द को प्रभावित करता है। ऐसे में प्रोफ़ेसर पुनियानी की टिप्पणी इस ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति पर सीधा प्रहार करती है।
युवाओं को सच्चा इतिहास बताने की ज़रूरत
आज की पीढ़ी को यह जानना जरूरी है कि Akbar vs Maharana Pratap सिर्फ वीरता की कहानी नहीं, बल्कि विविधता, रणनीति और भारत की बहुलता का प्रमाण भी है।
इतिहास को जोड़ने दें, तोड़ने नहीं
Akbar vs Maharana Pratap की लड़ाई को धर्म के आधार पर देखने से हम भारत की उस समावेशी परंपरा को भूल जाते हैं, जिसने हमें एकता में बांधे रखा है। प्रोफ़ेसर राम पुनियानी की यह टिप्पणी हमें याद दिलाती है कि इतिहास को न केवल याद रखने की ज़रूरत है, बल्कि उसे सत्य के साथ समझने की भी।