माँ-बाप ने सोचा मोबाइल से बच्चा संभलेगा, लेकिन अब वो किसी से बोलता तक नहीं– जानिए क्या है डिजिटल ऑटिज्म

Health

हाइलाइट्स:

  • Digital Autism का खतरा बढ़ा बच्चों में स्मार्टफोन की अत्यधिक लत से
  •  बोलने में देरी, सामाजिक कौशल की कमी और गुस्सा बन रहे शुरुआती लक्षण
  • डॉक्टरों का दावा – 0 से 5 साल के बच्चों के दिमाग़ पर डिजिटल स्क्रीन का बुरा असर
  •  मोबाइल से बच्चे हो रहे ‘Emotionally Disconnect’, माता-पिता हैं अनजान
  •  समाधान है स्क्रीन टाइम पर सख्ती और पारंपरिक संवाद को बढ़ावा देना

क्या है Digital Autism?

Digital Autism एक आधुनिक मानसिक स्थिति है, जो विशेष रूप से छोटे बच्चों में देखी जा रही है। यह पारंपरिक Autism Spectrum Disorder की तरह नहीं है, लेकिन इसके लक्षण काफी मिलते-जुलते हैं। इसका मुख्य कारण है – मोबाइल, टैबलेट और टीवी स्क्रीन के अत्यधिक संपर्क में रहना।

विशेषज्ञ मानते हैं कि डिजिटल डिवाइसेज़ से 0 से 5 वर्ष के बच्चों के मस्तिष्क का विकास प्रभावित होता है। जब बच्चा भावनाओं, भाषा और सामाजिक व्यवहार की जगह स्क्रीन से संवाद करना शुरू करता है, तो वह धीरे-धीरे Digital Autism का शिकार हो सकता है।

भारत में बढ़ते मामले: हर 10 में 3 बच्चे संभावित शिकार

हाल ही में जारी हुए एक सर्वे के अनुसार, भारत में शहरी क्षेत्रों के लगभग 30% बच्चों में Digital Autism के लक्षण देखे जा रहे हैं। इनमें प्रमुख लक्षण हैं:

  • बच्चे का बोलने में देरी करना
  • आंखों में संपर्क न बनाना
  • बार-बार एक ही चीज दोहराना
  • ज़रा सी बात पर क्रोधित होना
  • सामाजिक गतिविधियों में रुचि न लेना

विशेषज्ञों ने चेताया है कि अगर इन लक्षणों को शुरुआत में न पहचाना जाए, तो ये जीवन भर के लिए एक मनोवैज्ञानिक चुनौती बन सकते हैं।

कैसे बन रहा है मोबाइल इसका कारण?

Digital Autism का सीधा संबंध Screen Dependency से है। जब कोई बच्चा दिनभर मोबाइल या टैबलेट पर कार्टून, गेम्स या यूट्यूब वीडियोज़ देखता है, तो वह असली दुनिया से कटने लगता है। स्क्रीन पर दिखने वाली चीजें बहुत तेज़, रंगीन और उत्तेजक होती हैं, जिससे बच्चा रियल लाइफ के धीमे और वास्तविक संवादों में रुचि खो देता है।

 मुख्य कारण:

  • माता-पिता द्वारा शांत रखने के लिए मोबाइल देना
  • भोजन या पढ़ाई के बदले स्क्रीन का लालच
  • खुद माता-पिता का स्क्रीन पर व्यस्त रहना
  • कोविड के दौरान ऑनलाइन लर्निंग की मजबूरी

विशेषज्ञों की राय: Digital Autism है रिवर्सिबल

Digital Autism का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह 100% रिवर्सिबल है – बशर्ते समय रहते समझदारी दिखाई जाए।

 एम्स दिल्ली के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विवेक शर्मा के अनुसार:

“अगर बच्चे का स्क्रीन टाइम 2 घंटे से ज़्यादा है और वह सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेता, तो यह शुरुआती Digital Autism हो सकता है। लेकिन सही माहौल और संवाद से बच्चे को सामान्य स्थिति में लाया जा सकता है।”

माता-पिता क्या कर सकते हैं?

स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करें

WHO के अनुसार, 2 साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखना चाहिए।

खेल और बातचीत को बढ़ावा दें

खुले मैदान में खेलना, कहानियां सुनाना, चित्र बनाना – ये गतिविधियां मस्तिष्क विकास को उत्तेजित करती हैं।

‘No Phone Zones’ बनाएं

घर में कुछ क्षेत्र जैसे डाइनिंग टेबल, बेडरूम आदि को मोबाइल-मुक्त रखें।

खुद उदाहरण बनें

बच्चा वही सीखता है जो वह देखता है। यदि माता-पिता खुद स्क्रीन पर कम समय बिताएं, तो बच्चा भी उसका अनुकरण करता है।

Digital Autism और वास्तविक Autism में अंतर

बिंदु Autism Spectrum Disorder Digital Autism
कारण जन्मजात / न्यूरोलॉजिकल पर्यावरणीय / डिजिटल स्क्रीन
लक्षण गहरे और स्थायी हल्के और रिवर्सिबल
इलाज लंबे समय तक थेरेपी स्क्रीन नियंत्रण और संवाद
उम्र जन्म से दिख सकते हैं 1-5 वर्ष की उम्र में उभरते हैं

दुनिया भर में चेतावनी: WHO और UNICEF की रिपोर्ट

World Health Organization और UNICEF ने मिलकर एक रिपोर्ट में बताया है कि यदि Digital Autism की ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में यह Public Mental Health Crisis बन सकता है।

रिपोर्ट में बताया गया कि:

  • जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देशों में इसके केस तेजी से बढ़े हैं।
  • भारत में अब इसकी वृद्धि ग्रामीण इलाकों तक पहुंच रही है।
  • बच्चों के दिमाग़ को डिजिटल शोर से बचाना जरूरी है।

सरकार और स्कूलों की भूमिका

अब समय आ गया है कि स्कूलों, आंगनबाड़ियों और स्वास्थ्य विभाग को इस विषय पर सामूहिक रूप से जागरूकता फैलानी चाहिए। Parenting Workshops, Screen Detox Campaigns, और नियमित व्यवहार जांच से इस समस्या से बचा जा सकता है।

Digital Autism एक आधुनिक बीमारी है जो प्यार, ध्यान और समझदारी से रोकी जा सकती है। यह केवल टेक्नोलॉजी की नहीं, बल्कि पैरेंटिंग की भी परीक्षा है। अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे भावनात्मक, सामाजिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें – तो आज से ही कदम उठाना जरूरी है।

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