हाइलाइट्स
- iron overload disease में शरीर अत्यधिक मात्रा में आयरन सोखने लगता है, जिससे लिवर पर गहरा असर पड़ता है।
- यह बीमारी जन्मजात (genetic) भी हो सकती है और जीवनशैली से जुड़ी आदतों के कारण भी।
- समय रहते पहचान और इलाज नहीं हुआ तो यह बीमारी हृदय, अग्न्याशय और जोड़ों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
- भारत में इस बीमारी को लेकर जागरूकता बेहद कम है, जिसके कारण समय पर निदान नहीं हो पाता।
- नियमित ब्लड टेस्ट और लिवर फंक्शन टेस्ट के जरिए iron overload disease का समय रहते पता लगाया जा सकता है।
क्या है Iron Overload Disease?
iron overload disease, जिसे चिकित्सा भाषा में “हेमोक्रोमैटोसिस” (Hemochromatosis) कहा जाता है, एक गंभीर लिवर संबंधित बीमारी है जिसमें शरीर भोजन से अत्यधिक मात्रा में आयरन अवशोषित करने लगता है। सामान्यतः शरीर को सीमित मात्रा में आयरन की जरूरत होती है, लेकिन इस बीमारी में यह संतुलन बिगड़ जाता है और आयरन शरीर के विभिन्न अंगों में जमा होने लगता है, खासकर लिवर में।
हेमोक्रोमैटोसिस के प्रकार
प्राथमिक हेमोक्रोमैटोसिस
यह आनुवंशिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति को माता-पिता से यह विकार प्राप्त होता है। यह सबसे आम प्रकार की iron overload disease है, जो अधिकतर यूरोपीय वंशजों में देखने को मिलती है, लेकिन अब भारत में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।
द्वितीयक हेमोक्रोमैटोसिस
यह जीवनशैली, अधिक आयरन सप्लिमेंट्स लेने, बार-बार रक्त चढ़ाने (blood transfusion), या अन्य बीमारियों के कारण होता है।
शरीर में आयरन क्यों होता है ज़रूरी?
आयरन शरीर में हीमोग्लोबिन बनाने में मदद करता है, जो ऑक्सीजन को पूरे शरीर में पहुंचाता है। लेकिन जब यह संतुलन बिगड़ता है और आयरन की अधिकता हो जाती है, तब यह लाभ के बजाय नुकसानदायक बन जाता है।
iron overload disease के मरीजों में यह अतिरिक्त आयरन धीरे-धीरे लिवर, हृदय, अग्न्याशय (pancreas), त्वचा और जोड़ों में जमा होने लगता है, जिससे अंगों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
लक्षण जो बताते हैं कि आपको Iron Overload Disease हो सकती है
प्रारंभिक लक्षण
- अत्यधिक थकान महसूस होना
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द
- जोड़ों में अकड़न और दर्द
- त्वचा का रंग थोड़ा गहरा पड़ना (bronzing)
- कामेच्छा में कमी
गंभीर लक्षण
- लिवर का बढ़ जाना या उसमें सूजन
- डायबिटीज का विकास
- अनियमित हृदयगति
- बांझपन या हार्मोन असंतुलन
- अचानक वजन घटना
यदि किसी व्यक्ति को उपरोक्त लक्षण नियमित रूप से महसूस होते हैं, तो उसे तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर iron overload disease की जांच करानी चाहिए।
जांच और निदान की प्रक्रिया
iron overload disease का पता लगाने के लिए निम्नलिखित जांचें की जाती हैं:
- Serum Ferritin Test: यह शरीर में आयरन की कुल मात्रा दर्शाता है।
- Transferrin Saturation Test: यह जांचता है कि शरीर में कितना आयरन ट्रांसपोर्ट हो रहा है।
- Liver Biopsy या MRI: यह लिवर में आयरन की मात्रा और क्षति का अनुमान लगाता है।
- Genetic Testing: अगर परिवार में यह बीमारी है तो आनुवंशिक परीक्षण आवश्यक हो जाता है।
इलाज और प्रबंधन
1. फ्लीबोटोमी (Phlebotomy)
यह प्रक्रिया रक्तदान जैसी होती है, जिसमें नियमित अंतराल पर शरीर से रक्त निकाला जाता है ताकि आयरन की मात्रा घटाई जा सके।
2. आयरन चेलेटिंग एजेंट्स
यदि रक्त नहीं निकाला जा सकता तो दवाएं दी जाती हैं जो शरीर से अतिरिक्त आयरन को बाहर निकालने में मदद करती हैं।
3. आहार में बदलाव
- आयरन युक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा कम करना
- विटामिन C का सेवन सीमित करना क्योंकि यह आयरन के अवशोषण को बढ़ाता है
- एल्कोहल और आयरन सप्लीमेंट से दूर रहना
4. नियमित जांच
iron overload disease से ग्रसित लोगों को हर 3-6 महीने में आयरन लेवल की जांच कराते रहना चाहिए।
भारत में क्यों अनदेखी हो जाती है यह बीमारी?
भारत में iron overload disease को लेकर बहुत कम जागरूकता है। अधिकतर लोग इसे सामान्य थकान या गैस्ट्रिक समस्या समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं। कई बार यह डायबिटीज, लिवर सिरोसिस या हृदय रोग का रूप ले लेता है और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
महिलाओं में बीमारी की स्थिति थोड़ी अलग
महिलाओं में मासिक धर्म के कारण शरीर से नियमित रूप से रक्त बाहर निकलता है, जिससे आयरन का स्तर सामान्य बना रहता है। लेकिन रजोनिवृत्ति (menopause) के बाद महिलाओं में भी iron overload disease का खतरा बढ़ जाता है।
क्या यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है?
यदि iron overload disease का समय रहते पता चल जाए और इलाज शुरू कर दिया जाए तो यह बीमारी पूरी तरह नियंत्रित की जा सकती है। हालांकि, जिन अंगों को स्थायी नुकसान पहुंच चुका हो, उन्हें पुनः सामान्य करना मुश्किल होता है। इसलिए समय पर निदान अत्यंत आवश्यक है।
iron overload disease एक गंभीर लेकिन प्रबंधनीय बीमारी है। भारत जैसे देश में जहां आयरन की कमी पर अधिक ध्यान दिया जाता है, वहां इस बीमारी को नजरअंदाज कर देना आम बात है। लेकिन हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने लिवर और आयरन लेवल की समय-समय पर जांच कराता रहे ताकि किसी भी संभावित खतरे से बचा जा सके।