हाइलाइट्स
- “गाली देना” अब भारत में एक सामाजिक आदत बनता जा रहा है, सर्वे में खुलासा
- “गाली बंद घर अभियान” के तहत 11 वर्षों में 70,000 लोगों पर किया गया सर्वे
- दिल्ली, पंजाब, यूपी और बिहार जैसे राज्यों में सबसे अधिक होता है गाली का उपयोग
- महिलाओं और बच्चों तक में बढ़ रही है गाली देने की प्रवृत्ति
- प्रोफेसर सुनील जागलान का उद्देश्य: गाली देना नहीं, सभ्य समाज बनाना
गाली देना: भारत में बनती जा रही एक सामाजिक आदत या बिगड़ता हुआ संस्कार?
भारत जैसे विविध भाषाओं, संस्कृतियों और रीति-रिवाजों वाले देश में “गाली देना” एक अनदेखी मगर गहराई से जुड़ी सामाजिक आदत बन चुकी है। जहां एक ओर हमारी संस्कृति शालीनता और मर्यादा का प्रतीक मानी जाती है, वहीं दूसरी ओर संवाद में गाली देना अब आम होता जा रहा है। इसे लेकर “गाली बंद घर अभियान” नामक एक अभिनव प्रयास किया गया, जिसने भारत की इस मौन बीमारी को उजागर कर दिया।
सर्वेक्षण का विस्तार: 70,000 लोगों की भागीदारी
“गाली बंद घर अभियान” की शुरुआत साल 2014 में हरियाणा के सामाजिक कार्यकर्ता और ‘सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन’ के संस्थापक डॉ. सुनील जागलान द्वारा की गई थी। यह अभियान महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के सहयोग से वर्ष 2025 तक चला। इस 11 वर्षीय परियोजना में भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों से करीब 70,000 लोगों से बातचीत की गई, जिसमें छात्र, शिक्षक, डॉक्टर, पुलिसकर्मी, ऑटो चालक, वकील और महिलाएं तक शामिल थीं।
टॉप 10 राज्य जहां गाली देना सबसे आम
स्थान | राज्य | प्रतिशत |
---|---|---|
1 | दिल्ली | 80% |
2 | पंजाब | 78% |
3 | उत्तर प्रदेश | 74% |
4 | बिहार | 74% |
5 | राजस्थान | 68% |
6 | हरियाणा | 62% |
7 | महाराष्ट्र | 58% |
8 | गुजरात | 55% |
9 | मध्य प्रदेश | 48% |
10 | उत्तराखंड | 45% |
सबसे कम: कश्मीर – केवल 15%
क्यों देते हैं लोग गालियां?
दिल्ली – गाली देना बन गया रूटीन
ट्रैफिक, भीड़भाड़, प्रतिस्पर्धा और तेज़ रफ्तार जिंदगी ने दिल्लीवासियों को चिड़चिड़ा बना दिया है। यहां गाली देना रोज़मर्रा के तनाव को निकालने का माध्यम बन चुका है।
पंजाब और हरियाणा – दोस्ती का हिस्सा
यहां गाली देना कभी-कभी मजाक और भाईचारे का प्रतीक भी होता है। यह व्यवहार सामाजिक संबंधों में स्वीकृत है।
यूपी और बिहार – राजनीतिक और पारिवारिक टकराव
यहां गाली-गलौज राजनीतिक बहसों, घरेलू विवादों और सड़क विवादों का अहम हिस्सा है।
महाराष्ट्र और गुजरात – स्लैंग संस्कृति
शहरीकरण और यंग जनरेशन के स्लैंग कल्चर ने गाली देना एक ‘cool’ फैशन बना दिया है।
कश्मीर – शांति और अनुशासन की संस्कृति
यहां धार्मिक मूल्यों और पारिवारिक मर्यादा के कारण गालियों का उपयोग बेहद कम देखने को मिलता है।
महिलाएं भी पीछे नहीं
इस सर्वे की सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि 30% महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे भी कभी-कभार गाली देती हैं। यह संकेत है कि गाली देना अब केवल मर्दाना व्यवहार नहीं रहा, बल्कि यह एक सामाजिक सामान्यता बनता जा रहा है।
गाली बंद घर अभियान: क्या है मकसद?
प्रमुख उद्देश्य:
- गाली देना जैसी भाषा की आदत पर नियंत्रण
- घर में बच्चों को बेहतर भाषा संस्कार देना
- संवाद में सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग बढ़ाना
- महिलाओं और युवाओं को जागरूक बनाना
अभियान की उपलब्धियाँ:
- देशभर के 60,000 से अधिक स्थानों पर “गाली बंद घर” चार्ट लगाए गए
- स्कूलों, पंचायतों, थानों और कॉलोनियों में जागरूकता कार्यक्रम
- परिवारों में एकजुटता और संवाद के स्तर को सुधारा
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: गाली देना एक मानसिक आदत
डॉ. सुनील जागलान बताते हैं कि गाली देना कोई संस्कार नहीं, बल्कि एक सीखी हुई मानसिक आदत है। बचपन में जब बच्चे अपने घर या समाज में गाली सुनते हैं, तो यह उनके मस्तिष्क में बस जाती है। यही आदत बाद में उनका व्यवहार बन जाती है।
वैश्विक स्तर पर चर्चा में भारत का अभियान
“गाली बंद घर अभियान” अब केवल एक देशीय मुहिम नहीं रही, बल्कि यह एक वैश्विक चर्चा का विषय बन चुकी है। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों से भी इस अभियान को समर्थन मिल रहा है। कई विदेशी विश्वविद्यालयों ने इस पर केस स्टडी की है कि कैसे एक साधारण भाषा सुधार अभियान समाज में परिवर्तन ला सकता है।
क्या कहता है समाज?
शिक्षिका अंजली देवी (राजस्थान):
“मैंने अपने स्कूल में बच्चों को ‘गाली-मुक्त सप्ताह’ मनाने की पहल की, और परिणाम आश्चर्यजनक रहे।”
छात्र अमित शर्मा (दिल्ली):
“हम सोचते हैं कि गाली देना ताकत दिखाता है, पर असल में यह कमजोरी है।”
अब समय है संवाद की भाषा बदलने का
गाली देना आज भारत के कई हिस्सों में केवल गुस्से या झगड़े की प्रतिक्रिया नहीं रही, बल्कि एक सांस्कृतिक आदत बनती जा रही है। लेकिन “गाली बंद घर अभियान” जैसे प्रयास यह दिखाते हैं कि इस आदत को बदला जा सकता है। जरूरी है कि हम अपने बच्चों को बचपन से ही शालीन भाषा का प्रयोग सिखाएं और समाज में संवाद की गरिमा बनाए रखें।