हाइलाइट्स
- Tragacanth Gum का असली स्रोत और उत्पादन प्रक्रिया पर एक गहराई से नज़र
- भारत समेत एशिया और मिडिल ईस्ट में होती है Tragacanth Gum की खेती
- शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए गर्मियों में बड़े पैमाने पर होता है उपयोग
- गोंद और Tragacanth Gum में है स्पष्ट अंतर, जानें पहचानने के आसान तरीके
- पेड़ की छाल से निकलती है नेचुरल गोंद, कई दिन लगते हैं हार्वेस्टिंग में
भारत में सदियों से पारंपरिक औषधियों और घरेलू उपचारों में उपयोग होने वाला एक नाम – गोंद कतीरा, जिसे इंग्लिश में Tragacanth Gum कहा जाता है, आज फिर से चर्चा में है। अधिकतर लोग इसके फायदों से परिचित हैं, पर बहुत कम लोग इसके मूल, उत्पादन प्रक्रिया और इसके वास्तविक स्वरूप से परिचित हैं।
यह लेख उसी रहस्य से पर्दा उठाएगा – कि Tragacanth Gum बनता कैसे है, कहां पाया जाता है, कैसे इसका प्रसंस्करण होता है और यह बाजार में कैसे पहुंचता है।
क्या है Tragacanth Gum?
Tragacanth Gum एक प्रकार की प्राकृतिक गोंद है जो विशेष प्रकार के पौधे – Astragalus species – से निकलती है। यह पौधे ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान और भारत के कुछ शुष्क इलाकों में पाए जाते हैं।
यह गोंद एक चिपचिपा, प्राकृतिक रस होता है जो तब निकलता है जब पेड़ की छाल में हल्का सा कट लगाया जाता है। धीरे-धीरे यह तरल हवा के संपर्क में आकर सूखने लगता है और फिर इसका आकार बदलता है – पहले तरल, फिर सॉलिड और अंत में पानी में घुलकर जेली जैसी स्थिति में आ जाता है।
कैसे निकलता है Tragacanth Gum?
पेड़ की छाल से निकासी की प्रक्रिया
Tragacanth Gum निकालने की प्रक्रिया बहुत हद तक रबर की कटाई से मिलती-जुलती होती है। पेड़ की छाल में धारदार औज़ार से छोटे-छोटे कट लगाए जाते हैं। इन कट्स के जरिए जो गाढ़ा रस निकलता है, वही Tragacanth Gum है।
इसे कुछ दिनों तक पेड़ से लगे रहने दिया जाता है ताकि यह पूरी तरह से सूख जाए। इसके बाद इसे एकत्र किया जाता है और प्रोसेसिंग यूनिट में भेजा जाता है, जहां इसकी सफाई और ग्रेडिंग होती है।
प्राकृतिक तरीके से सूखने में लगता है समय
सूखते समय इसमें धूल, मिट्टी और कीड़े-मकोड़े भी चिपक सकते हैं। इसलिए इसके बाद इसे गर्म पानी से धोया जाता है, फिर सुखाया जाता है और फिर पैक करके बाजार में भेजा जाता है।
Tragacanth Gum का भारत में उत्पादन और खपत
भारत में Tragacanth Gum का उत्पादन मुख्यतः राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के शुष्क इलाकों में होता है। यहां की गर्म जलवायु और कम वर्षा वाले क्षेत्र इस पौधे के लिए अनुकूल माने जाते हैं।
हालांकि, भारत में इसका उत्पादन सीमित है लेकिन खपत बहुत अधिक है। गर्मियों में शरीर को ठंडा रखने के लिए कई आयुर्वेदिक ड्रिंक्स, मिल्कशेक्स और स्मूदीज में इसका उपयोग होता है।
गोंद बनाम Tragacanth Gum: क्या है अंतर?
दोनों एक नहीं हैं
अक्सर लोग गोंद और Tragacanth Gum को एक ही मान बैठते हैं, जबकि दोनों पूरी तरह से अलग चीजें हैं।
- गोंद (Gond) आमतौर पर बबूल या अन्य फलों के पेड़ों से निकलती है।
- वहीं Tragacanth Gum विशेष रूप से Astragalus पौधे से प्राप्त होती है।
पहचानने का आसान तरीका
अगर गोंद को पानी में घोलें तो वह पूरी तरह घुल जाती है, जबकि Tragacanth Gum पानी में डालने पर फूलकर एक मोटी, जेली जैसी परत बना लेती है। यही कारण है कि इसका उपयोग गर्मियों में अधिक होता है, जबकि सामान्य गोंद सर्दियों में शरीर को गर्म रखने के लिए प्रयोग में लाई जाती है।
Tragacanth Gum के रूप और उपयोग
Tragacanth Gum को तीन मुख्य रूपों में पाया जाता है:
- Liquid Form: पेड़ से ताजा निकासी के समय
- Solid Form: सूखने के बाद
- Gel Form: पानी में मिलाकर प्रयोग करने पर
उपयोग के तरीके
- समर ड्रिंक्स: शिकंजी, फालूदा, रूबी शरबत
- डेज़र्ट्स: कुल्फी, मिल्कशेक
- आयुर्वेदिक औषधियों: शीतल प्रभाव वाले टॉनिक्स में
क्या Tragacanth Gum खाना सुरक्षित है?
हां, लेकिन केवल सही तरीके से प्रोसेस और इस्तेमाल करने पर। इसे सीधे खाना खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह शरीर के अंदर जाकर जेली में बदल सकता है और पाचन क्रिया को प्रभावित कर सकता है। इसलिए हमेशा इसे पानी में भिगोकर ही उपयोग करना चाहिए।
वैश्विक दृष्टिकोण और निर्यात
Tragacanth Gum सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि मिडिल ईस्ट, यूरोप और अमेरिका में भी आयुर्वेदिक और नेचुरल प्रोडक्ट्स में बहुत पसंद किया जाता है। भारत से इसकी सीमित लेकिन मूल्यवान मात्रा विदेशों में निर्यात की जाती है।
इसके इस्तेमाल में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है, खासकर हेल्थ कंसस युवा वर्ग में।
Tragacanth Gum एक प्राकृतिक, बहुपयोगी और आयुर्वेदिक दृष्टि से बेहद लाभकारी तत्व है। इसकी पहचान, निकासी, प्रोसेसिंग और उपयोग की जानकारी होना हर उपभोक्ता के लिए जरूरी है।
आज जब हम नेचुरल और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स की ओर लौट रहे हैं, ऐसे में Tragacanth Gum न केवल एक ट्रेंड बनकर उभर रहा है बल्कि पारंपरिक ज्ञान की ताकत को भी दोबारा स्थापित कर रहा है