धीरे-धीरे अंदर ही अंदर खा जाता है ये कैंसर, हर दिन हजारों पुरुष बन रहे हैं शिकार!

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हाइलाइट्स

  • फेफड़ों का कैंसर पुरुषों में तेजी से फैल रहा है, धूम्रपान इसकी सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है।
  • WHO की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल करीब 18 लाख लोगों की होती है इस कैंसर से मौत।
  • लक्षण शुरुआत में सामान्य होते हैं, जिससे बीमारी की पहचान देर से होती है।
  • प्रदूषण, तंबाकू और रासायनिक धुएं भी बन रहे हैं खतरे के कारक।
  • सावधानी और नियमित जांच से फेफड़ों के कैंसर से बचाव संभव है।

 नेशनल डेस्क रिपोर्ट: पुरुषों में क्यों बढ़ रहा है फेफड़ों का कैंसर का खतरा?

आज के दौर में फेफड़ों का कैंसर एक ऐसी जानलेवा बीमारी बन चुकी है, जो न सिर्फ तेजी से फैल रही है बल्कि भारत जैसे विकासशील देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती भी बन गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) की रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया भर में लगभग 18 लाख लोगों की जान इस बीमारी से चली जाती है, जिनमें से बड़ी संख्या पुरुषों की होती है।

पुरुषों में क्यों ज्यादा होता है फेफड़ों का कैंसर?

धूम्रपान – सबसे बड़ा जिम्मेदार

विशेषज्ञों का मानना है कि फेफड़ों का कैंसर होने की सबसे बड़ी वजह धूम्रपान है। पुरुषों में सिगरेट, बीड़ी और तंबाकू का सेवन महिलाओं की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है। निकोटिन, टार और अन्य विषैले रसायन फेफड़ों की कोशिकाओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कैंसर विकसित होता है।

 वायु प्रदूषण और रसायनिक धुएं

भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण ने फेफड़ों का कैंसर को और भी खतरनाक बना दिया है। खासतौर पर महानगरों में रहने वाले लोग प्रदूषित हवा, धूलकण, डीजल के धुएं और जहरीली गैसों के संपर्क में आते हैं, जो फेफड़ों की कोशिकाओं को नष्ट करते हैं।

औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वालों को ज्यादा खतरा

जिन लोगों का काम रासायनिक फैक्ट्रियों, खदानों, एस्बेस्टस या सिलिका से जुड़े उद्योगों में होता है, उनमें फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है। लगातार जहरीले तत्वों के संपर्क में आना कैंसरकारी साबित होता है।

कितनी खतरनाक है यह बीमारी?

हर दिन करीब 4,900 मौतें

WHO के आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 18 लाख लोग फेफड़ों के कैंसर से मरते हैं, यानी हर दिन करीब 4,900 मौतें। भारत में यह आंकड़ा और भी भयावह है क्योंकि यहां अधिकतर मरीजों को तब पता चलता है जब बीमारी अंतिम स्टेज में पहुंच चुकी होती है।

इलाज महंगा और सीमित

फेफड़ों का कैंसर का इलाज न सिर्फ लंबा और जटिल है बल्कि बेहद महंगा भी है। कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और सर्जरी जैसी प्रक्रियाओं का खर्च आम आदमी की पहुंच से बाहर होता है। ऊपर से सरकारी अस्पतालों में भी इसके लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं।

शुरुआती लक्षण जिन्हें न करें नजरअंदाज

लंग कैंसर की शुरुआत आमतौर पर बहुत हल्के लक्षणों से होती है, जिन्हें आम लोग सामान्य खांसी-बुखार समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन संकेतों को गंभीरता से लेना बेहद जरूरी है:

  • लगातार खांसी रहना
  • खांसी में खून आना
  • सांस लेने में तकलीफ
  • सीने में दर्द
  • अचानक वजन घट जाना
  • बार-बार फेफड़ों में इंफेक्शन होना

क्या हैं बचाव के उपाय?

धूम्रपान छोड़ना है पहली शर्त

अगर आप फेफड़ों के कैंसर से बचना चाहते हैं तो सबसे पहले तंबाकू और धूम्रपान को पूरी तरह से अलविदा कहना होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान छोड़ता है तो 5 साल में कैंसर का खतरा 50-70% तक कम हो जाता है।

 नियमित चेकअप जरूरी

45 साल की उम्र के बाद सभी लोगों को हर साल फेफड़ों की जांच करानी चाहिए। खासतौर पर यदि कोई धूम्रपान करता है या पूर्व में किया हो, तो CT स्कैन और एक्स-रे जैसे टेस्ट करवाना जरूरी है।

मास्क पहनना और खानपान सुधारना

प्रदूषित वातावरण में बाहर जाते समय N95 मास्क का इस्तेमाल करें। साथ ही अपने आहार में विटामिन C, A और फाइबर युक्त सब्जियां और फल शामिल करें। ये इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं और कोशिकाओं को कैंसर से लड़ने में मदद करते हैं।

विशेषज्ञों की राय

एम्स दिल्ली के वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. मनोज वर्मा कहते हैं –

“भारत में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर का सबसे बड़ा कारण धूम्रपान है। अगर हम स्मोकिंग पर नियंत्रण पा लें तो कैंसर के मामलों में भारी गिरावट आ सकती है।”

लखनऊ के कैंसर इंस्टीट्यूट की डॉ. इरा मिश्रा के अनुसार –

“प्रारंभिक अवस्था में पहचान हो जाए तो फेफड़ों के कैंसर का इलाज संभव है। लेकिन भारत में लोग देर से डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, जिससे मृत्यु दर ज्यादा है।”

सरकार और समाज की जिम्मेदारी

अब वक्त आ गया है जब सरकार को फेफड़ों के कैंसर के प्रति बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने होंगे। स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर तंबाकू और धूम्रपान के विरुद्ध सख्त कानून लागू होने चाहिए। साथ ही जनता को भी चाहिए कि वे अपनी सेहत को प्राथमिकता दें।

सावधानी ही बचाव है

जब कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का सीधा संबंध हमारी जीवनशैली से हो, तो बचाव की जिम्मेदारी भी हमारी ही बनती है। तंबाकू से दूरी, नियमित जांच और स्वस्थ जीवनशैली से फेफड़ों के कैंसर को हराया जा सकता है। एक छोटी सी सावधानी आपकी ज़िंदगी बचा सकती है।

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