रात में क्यों नहीं करनी चाहिए कान की सफाई? वैज्ञानिकों ने बताया उस ‘खिलते फूल’ का डरावना सच

Health

हाइलाइट्स

  • Ear Cleaning से जुड़ी पारंपरिक चेतावनी का वैज्ञानिक आधार क्या है?
  • नई रिपोर्ट में सामने आया कि अनियंत्रित Ear Cleaning से सुनने की क्षमता पर पड़ता है सीधा असर
  • ग्रामीण मिथक: कान के भीतर ‘फूल’ रात में खुलता है, इसलिए रात में न करें Ear Cleaning
  • डॉक्टर बोले—कान की स्वचालित सफ़ाई प्रणाली से छेड़छाड़ करने पर बढ़ता है इन्फ़ेक्शन और परदा फटने का ख़तरा
  • स्वास्थ्य मंत्रालय भी जारी कर चुका है एडवाइज़री: क्यू-टिप की जगह सुरक्षित विकल्प अपनाएँ, Ear Cleaning को लेकर जागरूकता ज़रूरी

‘Ear Cleaning’ से जुड़े ग्रामीण मिथक

ग्रामीण भारत में बरसों से यह धारणा प्रचलित है कि कान के भीतर एक ऐसा ‘‘फूल’’ होता है, जो सूर्यास्त के बाद ‘‘खिल’’ उठता है। लोकविश्वास कहता है कि अगर इस समय Ear Cleaning की जाए तो वह फूल क्षतिग्रस्त होकर सुनने की शक्ति को स्थायी नुक़सान पहुँचा देता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के नृवंशशास्त्री प्रो. राजीव सिंह बताते हैं कि यह मिथक वास्तव में एक सांस्कृतिक सुरक्षा-उपाय था, जो लोगों को अज्ञानवश रात में Ear Cleaning जैसी जोखिमपूर्ण आदतों से बचाने के लिए गढ़ा गया।

कान की प्राकृतिक सफ़ाई व्यवस्था

कान की नहर ‘‘सिरुमेन’’ यानी earwax उत्पादन कर स्वतः सफ़ाई का काम करती है। यह मोम जैसा पदार्थ जीवाणुरोधी ढाल, प्राकृतिक मॉइस्चराइज़र तथा ध्वनि-विस्तारक के रूप में कार्य करता है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (AIIMS) के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. निधि तलवार बताती हैं कि Ear Cleaning की ज़रूरत आम तौर पर नहीं पड़ती; यह प्रक्रिया चलती-फिरती जबड़ों की हलचल के साथ स्वयं होती रहती है।

अतिरिक्त earwax कब बनता है मुसीबत?

कुछ व्यक्तियों में सिरुमेन अत्यधिक स्रावित होता है, जो बाहरी नहर में जमकर ‘सिरुमेन इम्पैक्शन’ बनाता है। ऐसे मामलों में Ear Cleaning चिकित्सकीय निगरानी में सूक्ष्म सक्शन उपकरण या माइक्रोस्कोपिक तकनीक से करवाई जाती है। घर पर क्यू-टिप, पिन या माचिस की तीली घुसाने से मैल और अंदर धकेलकर स्थिति बिगड़ जाती है।

आधुनिक चिकित्सा में ‘Ear Cleaning’ का दृष्टिकोण

विशेषज्ञ मानते हैं कि अनुदेशित Ear Cleaning—मसलन ओटोस्कोप जांच के बाद डॉक्टर द्वारा की गई—केवल तब ज़रूरी है जब मरीज में दर्द, बंद कान, टिनिटस या सुनने में कमी हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2024 की गाइडलाइन भी रोज़ाना Ear Cleaning को नकारती है। इसमें कहा गया है कि कान में रुई डालना ठीक वैसा ही है जैसे आँख में धूल झोंकना—दोनों ही अंग खुद को सुरक्षित रखने की उम्दा व्यवस्था रखते हैं।

बच्चों में बढ़ता स्वैब-मोमेंट

बाज़ार में रंग-रंगीले क्यू-टिप आकर्षण बढ़ाते हैं। बच्चों के माता-पिता बिना चिकित्सकीय सलाह दिन में तीन–चार बार Ear Cleaning कर देते हैं, जिससे नाजुक ईयरड्रम पर सूक्ष्म कटाव बनता है। गायत्री देवी बाल चिकित्सालय, वाराणसी के डॉ. अमन चौधरी कहते हैं, “हर हफ़्ते ओपीडी में पाँच से छह मामले ऐसे आते हैं, जिनमें घरेलू Ear Cleaning से ईयरड्रम पर छेद हो चुका होता है।”

कान में जलन, खुजली या फंगल संक्रमण क्या संकेत देते हैं?

अगर कान में लगातार खुजली है और सफ़ेद परत दिखती है, तो यह ओटोमाइकोसिस यानी फंगल इन्फ़ेक्शन हो सकता है। ऐसे में बार-बार Ear Cleaning करके नहर को सूखा रखने की कोशिश उल्टा असर डालती है। ENT विशेषज्ञ नहर में एंटी-फंगल ड्रॉप्स तथा मॉइस्चर-बैलेंस थेरेपी सुझाते हैं।

तकनीकी पहलू: ‘Ear Cleaning’ के नए विकल्प

इंटरनेट पर एंडोस्कोप-कैमरा वाले ईयरपिक की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है। ये उपकरण लाइट व वायरलेस कैमरे से लैस हैं और मोबाइल स्क्रीन पर कान का लाइव दृश्य दिखाते हैं। हालांकि दिल्ली एम्स के डॉ. तलवार चेतावनी देते हैं, “ऐसे गैजेट्स से अनट्रेंड व्यक्ति द्वारा की गई Ear Cleaning के कारण नहर की त्वचा पर खरोंच, यहां तक कि अस्थायी बहरापन देखा गया है।”

ध्वनि-भेदी परीक्षण क्या बताएगा?

अगर Ear Cleaning के बाद भी कान बंद महसूस हो, तो ‘प्योर टोन ऑडियोमेट्री’ टेस्ट से पता चलता है कि रुकावट मैकेनिकल है या न्यूरोलॉजिकल। विशेषज्ञों के मुताबिक 30% मामलों में समस्या सिर्फ मानसिक होती है—मरीज़ को लगता है कि मैल जमा है, जबकि असल में नहर बिल्कुल साफ़ होती है।

‘Ear Cleaning’ के सुरक्षित विकल्प

  • डॉक्टर-संशोधित सिरुमेन सॉल्वेंट (कार्बामाइड पेरऑक्साइड आधारित)
  • नियंत्रित सक्शन माइक्रोस्कोप से वैक्यूम Ear Cleaning
  • ल्यूक-वार्म सलाइन फ्लश, किंतु केवल चिकित्सकीय निगरानी में

कान बचाने के लिए सरकारी नीतियाँ

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय 2025 में ‘‘सुरक्षित Ear Cleaning अभियान’’ शुरू कर चुका है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जागरूकता शिविर लगाए जा रहे हैं, जहां मॉडल के कान में क्यू-टिप डालने के खतरे दर्शाए जाते हैं। इस सप्ताह पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ने आंकड़े जारी किए: पिछले वर्ष देश में ईयरड्रम पंक्चर के कुल 1.2 लाख मामलों में से 68% घरेलू Ear Cleaning से जुड़े थे।

विशेषज्ञ सलाह: क्या करें, क्या न करें

  1. शॉवर के बाद कान में हल्का कुनकुना पानी भरकर झटका देने से स्विच होती है प्राकृतिक Ear Cleaning प्रक्रिया।
  2. मिट्टी, धूलभरी जगह या स्विमिंग के तुरंत बाद Ear Cleaning की इच्छा हो, तो सूखे कपड़े से बाहरी हिस्सा पोंछें, नहर में कुछ न डालें।
  3. मधुमेह या इम्यून कमी वाले मरीजों को चिकित्सकीय Ear Cleaning से पहले ईयर कल्चर टेस्ट कराना चाहिए।
  4. कोई भी तीली, पिन, पेपरक्लिप या हेयरपिन—ये सब ‘नो-गो’ सूची में हों; इनसे मलेरिया मच्छर के मुकाबले हज़ार गुना ख़तरनाक इन्फ़ेक्शन हो सकता है।
  5. बच्चों को खिलौने की तरह रंगीन क्यू-टिप से दूर रखें; स्कूलों में Ear Cleaning पर स्वास्थ्य शिक्षा शामिल होनी चाहिए।

 ‘Ear Cleaning’ का संतुलन ही समाधान

कान शरीर का वह संवेदनशील हिस्सा है, जो हमें दुनिया की आवाज़ों से जोड़ता है। वैज्ञानिक तथ्यों से स्पष्ट है कि जब तक चिकित्सकीय आवश्यकता न हो, रोज़ाना Ear Cleaning करने से ज़्यादा फ़ायदा नहीं, बल्कि लगातार ख़तरे हैं। ग्रामीण मिथकों ने जिस डर के सहारे सुरक्षा दी थी, आधुनिक विज्ञान ने उसी सुरक्षा को प्रमाणिक तथ्यों से मज़बूत किया है। लिहाज़ा अगली बार जब क्यू-टिप उठाएँ, तो याद रखें—कान के ‘रात में खिलने वाले फूल’ का सच यही है कि प्रकृति ने उसकी रक्षा का इंतज़ाम पहले से कर रखा है; हमें बस दख़लअंदाज़ी से बचना है।

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