हाइलाइट्स
- चूहा मारने की कीमत मध्यप्रदेश में ₹12,000 प्रति चूहा बताई गई, फिर भी अस्पताल में चूहों का आतंक
- इंदौर के एमवाय अस्पताल में चूहों ने नवजात वार्ड में बच्चियों की अंगुलियाँ कुतरीं
- करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद अस्पताल में न स्वच्छता, न सुरक्षा
- ठेके पर चूहे मारने का काम होने के बाद भी चूहे अस्पताल में घूमते रहे बेखौफ़
- मामला उजागर होने पर परिजनों और शहरवासियों में गुस्सा, सरकार पर उठे सवाल
चूहा मारने की कीमत पर उठे सवाल
मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल तब खड़ा हो गया जब यह खुलासा हुआ कि चूहा मारने की कीमत सरकारी रिकॉर्ड में ₹12,000 प्रति चूहा दर्ज की गई। आमतौर पर एक चूहे को मारने की लागत मुश्किल से ₹50 से ₹100 तक होती है, लेकिन करोड़ों रुपये के ठेकों के बावजूद नतीजा यह रहा कि इंदौर के एमवाय अस्पताल में चूहों ने मासूम बच्चियों की अंगुलियाँ तक कुतर दीं।
यह घटना केवल लापरवाही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार का वह चेहरा है जो आम लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है।
एमवाय अस्पताल का दर्दनाक हादसा
नवजात वार्ड में मासूमों पर हमला
इंदौर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, महाराजा यशवंतराव (एमवाय) अस्पताल में चूहों का आतंक नया नहीं है। पर हाल ही में जो घटना हुई, उसने पूरे प्रदेश को हिला दिया। नवजात वार्ड में भर्ती दो बच्चियों की अंगुलियाँ चूहों ने कुतर डालीं। परिजन यह देखकर सन्न रह गए।
परिजनों का आक्रोश
परिजनों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन ने बार-बार शिकायत के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया। जब हादसा हुआ, तब भी स्टाफ की लापरवाही साफ दिखी। परिवारों ने आरोप लगाया कि “यदि करोड़ों रुपये वाकई चूहा मारने पर खर्च किए गए थे, तो आखिर यह हादसा कैसे हुआ?”
ठेके और खर्च का सच
करोड़ों रुपये खर्च, फिर भी चूहे आज़ाद
सरकारी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अस्पताल परिसर में कीटाणु और चूहे मारने के लिए निजी कंपनियों को करोड़ों रुपये का ठेका दिया गया। हर चूहे पर चूहा मारने की कीमत ₹12,000 तक दिखाई गई। यह आंकड़ा खुद में चौंकाने वाला है।
विशेषज्ञों की राय
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि एक चूहा पकड़ने या मारने की अधिकतम लागत दवा, उपकरण और श्रम मिलाकर ₹100 से ₹200 तक हो सकती है। इसके बाद भी यदि अस्पताल में चूहे खुलेआम घूम रहे हैं, तो इसका मतलब साफ है—या तो खर्च दिखाया गया, या काम सिर्फ कागज़ों में हुआ।
जनता का गुस्सा और सवाल
एक चूहे को मारने की कीमत कितनी हो सकती है?
₹10, ₹20… या ज़्यादा से ज़्यादा ₹100!लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने चूहा मारने के लिए ₹12,000 प्रति चूहा खर्च किए।
फिर भी एमवाय अस्पताल में चूहे घुस गए और दो मासूम बच्चियों की अंगुलियाँ कुतर डालीं।👉 करोड़ों रुपये ठेके पर खर्च हुए,… pic.twitter.com/e4tmnZ51E9
— अपूर्व اپوروا Apurva Bhardwaj (@grafidon) September 5, 2025
सरकार पर सवाल
इस पूरे मामले के बाद जनता और विपक्ष ने सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब हर चूहे पर ₹12,000 खर्च किए गए, तो अस्पताल में चूहे कैसे पहुंच गए?
सोशल मीडिया पर गुस्सा
घटना सामने आते ही सोशल मीडिया पर गुस्से का सैलाब उमड़ पड़ा। लोग लिख रहे हैं कि “यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि मासूमों पर सीधा हमला है।” कई यूजर्स ने मांग की कि जिन अधिकारियों ने ठेका पास किया और जांच नहीं की, उन पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।
भ्रष्टाचार का नया चेहरा
ठेके में गड़बड़ी
यह घटना बताती है कि कैसे ठेके और बजट का खेल आम लोगों की ज़िंदगी पर भारी पड़ रहा है। चूहा मारने की कीमत दिखाकर करोड़ों रुपये खर्च तो कर दिए गए, लेकिन नतीजा यह निकला कि मासूम बच्चियां अस्पताल में भी सुरक्षित नहीं रहीं।
स्वास्थ्य प्रणाली पर खतरा
अगर राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल की यह हालत है, तो छोटे कस्बों और गांवों की स्थिति का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है। यह केवल इंदौर या मध्यप्रदेश की समस्या नहीं, बल्कि पूरे देश की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए खतरे की घंटी है।
आगे क्या होगा?
जांच और कार्रवाई की मांग
अब सवाल यह है कि क्या सरकार केवल जांच का आदेश देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल देगी, या फिर दोषियों पर सख्त कार्रवाई भी होगी? पीड़ित परिवार और आम जनता की यही मांग है कि इस भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों और ठेकेदारों पर कड़ी कार्रवाई हो।
व्यवस्था में सुधार जरूरी
विशेषज्ञ मानते हैं कि अस्पतालों में केवल कीटाणु नियंत्रण ही नहीं, बल्कि साफ-सफाई, निगरानी और सुरक्षा पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। जब तक सिस्टम पारदर्शी नहीं होगा, तब तक चूहा मारने की कीमत जैसी विसंगतियां सामने आती रहेंगी।
एमवाय अस्पताल की यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था में गहरे पैठे भ्रष्टाचार का सबूत है। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद चूहे अस्पताल के वार्ड में मासूमों पर हमला कर देते हैं—यह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है।
सरकार को अब यह समझना होगा कि आंकड़ों और ठेकों से ज़्यादा अहम है इंसानी ज़िंदगी की सुरक्षा। अगर इस बार भी कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले समय में चूहा मारने की कीमत केवल अखबारों की सुर्खियां ही नहीं बनेगी, बल्कि आम जनता के गुस्से का विस्फोट भी कराएगी।