हाइलाइट्स
- माइक्रोप्लास्टिक अब केवल समुद्र या खाने तक सीमित नहीं, बल्कि हमारी सांसों में भी घुल चुका है।
- फ्रांस की एक यूनिवर्सिटी की स्टडी ने इंडोर एयर में खतरनाक स्तर के माइक्रोप्लास्टिक कणों की मौजूदगी को उजागर किया।
- हर दिन एक वयस्क इंसान लगभग 71,000 माइक्रोप्लास्टिक कणों को सांस के जरिए अपने शरीर में ले रहा है।
- माइक्रोप्लास्टिक के 94% कण इतने छोटे हैं कि वे सीधा फेफड़ों तक पहुंचकर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- रिसर्च के मुताबिक यह स्तर पहले के अनुमान से 100 गुना ज्यादा है, जिससे कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
माइक्रोप्लास्टिक: अदृश्य ज़हर जो हम रोज़ाना शरीर में भर रहे हैं
हम अपने चारों ओर स्वच्छ वातावरण और हवा का अनुभव करते हैं, लेकिन यह केवल एक भ्रम है। एक नई रिसर्च ने साबित कर दिया है कि माइक्रोप्लास्टिक अब हमारी सांसों का हिस्सा बन चुका है। यह प्लास्टिक के बेहद बारीक कण होते हैं जो हवा, पानी और भोजन के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
PLOS One में प्रकाशित एक नई स्टडी ने यह खुलासा किया है कि हम केवल प्लास्टिक का उपयोग ही नहीं कर रहे, बल्कि उसे हर सांस के साथ अंदर खींच भी रहे हैं।
क्या है माइक्रोप्लास्टिक?
शरीर में घुसने वाले सूक्ष्म हत्यारे
माइक्रोप्लास्टिक वे छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर से भी छोटा होता है। ये कण इतने बारीक होते हैं कि आंखों से देखना भी मुश्किल हो जाता है। इन्हें जब हम सांस के साथ अंदर लेते हैं, तो ये सीधे हमारे फेफड़ों, रक्त वाहिकाओं और आंतों तक पहुंचकर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कैसे हुई रिसर्च?
फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने उठाया परदा
फ्रांस की एक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने ही अपार्टमेंट और कार से 16 सैंपल लिए। इन सैंपल्स को रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी नामक तकनीक से विश्लेषित किया गया, जो यह जानने में सक्षम है कि हवा में किस प्रकार के और कितनी मात्रा में प्लास्टिक कण मौजूद हैं।
चौंकाने वाले आंकड़े
एक दिन में 71,000 माइक्रोप्लास्टिक कण
इस अध्ययन में पता चला कि एक वयस्क इंसान एक दिन में करीब 71,000 माइक्रोप्लास्टिक कणों को सांस के साथ अंदर लेता है। इनमें से 68,000 कण केवल 10 माइक्रोमीटर या उससे छोटे होते हैं, जो सीधे फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं।
कार की हवा में 2,238 माइक्रोप्लास्टिक प्रति क्यूबिक मीटर और अपार्टमेंट की हवा में 528 माइक्रोप्लास्टिक प्रति क्यूबिक मीटर कण मिले। यह संख्या पहले के अनुमानों से 100 गुना ज्यादा है।
माइक्रोप्लास्टिक से कैसे होता है नुकसान?
फेफड़ों की क्षति से लेकर कैंसर तक
इन छोटे-छोटे माइक्रोप्लास्टिक कणों के शरीर में जमा हो जाने से सेल्स और टिश्यूज की कार्यप्रणाली बाधित हो जाती है। यह स्थिति आगे चलकर कई गंभीर बीमारियों का रूप ले सकती है, जिनमें शामिल हैं:
- फेफड़ों का डैमेज
- स्ट्रोक का खतरा
- प्रजनन क्षमता में गिरावट
- कैंसर
- हॉर्मोन असंतुलन
कहां-कहां से आती है यह प्लास्टिक?
हमारी आदतें ही बन रहीं कारण
हम जो पानी प्लास्टिक की बोतल से पीते हैं, या खाना प्लास्टिक के कंटेनर में स्टोर करते हैं, वहां से माइक्रोप्लास्टिक कण हमारे भोजन या पानी में मिल जाते हैं। इसके अलावा, घर में मौजूद कारपेट, सोफे, पर्दे जैसे आइटम भी इन कणों को हवा में फैलाने का काम करते हैं।
अधिकांश लोग सोचते हैं कि बाहर की हवा ज्यादा प्रदूषित होती है, लेकिन यह रिसर्च बताती है कि घर की हवा कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकती है।
क्या कर सकते हैं हम?
जागरूकता और बदलाव से मिलेगा समाधान
माइक्रोप्लास्टिक से बचाव के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं:
- स्टील या कांच की बोतलों का उपयोग करें
- भोजन गर्म करने के लिए प्लास्टिक कंटेनर से परहेज़ करें
- वातावरण को साफ रखने की आदत डालें
- कारपेट व पर्दों की नियमित सफाई करें
- वेंटिलेशन सुधारें ताकि ताजी हवा अंदर आ सके
विशेषज्ञों की राय
डॉ. मार्टिन डुपॉन्ट, फ्रांसीसी पर्यावरण विशेषज्ञ का कहना है,
“माइक्रोप्लास्टिक का शरीर में जाना एक धीमा जहर है, जो वर्षों में बीमारियों को जन्म देता है। अगर अभी से कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियों पर इसका भयावह असर पड़ेगा।”
हमारा वातावरण अब केवल धूल और धुएं से ही प्रदूषित नहीं है, बल्कि माइक्रोप्लास्टिक जैसे अदृश्य शत्रु भी हमारे शरीर में घुसपैठ कर चुके हैं। अब वक्त आ गया है कि हम जागें और अपने आसपास की हवा, भोजन और आदतों पर ध्यान दें, वरना वो दिन दूर नहीं जब सांस लेना भी एक बड़ा खतरा बन जाएगा।