हाइलाइट्स
- AIMIM नेता इम्तियाज जलील ने मांस की दुकानें बंद करने के आदेश का खुला विरोध किया।
- जन्माष्टमी और पर्यूषण पर्व के अवसर पर नगर निगम ने मांस की बिक्री रोकने का आदेश जारी किया।
- इम्तियाज जलील ने अपने आवास पर बिरयानी पार्टी रखकर सरकार के फैसले पर तंज कसा।
- उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से पूछा कि आदेश वापस लेने का निर्देश क्यों नहीं दिया।
- इस विवाद ने छत्रपति संभाजीनगर समेत महाराष्ट्र की राजनीति को गर्मा दिया।
AIMIM नेता इम्तियाज जलील का विरोध
छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) में AIMIM नेता इम्तियाज जलील ने नगर निगम के उस आदेश का कड़ा विरोध किया, जिसमें 15 अगस्त और 20 अगस्त को मांस की दुकानें बंद रखने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश जन्माष्टमी और जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व को ध्यान में रखते हुए पारित किया गया था।
इम्तियाज जलील ने शुक्रवार को अपने निवास पर पत्रकारों को आमंत्रित किया और खास तौर पर ‘बिरयानी पार्टी’ का आयोजन कर सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों को अपनी पसंद के भोजन का अधिकार है। सरकार यह तय नहीं कर सकती कि लोग क्या खाएं और क्या न खाएं।
त्योहारों के दौरान आदेश पर विवाद
जन्माष्टमी और पर्यूषण पर्व का आदेश
शहर निगम ने आदेश जारी करते हुए कहा कि 15 अगस्त को जन्माष्टमी और 20 अगस्त को पर्यूषण पर्व के कारण सभी बूचड़खाने और मांस की दुकानें बंद रहेंगे। आदेश का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना बताया गया।
AIMIM नेता का तंज
AIMIM नेता इम्तियाज जलील ने इस आदेश को तानाशाही करार दिया। उन्होंने कहा—
“मैंने चिकन बिरयानी और शाकाहारी दोनों प्रकार के व्यंजन तैयार किए हैं। अगर नगर आयुक्त शाकाहारी भोजन मांगेंगे तो मैं उन्हें भी खिलाऊँगा। लेकिन सरकार हमें यह अधिकार नहीं छीन सकती कि हम क्या खाएँ।”
मुख्यमंत्री फडणवीस पर हमला
इम्तियाज जलील ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने सवाल उठाया कि जब राज्य सरकार चाहती तो इस आदेश को वापस लिया जा सकता था, फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ? उनका कहना था कि सरकार केवल एक वर्ग की भावनाओं का ध्यान रख रही है जबकि दूसरे वर्ग की भावनाओं को नजरअंदाज कर रही है।
राजनीतिक माहौल में गर्मी
कट्टर मुस्लिम नेता का रुख
AIMIM नेता इम्तियाज जलील का यह बयान और बिरयानी पार्टी सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक मजबूत संदेश था। उन्होंने इस मुद्दे को अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जोड़ते हुए कहा कि “यह सिर्फ खाने का मुद्दा नहीं, बल्कि हमारी स्वतंत्रता का सवाल है।”
विपक्ष और सत्ता पक्ष की प्रतिक्रिया
- बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) ने इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़ते हुए आदेश का समर्थन किया।
- वहीं विपक्षी दलों और AIMIM ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया।
- सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा तेजी से वायरल हो गया और लोग पक्ष-विपक्ष में बहस करने लगे।
संवैधानिक अधिकार बनाम धार्मिक भावनाएँ
क्या कहता है कानून?
भारत का संविधान नागरिकों को भोजन की स्वतंत्रता देता है। कोई भी नागरिक अपनी धार्मिक या व्यक्तिगत पसंद के अनुसार भोजन कर सकता है। हालांकि, स्थानीय प्रशासन सार्वजनिक शांति और धार्मिक सौहार्द बनाए रखने के लिए कभी-कभी ऐसे आदेश जारी करता है।
AIMIM नेता का तर्क
AIMIM नेता इम्तियाज जलील का कहना था कि धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना जरूरी है, लेकिन इसे जबरदस्ती थोपना लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि “सरकार सभी समुदायों की भावनाओं का बराबर ध्यान रखे, न कि केवल एक वर्ग को प्राथमिकता दे।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
इम्तियाज जलील की बिरयानी पार्टी की तस्वीरें और बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए। कई लोगों ने उनकी इस पहल को साहसिक बताया, जबकि कुछ ने इसे अनावश्यक विवाद खड़ा करने वाला कदम कहा। ट्विटर और फेसबुक पर #AIMIM और #ImtiazJaleel हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
छत्रपति संभाजीनगर में मांस की दुकानें बंद करने के आदेश पर खड़ा हुआ यह विवाद अब केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं रह गया है। यह मामला राजनीति, धार्मिक भावनाओं और संवैधानिक अधिकारों के टकराव का उदाहरण बन गया है।
AIMIM नेता इम्तियाज जलील ने बिरयानी पार्टी कर यह साफ संदेश दिया है कि सरकार लोगों को यह नहीं बता सकती कि वे क्या खाएँ और क्या न खाएँ। अब देखना होगा कि आने वाले समय में यह मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति को किस दिशा में ले जाता है।