हाइलाइट्स
- Santara लेने वाली 3 साल की बच्ची वियाना जैन बनी दुनिया की सबसे कम उम्र की बालिका।
- ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित वियाना को धार्मिक रूप से संथारा दिलाया गया था।
- संथारा की धार्मिक प्रक्रिया के केवल कुछ मिनट बाद वियाना का निधन हो गया।
- जैन समाज ने इस निर्णय को सम्मानित किया और इसे ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया।
- इस घटना ने संथारा प्रथा और इसके नैतिक पहलुओं को लेकर देशभर में बहस शुरू कर दी है।
इंदौर में 3 साल की बच्ची द्वारा संथारा लेने का मामला: धार्मिक और सामाजिक विवाद
इंदौर में एक दिलचस्प और विवादास्पद घटना सामने आई है, जिसमें एक 3 साल की बच्ची ने संथारा लिया, जिसके बाद उसके निधन की खबर आई। यह मामला न केवल इंदौर बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि यह प्रथा जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा पालन की जाती है और इसके धार्मिक और कानूनी पहलू पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
संथारा क्या है?
संथारा, जिसे ‘सल्लेखना’ भी कहा जाता है, जैन धर्म का एक अत्यधिक धार्मिक व्रत है, जिसमें व्यक्ति अपनी आत्मा के शुद्धिकरण के लिए जीवन के अंतिम समय में भोजन और पानी का त्याग करता है। इसे त्याग का एक सर्वोच्च रूप माना जाता है और यह मुख्य रूप से जैन मुनियों और अनुयायियों द्वारा अपनाया जाता है। हालांकि, इस प्रथा के बारे में विवाद हमेशा रहा है, खासकर जब इसे बच्चों और युवाओं पर लागू किया जाता है।
वियाना का संघर्ष और संथारा की शुरुआत
वियाना जैन, जो इंदौर के एक आईटी प्रोफेशनल दंपति की बेटी थीं, पिछले एक साल से ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही थीं। परिवार ने मुंबई में कई इलाज कराए, लेकिन कोई खास फर्क नहीं पड़ा। बाद में, आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रह-धारी राजेश मुनि महाराज के सान्निध्य में यह निर्णय लिया गया कि वियाना को संथारा की प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाए। यह निर्णय परिवार ने मुनिश्री के धार्मिक मार्गदर्शन में लिया, जिन्होंने संथारा को अंतिम विकल्प के रूप में सुझाया था।
वियाना का निधन
वियाना को संथारा की प्रक्रिया में शामिल किया गया और केवल आधे घंटे के भीतर, इस धार्मिक क्रिया के 10 मिनट बाद ही, बच्ची ने अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर दी। उसके माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन के लिए यह एक अत्यधिक कठिन निर्णय था, लेकिन उन्होंने इसे अपने धार्मिक विश्वासों के अनुसार लिया।
संथारा के धार्मिक और सामाजिक पहलू
वियाना का संथारा लेना न केवल एक धार्मिक घटना थी, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक गहन विचार और प्रेरणा का विषय बन गया है। जैन समाज ने इस निर्णय को सम्मानित किया और इसे ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया है। हालांकि, यह मामला न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया में धार्मिक प्रथाओं और मानवाधिकारों के बारे में गंभीर सवाल उठाता है।
संथारा के बारे में विवाद
संथारा पर हमेशा से ही बहस रही है। कुछ लोग इसे आत्महत्या का एक रूप मानते हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक शुद्धता का प्रतीक मानते हैं। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रथा पर चिंता व्यक्त की थी, और इसे कानून के तहत आत्महत्या के प्रयास के रूप में वर्गीकृत किया है। हालांकि, जैन धर्म में इसे एक धार्मिक प्रथा माना जाता है, जिससे कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से मुक्त होकर अपने शरीर को छोड़ता है।
वियाना के माता-पिता की भूमिका
वियाना के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन, दोनों ही आईटी प्रोफेशनल हैं। उनका कहना है कि उन्होंने यह निर्णय अपने परिवार के विश्वास और धार्मिक आस्थाओं के आधार पर लिया। वे बताते हैं कि वियाना एक बहुत ही चंचल और खुशमिजाज बच्ची थी, और उसने हमेशा धार्मिक संस्कारों का पालन किया था। गोशाला जाना, पक्षियों को दाना डालना, और गुरुदेव के दर्शन करना उसके जीवन का हिस्सा था।
वियाना का रिकॉर्ड और इसके प्रभाव
इस घटना के बाद, वियाना का नाम ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया है, जो उसे दुनिया की सबसे कम उम्र में संथारा धारण करने वाली बच्ची बनाता है। हालांकि, इस घटना ने जैन समुदाय के भीतर और बाहर, खासकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और धार्मिक पंथों के बीच, विवाद खड़ा कर दिया है।
वियाना की यह घटना जैन धर्म और धार्मिक प्रथाओं के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई है, लेकिन साथ ही यह समाज के लिए एक गहन सोचने का विषय भी बन गई है। क्या हमें किसी बच्चे को इस प्रकार के धार्मिक व्रत में सम्मिलित करने का अधिकार होना चाहिए? क्या यह सही है कि एक धार्मिक प्रक्रिया को एक बच्चे पर लागू किया जाए, खासकर जब उसकी जीवनशक्ति और संभावना पर सवाल उठते हैं? यह सवाल समाज, धर्म और कानून के बीच एक पुल का कार्य करते हैं।